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प्रवासी कविता : प्यार
- सुधा मिश्रा
क्या पशु-पक्षी क्या आकाश, क्या गंगा और क्या कैलाश।इस जगती मैं कौन है ऐसा, जिसे नहीं है प्यार की प्यास।।प्यार है शाश्वत प्यार अजर है, प्यार मिले कामना अमर है।प्यार से बनते बिगड़े कारज, प्यार से मिलता है कर्तार।भाव प्रेम के अजब निराले, कुछ ना कहकर सब कह डाले।प्यार की भाषा सब पहचाने, अपने हों या हों बेगाने।।हों नभचर जलचर या थलचर, सभी में पलती प्यार की प्यास।प्यार के बदले प्यार मिलेगा, ऐसे ही चलता संसार।।प्यार से ही रिश्ते गहराते, बेगाने अपने बन जाते।प्यार बिना हर खुशी अधूरी, प्यार है जीवन का आधार।।प्यार का दामन इतना विस्तृत, जिसमें सारा ब्रह्मांड समाये।प्यार भरा स्पर्श मिले तो, मानव क्या पशु-पक्षी को भाये।प्यार बनाये अटूट बंधन, प्यार से ही होते गठबंधन।प्यार से ही निभते सब रिश्ते, प्यार से ही जीवन सुंदरतम।।प्यार है पूजा प्यार है भक्ति, प्यार में है एक अद्भुत शक्ति।इस शक्ति में प्रभु बिराजते, जो हैं जगत के पालनहार।।बड़े प्यार से जीना जीवन, पल-पल प्यार का साथ निभाना।प्रेम सुधा की दो सौगातें, खुशियों की बगिया की बगिया महकाना।।