किनारा
- आदित्य नारायण शुक्ला 'विनय'
सम्प्रति: कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी में 'कम्युनिटी सर्विस ऑफिसर' के पद पर कार्यरत व स्वतंत्र लेखन। प्रकाशन: तीन कहानी संग्रह प्रकाशित (1) प्रधानमंत्री की प्रेमिका (2) अभिनेत्री का पत्र (3) मरुभूमि पर बहार (4) शीघ्र प्रकाश्य।
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मेजर रामसिंह (रिटायर्ड)' धरम दास ने अपना चश्मा ऊपर-नीचे कई बार सरका कर सीढ़ी के पास लगा वह नेमप्लेट पढ़ा और अपना बन्दूक सम्हाल लिया। फिर अपने साथ लाए किराए के दो गुंडे साथियों से बोला 'लगता है वह कमीना यहीं रहता है। आओ ऊपर चलकर देखते हैं। फिर दनादन सीढियाँ चढ़ते हुए तीनों आदमी ऊपर वाले घर के सामने जाकर खडे हो गए। धरम दास ने दरवाजे के पास लगे कॉलबेल का बटन दो-तीन बार दबाया। जब दरवाजा नहीं खुला तो उसने उस पर एक जोर की लात लगाईं। तब दरवाजे के दोनों पट खुल गए। वैसे दरवाजा भीतर से बंद था भी नहीं। रामसिह बाथरूम में नहा रहे थे और जमुना उनके लिए भोजन बना रही थी। जब भी जमुना उनके घर में होती वे दरवाजा भीतर से कभी बंद करते भी नहीं थे। दाल का तड़का जल जाता यदि जमुना दरवाजा खोलने जाती। इससे पहले कि जमुना दरवाजे की ओर जाती मेजर रामसिंह नहा-धोकर निकल आए थे और पैजामा-कुर्ते के ऊपर गाउन पहने आगंतुकों के पास आ खड़े हुए। धरम दास और उसके साथियों के सामने एक 6 फुट 2 इंच कद का हृष्ट-पुष्ट मर्द खडा था। कहिए, मै आप लोगों की क्या खिदमत कर सकता हूँ?' मेजर साहब ने विनम्रता से उनसे कहा।'
तो तुम्ही हो जिसने मेरी बीवी को जबरदस्ती अपने घर में बिठा रखा है...' धरम दास क्रोध से बड़बडा़या। फिर वह अपने साथियों की ओर मुखातिब हुआ और बोला। देखते क्या हो? इसे पकड़ कर सीधे पुलिस-स्टेशन ले चलो। वही इसे जेल ले जाएगी। पकड़ लो इसे। धरम के दोनों साथी मेजर साहब को पकड़ने के लिए आगे बढे। तभी मेजर साहब ने उन दोनों को एक-एक करके उठा लिया और कमरे के एक-एक कोने में फेंक दिया। दोनों आदमी बड़ी मुश्किल से उठे और दुम दबाकर कमरे से बाहर भाग गए।यह देख धरम घबरा गया और उसने अपनी बन्दूक सम्हालने की कोशिश की। तब मेजर साहब ने उससे कहा। 'भाई साहब, आपने बन्दूक उलटी पकड़ रखी है। जरा इसे सीधा पकडें, इस तरह।' रामसिंह धरम की बन्दूक सीधी करते हुए मुस्कुराएँ। फिर उससे पूछा 'क्या आपने कभी बन्दूक चलाई भी है?''
