Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

प्रवासी कविता : मन जैसा हो जग वैसा

हमें फॉलो करें प्रवासी कविता : मन जैसा हो जग वैसा
- हरनारायण शुक्ला 


 

 
(1)
 
दुनिया को तुम मत बदलो, बदलो तुम खुद अपने को।
दुनिया कोई बुरी नहीं, झांको अपने अंदर को। 
 
(2)
 
आप भला तो जग भला, महामंत्र है जीवन का।
लोगों से सद्भाव रखो, तुम्हें मिलेगी सज्जनता।
 
(3)
 
उम्मीद नहीं रक्खो ज्यादा, चाहे कोई हो अपना।
आस निराशा में ना बदले, ध्यान रहे तुमको इतना। 
 
(4)
 
देते जाओ दोनों हाथों, लेने की तो बात नहीं। 
मदद करो एहसान नहीं, धन्यवाद की चाह नहीं। 
 
(5)
 
मन चंगा तो 'रम' गंगा, मन मलीन तो जग मैला। 
मन जाने हो कब कैसा, मन जैसा हो जग वैसा। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi