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रमता जोगी, बहता पानी

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हमें फॉलो करें प्रवासी कविता
- हरनारायण शुक्ला

 
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रम गया मैं रम के तट पर, बहता पानी देखकर।
मैं तो ठहरा रमता जोगी, रम पीऊंगा जी भर कर।

बोतल प्याले तोड़ दिए, अब डुबकी लेकर पीता हूं।
भर-भर के मटके लाता, जो पीता और पिलाता हूं।

रम नदिया का दृश्य मनोरम, मंत्रमुग्ध होता जाऊं।
मदहोशी का आलम है, स्वप्नों में खोता जाऊं।

रम और मिसीसिपी का संगम, कुछ कदम ही आगे है।
रम मिलते ही मिसीसिपी भी, इठलाती बलखाती है।

बूंद-बूंद में राम समाया, रम नदिया के पानी में।
ऐसे रम को पीकर प्यारे, सदा रहो अलमस्ती में।

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