तो क्या...... 'क्या तुमने चलाई है?' धरम कह उठा। '
वैसे 30 सालों से यही मेरा पेशा था' मेजर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा।
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ओके ओके.........। चलो मेरी बीवी को निकालो। मै उसे तुम्हारे चंगुल से निकालने आया हूँ। उसे आज मैं अपने घर लेकर जाऊँगा।''
कौन है आपकी बीवी? ''
जानते हुए भी पूछते हो। जमुना मेरी पत्नी है ''
अच्छा-अच्छा तो आप जमुना के एक्स-हजबैंड यानी की पूर्व-पति हैं।''
पूर्व-पति के क्या मायने। मैंने उसे कभी तलाक थोडी न दिया है। वह आज भी मेरी पत्नी है।''
ओह ये तो मै भूल ही गया था कि आपने जमुना जी को तलाक दिया ही नहीं है।'फिलहाल इस दृश्य या घटनाक्रम को यहीं छोड़ दें।जैसा कि रामसिंह जी के नेमप्लेट से जाहिर था वे सेना से अवकाश-प्राप्त मेजर थे। वे कई युद्धों में भाग ले चुके थे। कारगिल-युद्घ में उनकी वीरता के लिए उन्हें 'परम वीर चक्र' से भी सम्मानित किया गया था। इस युद्घ में उनके बाएँ पैर की एडी में एक गोली लगी थी। गोली तो सर्जरी करके निकाल दी गई थी पर घाव भरने के बाद भी वे हल्का-सा लंगडा कर चलते थे। इसीलिए उन्हें 50 वर्ष की उम्र में ही सेना से ससम्मान अवकाश दे दिया गया था।डॉक्टर ने कहा था कि उनका यह 'लंगडाना' वक्त के साथ-साथ कम भी होता जाएगा। अब तो शायद ही कोई उनके बाएँ पैर की यह हलकी-सी कमी नोटिस कर पाता था। रिटायर होने के बाद पिछले दो साल से वे इस किराए के मकान में आकर रहने लगे थे। उनके घर में आने-जाने के लिए बाहर से ही सीढियाँ थीं।इस तरह से लैंडलार्ड के घर से होकर रोज गुजरने का कोई झंझट नहीं था। किराए के इस घर में दो बेडरूम, किचन, बाथरूम व एक खुली छत थी जो मेजर साहब के लिए काफी थे। वे अकेले थे, उन्हें जितना पेंशन मिलता था वह उनके लिए पर्याप्त से भी अधिक था।मकान-मालिक सपरिवार नीचे वाले घर में स्वयं रहता था। जब रामसिंह दो साल पहले इस किराए के मकान में रहने आए तब गृहस्वामी मोहनलाल के परिवार में पत्नी-बच्चों के अलावा उसकी एक 43 वर्षीया 'परित्यक्ता' बहन जमुना भी साथ रहती थी।मोहनलाल व उसके परिवार के सदस्यों से रामसिंह जी के संबंध बड़े ही मधुर थे। जब उन्हें वहाँ रहते डेढ़ साल हो गए थे तब एक दिन रामसिंह जी ने अपने गृहस्वामी से कहा 'यदि आपको अनुचित न लगे तो एक बात कहूँ।?''
बड़े शौक से कहिए' मोहनलाल ने कहा।'
मुझे भोजन बनाने की आदत नहीं है। इसीलिए अक्सर बाहर खाता हूँ। यदि जमुना जी मेरे लिए भोजन बना दिया करें तो उनका मुझ पर बहुत बड़ा एहसान होगा। जो खाना बनाएगा वह तो साथ खाएगा या खाएगी ही। वे जो उचित समझें मैं उन्हें हर माह कुछ रकम भी दे दिया करूँगा।'
जब उसने इसकी चर्चा अपनी पत्नी से की तो उसने तो तुंरत ही इसकी अनुमति दे देने को कह दिया। आखिर वह जमुना की भाभी थी। जमुना का उनके साथ रहना और मुफ्त की रोटियाँ तोड़ना उसे जरा भी न सुहाता था। उसने सोचा 'चलो इसी बहाने जमुना के खाने का खर्च बचेगा और अपने प्रायवेट खर्च के लिए भी वह कुछ पैसे कमा लेगी।' जब जमुना से पूछा गया तो उसने भी मेजर साहब के लिए खाना बनाना सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस तरह से जमुना कोई 6 माह से रामसिंह जी के लिए भोजन बना रही थी। उसका बनाया खाना उन्हें बेहद पसंद भी आता था।
