Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

कोई और तुम

Advertiesment
हमें फॉलो करें कोई और तुम
- रेखा ‍मैत्

जन्म बनारस में। सागर विवि से हिन्दी साहित्य में एमए किया। फिलहाल अमेरिका में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार से जुड़ी साह‍ित्यिक संस्था 'उन्मेष' के साथ जुड़ी हैं। प्रकाशित कविता संग्रह : पलों की परछाइयाँ, मन की गली, उस पार, रिश्तों की पगडंडियाँ, मुट्ठी पर धूप, बेशर्म के फूल। अधिकांश कविताएँ बांग्ला व अँगरेजी में अनुवादित

तो कोई और तुम थ
GN

जिसके वाक् दंश ने मेरे
अस्तित्व को निष्प्राण कर दिया!

जरूर वो कोई और तुम हो
जिसने ‍अपनी संजीवनी वाणी से
मुर्दे में जान फूँक दी!

या फिर तुम काठ की रूसी गुडि़या से हो
जिसमें एक के अंदर एक
अनेक 'तुम' छिपे हुए हैं!

कभी तो भी लगा है
तुम्हारी ताकत प्रभु से भी ज्यादा है
सृष्टा तो एक देह का एक बार
सृजन और एक बार संहार करता है

तुम तो रोज़-रोज़
अपनी जादुई लकड़ी से
इस जमुरे को कभी
मौत की नींद सुलाते हो
कभी पुनर्जीवित कर देते हो!

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi