हर एक लम्हा आए याद उस दिन का
जब आई मेरी नन्ही परी
सुंदर, नाजुक, कोमल-कोमल
मानो कोई खिली थी नन्ही-सी कली
देख-देख मैं मन ही मन खुश होती
लहराती मेरे मन की बगिया
एक अनूठे आनंद से भर जाती मैं
और सहज मुस्कुराती मेरी अंखियां
मातृत्व का पद देकर तुमने
मुझको बेटी पूर्ण किया
अबोध, नि:स्वार्थ, निष्पाप सहजता बस
इसका ही तुझमें मैंने दर्शन किया।
अपने प्यार को तूने
हम सब पर बरसाकर
धन्य किया जीवन मेरा
श्रद्धा-सुमन समर्पित कर