जमुना बड़े ही मधुर और विनम्र स्वभाव की महिला थी। जब वह 20 वर्ष की थी तब उसकी शादी धरम दास के साथ हो गई थी। जब शादी के सात साल बाद भी उसके कोई बाल-बच्चा न हुआ तो उसके पति ने उसे स्थायी रूप से उसके मायके पहुँचा दिया और दूसरी शादी कर ली।
जब धरम दास की दूसरी पत्नी से भी कोई बाल-बच्चा न हुआ तब सभी समझ गए कि कमी उसी में है। जब जमुना को धरम दास उसके मायके छोड़ गया था तब जमुना के माँ-बाप जीवित थे। उनके देहांत के बाद उसे अपने भैय्या-भाभी की शरण में रहना पड़ा। अपनी भाभी के दुष्ट स्वभाव से वह हमेशा परेशान रहती थी। अपने लिए एक छोटी-सी चीज खरीदने के लिए भी उसे अपनी भाभी की दस बार खुशामद करनी पड़ती थी। अपनी भाभी की छोड़ी पुरानी साडी-ब्लाउज ही हमेशा उसे पहनना पड़ता था। पर जब से वह मेजर साहब के लिए भोजन बना रही थी तब से वह कुछ पैसे भी कमा रही थी और अब स्वावलंबी भी होती जा रही थी। उसने अपने लिए कुछ नए कपडे़ व हलके से गहने भी खरीद लिए थे।
उसे मेजर साहब का स्वभाव भी बेहद पसंद था। उसके रोज आने-जाने से मेजर साहब का उसके प्रति लगाव भी बढा़। उसकी करुण कहानी मोहन उन्हें पहले ही बता चुके थे जिससे वे बड़े द्रवित रहते थे। कभी-कभी मोहन लाल सपरिवार जब घर से बाहर चले जाते थे तो जमुना के लिए मेजर साहब बहुत बड़ी ताकत और सहारा थे। उनके घर के ऊपर रहते वह किसी प्रकार के डर का अनुभव नहीं करती थी।
एक बार ऐसा हुआ कि मोहन लाल सपरिवार घर से बाहर थे। रात को जमुना घर में अकेली सो रही थी। आधी रात को किसी ने कॉलबेल बजाया। जमुना ने दरवाजे के छेद से बाहर के लाइट में देखा तो कोई अनजान आदमी बाहर खडा था। जब वह लगातार कॉलबेल बजाता ही रहा तो उसने मेजर साहब को ऊपर फोन किया और यह बात बताई। तब मेजर साहब टॉर्च लेकर नीचे उतरे। वह अनजान आदमी उन्हें नीचे उतरते देख वहाँ से दौड़ता हुआ रफू-चक्कर हो गया।
तब रामसिंह जी ने जमुना से कहा- 'यदि आपको कोई ऐतराज न हो तो आप ऊपर मेरे घर जाकर एक कमरे में सो जाएँ। मैं यहाँ नीचे आपके घर में सो जाता हूँ।' जमुना तो ऊपर नहीं गई बल्कि उसके आग्रह करने पर रामसिंह ही नीचे बरामदे में सो गए थे। पास ही एक कमरे में जमुना सो गई थी।
रामसिंह और जमुना के मधुर-संबंधों की बात न जाने कैसे धरम दास के कानों तक पहुँच गई। शायद हमारे पुरुष-प्रधान समाज ने ही पहुँचा दिया होगा। धरम दास का 'पुंसत्व' बुरी तरह आहत हुआ। फलस्वरूप वह अपना आक्रोश नहीं रोक सका और किराए के दो आदमी लेकर आज वह अपनी 'तथाकथित पत्नी' को लेने पहुँच गया था।
अब आइए पहले वाले दृश्य पर ही वापस चलते है।
'हाँ तो जमुना को बाहर निकालो....।' धरम दास ने पुनः कहा।
'जमुना जी इधर आइए। आपको कोई लेने आया है। 'मेजर साहब ने उसे आवाज दी।
थोड़ी ही देर में जमुना वहाँ आकर खडी हो गई। उसे देख धरम दास को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। 45 की उम्र में भी वह 35 से अधिक की नहीं लग रही थी। सुन्दर-सी मैचिंग साडी-ब्लाउज और नाक-कान के हल्के से गहनों में ही जमुना का रंग-रूप निखर आया था। सूखी नार पर मानो हरी-भरी कोपलें फूटने लगी थी।
'जमुना, मैं तुम्हे लेने आया हूँ। चलो अपने घर चलो।'
'आज 18 साल बाद अचानक तुम्हे मेरी याद कैसे आ गई?' जमुना ने व्यंग्य से कहा।
'ऐसी बात नहीं है जमुना, याद तो मैं तुम्हे हमेशा करता हूँ।'
'अगर मुझे याद करते तो दूसरी शादी कभी न करते।'
'ओ क्या है न कि जब तुम्हारे कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ तो मुझे सबके कहने पर दूसरी शादी करनी पड़ी।'
'तो दूसरी शादी करके अब कितने बच्चे पैदा कर लिए तुमने?'
धरम दास चुप।
'अरे जो मर्द दो-दो बीवियों से एक चूहा तक न पैदा कर सका ओ बच्चे क्या पैदा करेगा।' जमुना ने पुनः व्यंग्य से कहा।
जमुना का यह व्यंग्य सुनकर मेजर साहब अपनी हँसी बड़ी मुश्किल से रोक पाए। उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि सीधी और भोली-भाली जमुना ऐसे व्यंग्य बाण भी चला सकती है।
'आज किस अधिकार से तुम मुझे यहाँ लेने चले आए। पिछले 18 सालों में तुमने एक दिन भी आकर पूछा कि मैं यहाँ कैसी हूँ। मुझे किसी चीज की जरूरत है या नहीं। मेरे पास एक पैसा भी है या नहीं। यदि आज यहाँ मेजर साहब नहीं आए होते तब तो मैं एक-एक पैसे के लिए मोहताज हो गई होती। नाम तो तुम्हारा धरम दास है पर शायद तुमसे बड़ा अधर्मी इस दुनिया में कोई भी नहीं होगा....।' जमुना उसे लताड़ती रही।
'......जमुना, तुम्हे मेरे साथ चलना है या नहीं? ' धरम दास ने फिर पूछा।
'कभी नहीं। और आइन्दा अपनी मनहूस शक्ल दिखाने अब मेरे सामने कभी आना भी नहीं।' जमुना ने अपना अंतिम फैसला उसे सुना दिया। दुःख और क्रोध से उसके आँसू छलक आए थे और अपने दुर्भाग्य पर वह फूट-फूट कर रोने लगी।
धरम दास चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया। उसके जाने के कुछ देर बाद मेजर साहब ने आज पहली बार जमुना के घर में रहते दरवाजा भीतर से बंद कर लिया। उन्होंने जमुना को अपनी छाती से लगा लिया।
'इस आदमी ने मुझे कहीं का न रखा मेजर साहब। इसने मुझे बिलकुल बेसहारा करके छोड़ दिया....।' जमुना सिसक-सिसक कर कहती जा रही थी।
'मेरे रहते आप बेसहारा कैसे हो सकती है....?' रामसिंह जी देर तक जमुना को प्यार से समझाते रहे।
'मै तो आपको अपने साथ ही रख लेता पर हमारा ये दुष्ट समाज हमें चैन से जीने नहीं देगा। गैर शादी-शुदा मर्द-औरत का एकसाथ रहना वह सहन नहीं कर सकता क्योंकि ये अमेरिका नहीं हिंदुस्तान है। यदि आपका तलाक हो जाय तो क्या आप मुझसे शादी करना चाहेंगी ?' रामसिंह ने जमुना से पूछा।
जमुना ने स्वीकृति में अपना सिर हिला दिया।
'ये हुई न बात।'
तो मैं कल ही वकील से मिलकर आपके तलाकनामे के कागजात तैयार करने को कहता हूँ। चूँकि धरम दास दूसरी शादी कर ही चुके हैं और आप काफी अरसे से उनसे अलग रह रही हैं इसलिए उनसे आपका तलाक बहुत जल्द हो जाएगा।
फिर वातावरण की गंभीरता को हल्का करने के लिए रामसिंह जी ने जमुना से कहा।
'जमुना जी आप दाल-सब्जी में तड़का ऐसा जबरदस्त लगाती हैं कि उसकी खुशबू से मेरी भूख कई गुना बढ़ जाती है। खाना बन गया है क्या?'
'जी हाँ '
'तो फिर हम देखते क्या हैं? आइए दोनों मिलकर खाना खाते हैं। आइए आइए.....' और मेजर साहब जमुना के कंधों पर हाथ रख कर उसे स्नेह से धकेलते हुए डायनिंग टेबल की ओर ले गए। जमुना अब मुस्कुराने लगी थी।