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प्रवासी कविता : घरौंदे

- हरकीरत हीर

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उसने कहा :

तुम तो शाख से गिरा

वह तिनका हो

जिसे बहाकर कोई भी

अपने संग ले जाए

मैंने कहा :

शाख से गिरे तिनके भी तो

घरौंदे बन जाते हैं

किसी परिंदे के।

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