आज देश की स्थिति जाने किस मोड़ पर खड़ी बेहया और बेशर्मी की कोई सीमा अब नहीं रही कर्म-अकर्म का मानव को रहता नहीं जब कुछ ज्ञान तभी अनागत के कुटिल चरण का पा सकता नहीं कुछ भान लूटपाट औ अनाचार ने कैसा रंग जमाया अपने ही हाथों ने अपने मुख कालिख लगवाया।
अरे बावले रहा न तुझको जीवन मूल्य का तनिक-सा भी यह ज्ञान अपनी ही माता का तू खुद ही कर रहा अपमान क्रूर दिमाग औ पिशाच-सा करते तुम ताण्डव नर्तन अनाचार ने हद कर दी ऐसा भी क्या वहशीपन।
कहीं नन्ही बालिका को नशा पिलाकर तो कहीं बांधकर हाथ और पैर फिर भी चैन न पाया ओ पागल अंतड़ियों को तक को दिया चीर।
सामूहिक बलात्कार का नग्न प्रदर्शन हुई न तेरे हृदय को पीर रूह न कांपी ओ पापी, इतने पर भी न आया चैन अपनी कालिमा छुपाने, कर दिया उसका बलिदान।
कहीं जलाकर, कहीं तड़पाकर जीवन तक को भी न छोड़ा ओ कायर मर्दानगी वाले मस्तक में ये कैसा कीड़ा दौड़ा।
स्वर्गलोक उनको पहुंचाकर तू शायद मद-मस्त बना मुक्ति दिलाकर नव कलिकाओं को तू तो है उन्मुक्त हुआ।
कर्म और कर्मफल क्या कभी पीछा छोड़ पाएंगे अपनी ही अग्नि में जलाकर तुझे भस्म कर जाएंगे।
हे ईश कैसी तेरी यह लीला अनाचार कर दिया लीन तूने ये क्या आंख मूंद ली हो किस माया के आधीन।
आज यह उक्ति सार्थक सी लगती यद्यपि उसका अस्तित्व नहीं होता नंग बड़ा परमेश्वर से क्या यह कोई विडम्बना नहीं।