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प्रवासी गीत : साथिया

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पुष्पा परजिया

लबों पर आ गए अल्फ़ाज़ दरिया की मौजें देखकर 
ख़याल थे विशाल समंदर की गहराइयों की तरह 
 
ऐसा लगा कि पहुंच गए हम अगले जनम तक 
और लम्बी गुफ्तगू करते रहे हम आपसे लगाव में 
 
जैसे लहरें बातें करते आईं हैं किनारों से आज तक 
दिवा स्वप्न था बैठे थे पास पास और मूंदी (बंद) आंखों से 
 
सपने संजोने लग गए हम जनम-जनम के साथ के 
साथ न छूटेगा अपना और हम रहेंगे बन के आपके  
 
झकझोर दी किसी आहट ने सपनो की वो दुनिया 
टूटा सपना, जगे अचानक और बोल उठा दिले नादां  
 
घबरा ना इस जन्म की गर्म हवा के थपेड़ो से 
क्योंकि ये कब के जा चुके होंगे तब तक 
 
कुदरत की बनाई इस जन्नत में निस्तब्ध शांति की गोद में 
निश्छल मन संग हम साथ रहेंगे जन्मों जनम तक 
 
थके हारे मन को दी शांति की कुछ सांसे इस स्वप्न ने  
काश मिल जाए अगला जन्म हम साथ पाएं आपका  
 
सदा एक हो कर हम रहें- क़यामत से क़यामत तक। 
 

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