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दामिनी

- सुमन वर्मा

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बलात्कार की चोटों से मैं
रोऊं और चिल्लाऊं
अंग-अंग मोरा टूट रहा है
और दर्द से मैं कराहूं
अंदर-बाहर से घायल हूं मैं
कैसे तुझे दिखाऊं...

शैतानों की बस्ती में बहनों
सदा संभलकर रहना
फूंक-फूंककर कदम तुम रखना
और बहकावे में न आना
जीवन का गहरा राज़
कभी तुम मां से नहीं छिपाना
पुलिस को रिपोर्ट लिखाकर जल्दी से
शैतानों को जेल भिजवाना...

नाम है मेरा दामिनी
मैं हूं इक निर्भयी नारी
सब कुछ मोरा लूट चुका है
अब है मोरे जाने की बारी
मेरा वक्त अब आ गया है
अलविदा मुझे तुम कहना
मेरी याद में आंसू बहाकर
समय नष्ट नहीं करना...

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