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पूर्वमुखी

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- अनिल के. प्रसा

GN
हथुआ, बिहार में जन्म, अँगरेजी साहित्य में बीए (ऑनर्स), एमए और यूजीसी नेट के अंतर्गत पीएच-डी साहित्य अकादमी के लिए यशपाल के 'झूठा सच' के कुछ अंशों का अँगरेजी में अनुवाद। मैसेचूसेट्‍स, हवाई, जॉर्डन, चोकिंग और ‍बीजिंग वि‍श्वविद्यालयों द्वारा आयोजित सम्मेलनों में पेपर तथा कविताओं का पाठ। सम्प्रति- अँगरेजी विभाग, ईब्ब विश्वविद्यालय, यमन में एसोसिएट प्रोफेसर

बीमार, बिस्तर पर पड़े-पड़े
कितनी बातें याद आती हैं
बचपन की - बहुत पुरानी बातें
चाँदी के बर्तनों की तरह साफ-शफ्फाफ
चमकती, इतने दिनों के बाद भी

शाम हो गई है, आँगन में बैठी
चूल्हे पर एक औरत, पूर्वमुखी
रोटी बना रही है, एकाग्रचित्त
घर में घुसते ही आलू, बैंगन, सोआ
कि सोंधी खुशबू भूख को तेज कर देती है

सभी एक-एक कर आ रहे हैं
खेल कर वापस, थाली में
खाना लेकर, बड़े आँगन में
बैठकर जमीन पर या टेबल पर
खा रहे हैं, बातें कर रहे हैं, उत्साहित

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GN
एकाग्रचित्त, पूर्वमुखी, संतुष्ट-चुप्प
प्रतीक्षा कर रही है शायद उनका
जो सुबह के खाये काम पर गए हैं
शाम हो गई है, भूख लग गई होगी।

कौन सुनता है
कौन सुनता है दिल के दरिया की दास्तान
सभी दिमाग के घोड़ों पर चढ़े
सरपट भागे जा रहे हैं
अंधे कुएँ के जगत पर बैठने
पानी में अपनी
परछाई देखने को लालायित

कौन सुनता है दिल की आवाज
किसे फुर्सत है दिमाग के जंग
को कुएँ पर नहाते समय
खुरचकर साफ करने की
डोल से माथे पर पानी डाला
और मंत्र का उच्चारण शुरू

पुत्र, धन, जमीन और मकान
की इच्छा परिपूर्ण कर
शायद हल्ला करने से ही सुनेगा तू
शोर के जोर से ही लुभाएगा
ये मानव, मन की शांति से नहीं
किसे फुर्सत है सोचने की

कौन सुनता है दिल के दरिया का संगीत
सभी दिमाग के घोड़ों पर चढ़े
सरपट भागे जा रहे हैं।

(साभार- गर्भनाल)

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