सदा पे जिसकी दिले-परीशाँ ठहर गया कौन शख्स था वह
इक आशना था कि अजनबी था किधर गया कौन शख्स था वह।
अभी वह बस्ती बसी हुई है बहुत-से लोगों को याद होगा
हमारी चाहत से रूप जिसका निखर गया कौन शख्स था वह।
सुना तो हमने सड़क के उस पार फिर कोई हादसा हुआ है
कहा तो सबने कि एक राहगीर मर गया कौन शख्स था वह।
दरख्त गिरने में ऐ हवाओ! दरख्त ही का जियाँ नहीं है
वह जिससे मिलकर वुजूद मेरा बिखर गया कौन शख्स था वह।
शिआरे-हमसायगी तो यह पड़ोस के लोग सो न पाएँ
अभी दबे पाँव जो गली से गुजर गया कौन शख्स था वह।
कभी सरे-राह इत्तफा़क़न जो अजनबी की तरह मिला था
नियाज फिर मेरी रूह में भी उतर गया कौन शख्स था वह।
साभार- गर्भनाल