अमित शुचित नीलाभ फलक से
मारुत-हास में छलका भंग
दहका लाल पलाश पुष्प-वन
भाए ना तुम बिन कोई रंग।
आम्र तरु श्रृंखलित मंजरियां
तीखी मद गंध बिखेर रही
भ्रमर नाद से दिशा गुंजरित
अखिल रागिनी तैर रही
मन्मथ सर्जित नवल धरित्री
कलकूजन करता नभ विहंग
दहका लाल पलाश पुष्प-वन
भाए ना तुम बिन कोई रंग।
अमलतास पीताभ मदान्वित
याद पुरानी संग ले आई
तापविरह अकुलाया तन-मन
पी पुकार कोकिल बौराई
पथ में प्रिय के बिछ पराग
मांगे अनुरागित साथ संग
दहका लाल पलाश पुष्प-वन
भाए ना तुम बिन कोई रंग।
मादक महुआ पुहुप का नर्तन
फाग हवाओं में उड़ता-सा
भटका मन का पथिक अकेला
विस्मृत गलियों में मुड़ता-सा
कब पूरी हो चित्त अभिलाषा
प्यासा-प्यासा फिरता अनंग
दहका लाल पलाश पुष्प-वन
भाए ना तुम बिन कोई रंग।
विमल धरामग नवल रागमय
पवन बसंती जिया जलाए
बैरन हो गईं श्यामल रतियां
नींद भी पलकन द्वार न आए
नीरव नैना तपस्विनी बनी
रह-रह उठे उर पीड़ा तरंग
दहका लाल पलाश पुष्प-वन
भाए ना तुम बिन कोई रंग।