Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

रहस्य

Advertiesment
हमें फॉलो करें रहस्य
- शकुंतला बहादुर

GN
न जाने क्यों मन मेरा ये कभी-कभी,
हो जाता विक्षुब्ध अचानक बस यों ही।
मन अतीत की बातों में खो जाता है ऐसे,
बाढ़ आई सरिता में कोई डूब जाए जैसे।

तभी अचानक मानो सोते से जग जाता,
बड़ी देर तक ठगा ठगा-सा है रह जाता।
फिर भविष्य की आशंका से, चिंता में फँस जाता,
निष्‍क्रियता-स‍ी छा जाती और समय खो जाता।

काल-चक्र तो प्रतिक्षण चलता ही रहता है,
मन बेचारा चक्की में पिसता रहता है।
कभी विगत क‍ी भूलें, उनका पश्चाताप,
मन में जैसे झंझावात मचा जाता है।

कभी अनागत की आशंका से उपजा भय,
मन का सब सुख-चैन छीन ले जाता है।
आगत वर्तमान सुखदायक होकर भी,
सहमा-सा चुप खड़ा उप‍ेक्षित रह जाता है।

कभी यहाँ और कभी वहाँ मन भागा-सा फिरता है,
स्थिरता के बिना बावरा, सब कुछ खो देता है।
बीत गए को नहीं सोचना, आगे की है राह खोजना,
वर्तमान जो खड़ा सामने, उसका हर पल हमें पकड़ना।

आज बनेगा भूत यहाँ कल, यह‍ी आगामी कल जन्मेगा,
सदा सफल वह जीवन होगा, इस रहस्य को जो जानेगा।

साभार- गर्भनाल

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi