'बधाई, बधाई, बधाई'
कई दिनों से चिलचिलाती धूप ने वातावरण की तपिश को बढ़ा दिया था, दिन लंबे हो चले थे और सर्द-नर्म रातें सिमट चुकी थीं।
सूरज देवता पिछले कुछ दिनों से सुप्रभात को जल्द दर्शन देकर नींद में से जगा रहे थे मानो कोई संदेश दे रहे हों, 'उठो, जागो, सबेरा हो चला है, अंधेरा जा चुका है। यह काम करने का वक्त है, बहुत आराम हो चुका? जागो, जागो!'
सच ही था परीक्षा के दिन चल रहे थे, साथ ही कई कॉम्पिटिशंस भी आयोजित होती हैं इस समय। साल खत्म होने को है। ऐसा लग रहा था मानो कोई सत्र खत्म होने को है। बच्चों की परीक्षाओं के दिन होते हैं और दिल की धड़कनें पालकों की बढ़ जाती हैं। उन्हें लगता है संभवतः उन्हीं की परीक्षाएं चल रही हैं, जिम्मेदारियों का भार भी दुगना महसूस होता है।
उधर भारत में पिछले कई महीनों से चुनाव की गरमा-गरमी चल रही थी, रोज भारतीय अखबार में, टीवी चैनल्स पर नई-नई खबरें पढ़ने-सुनने को मिल रही थीं। खींचातानी, तानाकशी, छींटाकशी। सभी राजनीतिक पार्टियां नैतिकता ताक पर रखकर एक-दूसरे के विरुद्ध बयानबाजी में लगी हुई थीं। इसमें अभिनेता, धर्मगुरु भी पीछे नहीं थे। चुनाव से पहले की गरमा-गरमी स्वाभाविक है, परंतु माहौल कुछ ज्यादा ही बदला हुआ था।
शिष्टाचार की सभी सीमाओं को लांघ भारतीय राजनीतिक वातावरण बहुत अस्वस्थ हो गया है। आम लोगों के जीवन पर इसका प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। कई बार जीवन में एक ही समान स्थिति में लंबे अंतराल तक रहने से हमें लगता है कि यही सच है और कुछ समय बाद हमें उस स्थिति की आदत पड़ जाती है, वही भारत में भी हो रहा था।
केजरीवाल का चुनाव में जीतकर देहली का मुख्यमंत्री बनना लोगों में कुछ उम्मींदे जगा रहा था। रोज सुबह यहां हमारी भी दिनचर्या ऐसी बनाने लगी थी। पति महाशय हर रोज सुबह भारत की खबरों को अखबार में पढ़ लेते और चाय की प्याली हाथ में पकड़ाते हुए भारत के खबरची का पात्र भी अदा करते, साथ ही अपने विचार भी प्रकट करते। संतुष्ट-असंतुष्टि, तर्क-वितर्क, वाद-विवाद भारत की वर्तमान परिस्थिति पर हम गंभीरता से बात करते सुबह की शुरुआत करने लगे थे।
दूसरी ओर जब भी भारत में रिश्तेदारों, घरवालों से बात करो, हालचाल जानने के बाद इसी विषय पर बातचीत होती थी। जब अमेरिका में कोई राजनीतिक समस्या हो, चुनाव हो, अर्थव्यवस्था का विषय हो, तब भी भारत से हमसे कई प्रश्न पूछे जाते थे। कई बार यहां की कोई खबर हमें नहीं पता होती थी। हमें हमारे रिश्तेदारों से पता चलती थी, शायद यह हम भारतीयों के खून में है सारी खबरों की जानकारी रखना। इसके ठीक विपरीत कई बार यहां के आम लोगों को कुछ भी पता नहीं होता।