कानपुर में जन्म। कानपुर विवि से एम.ए. और बुंदेलखंड विवि से पी-एच.डी.। भारत में 1983 से 1998 तक अध्यापन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, लेख और कविताएँ प्रकाशित। मई 1998 में अमेरिका पहुँची। 2003 में एडल्ट एजुकेशन में शिक्षण से जुड़ गईं। सम्प्रति वे वेसलियन विश्वविद्यालय, कनैक्टिकट में हिन्दी की प्राध्यापक हैं।
मैं विमूढ़ हूँ
क्योंकि मैं
सौम्य हूँ, सरल हूँ
औरों के प्रति विनम्र हूँ
मैं कृतज्ञ हूँ
दूसरों के किए को मानती हूँ
मैं सत्यनिष्ठ हूँ
सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् की
अवधारणा को अमल में लाती हूँ
मैं कर्मनिष्ठ हूँ
भगवान श्रीकृष्ण की सर्वश्रेष्ठ उक्ति
'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्'
पर विश्वास रखती हूँ
कदाचित इसीलिए
पांडवों की तरह मैं भी
अनकहे और अनकिए की
अनवरत यातना भोगती हूँ
वे बुद्धिमान हैं
जो अहर्निश झूठ बोलते हैं
दुर्योधन की तरह
घात पर घात करते हैं
दुसरों के इंद्रप्रस्थ को
अपना इंद्रप्रस्थ समझते हैं
अपनों को विश्वास देकर
विश्वासघात करते हैं
परछिद्रान्वेषी हैं, आत्मश्लाघी हैं
पर उपदेशक हैं, स्वनि:शेषक हैं
धन से परिपूर्ण हैं
संवेदना से शून्य हैं
आज के युग में यही तो
बुद्धिमानी के मूल्य हैं।
- गर्भनाल से साभार