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'बधाई, बधाई, बधाई'

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रेखा भाटिया

कई दिनों से चिलचिलाती धूप ने वातावरण की तपिश को बढ़ा दिया था, दिन लंबे हो चले थे और सर्द-नर्म रातें सिमट चुकी थीं। 

 
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सूरज देवता पिछले कुछ दिनों से सुप्रभात को जल्द दर्शन देकर नींद में से जगा रहे थे मानो कोई संदेश दे रहे हों, 'उठो, जागो, सबेरा हो चला है, अंधेरा जा चुका है। यह काम करने का वक्त है, बहुत आराम हो चुका? जागो, जागो!'

सच ही था परीक्षा के दिन चल रहे थे, साथ ही कई कॉम्पिटिशंस भी आयोजित होती हैं इस समय। साल खत्म होने को है। ऐसा लग रहा था मानो कोई सत्र खत्म होने को है। बच्चों की परीक्षाओं के दिन होते हैं और दिल की धड़कनें पालकों की बढ़ जाती हैं। उन्हें लगता है संभवतः उन्हीं की परीक्षाएं चल रही हैं, जिम्मेदारियों का भार भी दुगना महसूस होता है।

उधर भारत में पिछले कई महीनों से चुनाव की गरमा-गरमी चल रही थी, रोज भारतीय अखबार में, टीवी चैनल्स पर नई-नई खबरें पढ़ने-सुनने को मिल रही थीं। खींचातानी, तानाकशी, छींटाकशी। सभी राजनीतिक पार्टियां नैतिकता ताक पर रखकर एक-दूसरे के विरुद्ध बयानबाजी में लगी हुई थीं। इसमें अभिनेता, धर्मगुरु भी पीछे नहीं थे। चुनाव से पहले की गरमा-गरमी स्वाभाविक है, परंतु माहौल कुछ ज्यादा ही बदला हुआ था।


शिष्टाचार की सभी सीमाओं को लांघ भारतीय राजनीतिक वातावरण बहुत अस्वस्थ हो गया है। आम लोगों के जीवन पर इसका प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। कई बार जीवन में एक ही समान स्थिति में लंबे अंतराल तक रहने से हमें लगता है कि यही सच है और कुछ समय बाद हमें उस स्थिति की आदत पड़ जाती है, वही भारत में भी हो रहा था।

केजरीवाल का चुनाव में जीतकर देहली का मुख्यमंत्री बनना लोगों में कुछ उम्मींदे जगा रहा था। रोज सुबह यहां हमारी भी दिनचर्या ऐसी बनाने लगी थी। पति महाशय हर रोज सुबह भारत की खबरों को अखबार में पढ़ लेते और चाय की प्याली हाथ में पकड़ाते हुए भारत के खबरची का पात्र भी अदा करते, साथ ही अपने विचार भी प्रकट करते। संतुष्ट-असंतुष्टि, तर्क-वितर्क, वाद-विवाद भारत की वर्तमान परिस्थिति पर हम गंभीरता से बात करते सुबह की शुरुआत करने लगे थे।

दूसरी ओर जब भी भारत में रिश्तेदारों, घरवालों से बात करो, हालचाल जानने के बाद इसी विषय पर बातचीत होती थी। जब अमेरिका में कोई राजनीतिक समस्या हो, चुनाव हो, अर्थव्यवस्था का विषय हो, तब भी भारत से हमसे कई प्रश्न पूछे जाते थे। कई बार यहां की कोई खबर हमें नहीं पता होती थी। हमें हमारे रिश्तेदारों से पता चलती थी, शायद यह हम भारतीयों के खून में है सारी खबरों की जानकारी रखना। इसके ठीक विपरीत कई बार यहां के आम लोगों को कुछ भी पता नहीं होता।

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चुनाव आकर चले जाते हैं, आम जीवन प्रभावित नहीं होता है, स्कूलों की छुट्टी नहीं होती, ऑफिस बंद नहीं होते और देश के राष्ट्रपति चुन लिए जाते हैं। कई सालों से यहां रहते हुए और 4 बार सरकार का चुनाव अपनी उपस्थिति में देखने के बाद भारत का अस्वस्थ राजनीतिक माहौल हमें विचलित करने लगा था।

फिर जब केजरीवाल ने इस्तीफा दिया माहौल और भी गरमा गया। टीवी और अखबारों पर वही-वही खबरें। कुछ कोफ्त-सी होने लगी थी साथ ही भीतर में गुस्सा भी भरने लगा था, यह सब खत्म क्यों नहीं होता?

