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प्रवासी वेदना

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हमें फॉलो करें प्रवासी वेदना
- शशि पाधा

GN
जम्मू में जन्म। जम्मू-कश्मीर विवि से एमए हिंदी, एमए संस्कृत तथा बी‍एड. की शिक्षा। लेख, कहानियाँ एवं काव्य रचनाएँ 'पंजाब केसरी' तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित प्रकाशित काव्य संग्रह 'पहली किरण' तथा 'मानस मंथन'।

उड़ती उड़ती-सी इक बदली
मोरे अँगना आई
मैंने पूछा मेरे घर से
क्या संदेशा लाई?

राखी के दिन भैया ने क्या
मुझको याद किया था
पंख तेरे संग बाँध किसी ने
थोड़ा प्यार दिया था
दीवाली की थाली में जब
सब ने दीप जलाएँ होंगे
मेरे हिस्से के दीपों को
किसने थाम लिया था?

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GN
सच बताना प्यारी बहना
क्या तू देख के आई
उड़ते-उड़ते मेरे घर से
क्या संदेशा लाई

मेरी बगिया के फूलों का
रंग बताना कैसा था
उन मुस्काती कलियो में
क्या कोई मेरे जैसा था
मेरे बिन आँगन की ‍तुलसी
थोड़ी तो मुरझाई होगी
हार श्रृंगार की कोमल बेला
कुछ पल तो कुम्हलाई होगी

बचपन की उन सखियों को
क्या मेरी याद सताई
मैंने पूछा मेरे घर में
क्या-क्या देख के आई

आते-आते क्या तू बदली
गंगा मैया से मिल आई
देव नदी का पावन जल क्या
अपने आँचल में भर लाई
मंदिर की घंटी की गूँजें
कानों में रस भरती होंगीं
चरणामृत की शीतल बूँदें
तन-मन शीतल करती होंगी

तू तो भागों वाली बदली
सारा पुण्य कमा कर आई
उड़ते-उड़ते प्यारी बहना
किस से मिल के आई

अब की बार उड़ो तो बदली
मुझको भी संग लेना
अपने पंखों की गोदी में
मुझको भी भर लेना
ममता मूर‍‍त मैया को जब
मेरी याद सताएगी
देख मुझे तब तेरे संग वो
कितनी खुश हो जाएगी

याद करूँ वो सुख के पल तो
अँखियाँ भर-भर आईं
उड़ते-उड़ते प्यारी बदली
क्या तू देख के आई

और न कुछ भी माँगूँ तुमसे
बस इतना ही करना
मेरी माँ का आँगन बहना
खुशियों से तू भरना
सरस स्नेह की मीठी बूँदें
आँगन में बरसाना
मेरी बगिया के फूलों में
प्रेम का रंग बिखराना

जब-जब भी ‍तू लौट के आए
मुझको भूल न जाना
मेरे घर से खुशियों के
संदेश लेते आना।
घड़ी-घड़ी में अम्बर देखूँ
कब तू लौट के आई
मेरे घर से प्यारी बदली
क्या संदेशे लाई?'

साभार - गर्भनाल

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