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कन्यादान

- परवीन शाकिर

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बाल संदल के पानी में भीगे हुए
जिस्म चंदन के मस1 से दमकता हुआ
आँख ख्वाबों की अफ्शाँ2 से बोझल बहुत
होंठ पर अनकही का मजा!

गोरी-गोरी कलाई से लिपटी हुई मोतियों की लड़ी
सुर्ख जरतार3 जोड़े में सिमटी हुई एक कच्ची कली
गाहे-गाहे झलकती हुई मोहिनी शक्ल वह- चाँद-सी
चूडि़यों की खनक
और पायल की छनछन से छनती हुई
कैसी प्यारी हँसी
तिस पे सखियों की वह छेड़ कि
आइने से भी नजरें मिलाई नहीं जा सकें!
शामियाने के परली तरफ,
वक्त के जब्र4 के सामने,
चुप खड़ी ममता-
जिसके चारों तरफ
तश्‍ना5 होठों, गुर्सता6 निगाहों, लटकती जुबानों, बदनगीर7,
गुर्राहटों का अजब गोल है
और उसी गोल से
अपनी नाजों की पाली की खातिर
बड़े सब्र से
एक मजबूर हिरनी की सूरत वह चुन लाई है
इक जरा कम-जरर8 भेडि़या!

1. स्पर्श 2. सुनहरा 3. सोने के या सुनहरी तारों से बना हुआ 4. अत्याचार 5. प्यासे 6. भूखी 7. शरीर पर छाने वाली 8. कम हानि पहुँचाने वाला।

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