वो दिन वीकेंड का दिन था। हमारे शहर की यूनिवर्सिटी में विज्ञान की एक बहुत बड़ी प्रतियोगिता आयोजित होने वाली थी और शहर के लगभग सभी स्कूलों के बच्चे इसमें भाग लेने आने वाले थे।

उधर भारत में भी चुनाव हो चुके थे, बस परिणाम आने शेष थे? प्रतियोगिता में जाने के ख्याल से ही नींद जल्दी खुल गई। बाहर खिड़की से झांका तो सूरज देवता के तेवर आज कुछ नरम थे, हवा में आर्द्रता थी, एक अनोखी महक थी, जो यहां बसंत ऋतु के आगमन के बाद फूलों की खूशबू से उठती है। हल्की मंद हवा बह रही थी।


इक्का-दुक्का बादल, नई-नई हरी-भरी नवजीवन ले कोमल पंखुड़ियां, सजी धरती मानो सूर्य के आगमन को आज आतुर थी और स्वयं सूरज देवता मुस्कराकर अपने स्वागत से खुश हो रहे थे।

जल्दी-जल्दी तैयार हो हम कार में बैठे। बिटिया मौसम के खुशगवार होने से खुश थी। प्रतियोगिता स्थल पर बड़ी संख्या में भारतीय बच्चे अपने-अपने स्कूलों का प्रतिनिधित्व करते हुए दिखे। अमेरिका में विज्ञान, गणित, टेक्नोलॉजी और ऐसी अन्य सभी प्रतियोगिताओं में भारतीय विद्यार्थी बहुत अधिक संख्या में भाग लेते हैं।

प्रतियोगिता की शुरुआत हुई। जैसे-जैसे दिन बीतता जा रहा था, भारत से शुभ समाचार आया, 'नरेन्द्र मोदी जीत गए। सभी उपस्थित भारतीय पालकों के चेहरों पर मुस्कान उभर आई, सभी के चेहरों पर खुशी की रौनक नजर आने लगी। वे सभी पालक भारत के अलग-अलग प्रांतों से थे, पर सभी खुशी में झूम रहे थे, एक-दूसरे को बधाइयां दे रहे थे।

दिन बीतने के साथ-साथ ही भारतीय बच्चे भी हर दिशा से मुस्कराते हुए बाहर आ रहे थे और अपनी सफलता के लिए निश्चिंत थे। फिर शाम आई, अवॉर्ड बंटने का समय आया, हर तरफ भारतीय बच्चों के नाम का डंका बज रहा था, कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। पालकों को कौन-सा बालक किस स्कूल से है, सभी आपस में यही चर्चा कर रहे थे, 'यह देखो ये भी इंडियन बच्चा है, जो अवॉर्ड लेकर जा रहा है।'

एक और इंडियन, वाह! वाह! कमाल है!' सभी के चेहरों से विजय और गर्व की खुशी छलक रही थी, सभी खुश थे। उस दिन हम सभी ने बड़ी सफलता हासिल की थी। जीत भारतीयों की हुई थी, उधर भारत में जीत प्रजातंत्र की हुई थी।

अब वक्त था खुशियां मनाने का, भारतीय बच्चों के गले में टंगे मेडलों की छन-छन आवाज, कैमरे के फ्लैश की तेज रोशनियों के बीच में से हर दिशा से उभरते स्वर, 'बधाई हो, बधाई हो बधाई हो!'

शाम को घर लौटते समय यहां के रेडियो पर नरेन्द्र मोदी की जीत का परचम गूंज रहा था।

सुबह-सुबह ही सूरज देवता ने इशारा कर दिया था कि आज का दिन शुभ होगा, तपन खत्म होगी और राहत महसूस होगी। वो राहत जो भारतीयों ने कई वर्षों बाद महसूस की है। नरेन्द्र मोदी को चुनने के लिए सभी भारतीयों को बहुत-बहुत बधाई!



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