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- डॉ. सुनील जोगी

GN
बहुचर्चित कवि। लगभग 75 पुस्तकें प्रकाशित। विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में स्तंभ लेखन के ‍अलावा अनेक टीवी चैनलों पर प्रस्तुतियाँ दी हैं। अमेरिका, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे, दुबई, ओमान, सूरीनाम की काव्य यात्राएँ की हैं। नई पी‍ढ़ी के कवियों में ऊर्जावान रचनाकार के तौर पर ख्याति। मंच पर अद्‍भुत प्रस्तुति देने में महारत। ' हास्य वसंत' त्रैमा‍‍‍सिकी का संपादन करते हैं

किसी की खातिर अल्ला होगा किसी की खातिर राम
लेकिन अपनी खातिर तो है, माँ ही चारों धाम
जब आँख खुली तो अम्मा की, गोदी का एक सहारा था
उसका नन्हा सा आँचल मुझको, भूमंडल से प्यारा था
उसके चेहरे की झलक देख, चेहरा फूलों-सा खिलता था
उसके स्तन की एक बूँद से, मुझको जीवन मिलता था
हाथों से बालों को नोंचा, पैरों से खूब प्रहार किया
फिर भी उस माँ ने पुचकारा, हमको जी भर प्यार किया
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ND
मैं उसका राजा बेटा था, वो आँख का तारा कहती थी
मैं बनूँ बुढ़ापे पे उसका, बस एक सहारा कहती थी
उँगली पकड़ चलाया था, पढ़ने विद्यालय भेजा था
मेरी नादानी को भी, निज अंतर में सदा सहेजा था
मेरे सारे प्रश्नों का वो, फौरन जवाब बन जाती थी
मेरी राहों के काँटे चुन वो, खुद गुलाब बन जाती थी
मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से, इक रोग प्यार का ले आया
जिस दिल में माँ की मूरत थी, वो रामकली को दे आया
शादी की पति से बाप बना, अपने रिश्तों में झूल गया
अब करवा चौथ मनाता हूँ, माँ की ममता को भूल गया
हम भूल गए उसकी ममता, मेरे जीवन की थाती थी
हम भूल गए अपना जीवन, वो अमृत वाली छाती थी
हम भूल गए वो खूद, भूखी रहकरके हमें खिलाती थी
हमको सूखा बिस्तर देकर, खुद गीत ले में सो जाती थी
हम भूल गए उसने ही, होंठों को भाषा सिखलाई थी
मेरी नींदों के लिए रातभर, उसने लोरी गाई थी
हम भूल गए हर गलती पर, उसने डाँटा-समझाया था
बच जाऊँ बुरी नजर से, काला टीका सदा लगाया था
हम बड़े हुए तो ममता वाले, सारे बंधन तोड़ आए
बंगले में कुत्ते पाल लिए, माँ को वृद्धाश्रम छोड़ आए
उसके सपनों का महल गिराकर, कंकर-कंकर बीन लिए
खुदगर्जी में उसके सुहाग के, आभूषण तक छीन लिए
हर माँ को घर के बँटवारे की, अभिलाषा तक ले आए
उसको पावन मंदिर से, गाली की भाषा तक ले आए
माँ की ममता को देख, मौत भी आगे से हट जाती है
गर माँ अपमानित होती, धरती की छाती फट जाती है
घर को पूरा जीवन देकर, बेचारी माँ क्या पाती है
रूखा-सूखा खा लेती है, पानी पीकर सो जाती है
जो माँ जैसी देवी घर के, मंदिर में नहीं रख सकते हैं
वो लाखों पुण्य भले कर लें, इंसान नहीं बन सकते हैं
माँ जिसको भी जल दे दे, वो पौधा संदल बन जाता है
माँ के चरणों को छूकर पानी, गंगाजल बन जाता है
माँ के आँचल ने युगों-युगों से, भगवानों को पाला है
माँ के चरणों में जन्नत है, गिरिजाघर और शिवाला है
हिमगिरि जैसी ऊँचाई है, सागर जैसी गहराई है
दुनिया में कितनी खूशबू है, माँ के आँचल से आई है
माँ कबीरा की साखी जैसी, माँ तुलसी की चौपाई है
मीराबाई की पदावली, खुसरो की अमर रुबाई है
माँ आँगन की तुलसी जैसी, पावन बरगद की छाया है
माँ वेद-ऋचाओं की गरिमा, माँ महाकाव्य की काया है
माँ मानसरोवर ममता का, माँ गोमुख की ऊँचाई है
माँ परिवारों का संगम है, माँ रिश्तों की गहराई है
माँ हरी दूब है धरती की, माँ केसरवाली क्यारी है
माँ की उपमा केवल माँ है, माँ हर घर की फुलवारी है
सातों सुर नर्तन करते जब, कोई माँ लोरी गाती है
माँ जिस रोटी को छू लेती है, वो प्रसाद बन जाती है
माँ हँसती है तो धरती का, जर्रा-जर्रा मुस्काता है
देखो तो दूर क्षितिज अंबर, धरती को शीश झुकाता है
माना मेरे घर की दीवारों में चंदा-सी मूरत है
पर मेरे मन के मंदिर में, बस केवल माँ की सूरत है
माँ साक्षात लक्ष्मी, दुर्गा, अनुसुइया, मरियम, सीता है
माँ पावनता में रामचरित, मानस है भगवत गीता है
अम्मा तेरी हर बात मुझे, वरदान से बढ़कर लगती है
हे माँ तेरी सूरत मुझको, भगवान से बढ़कर लगती है
सारे तीरथ के पुण्य जहाँ, मैं उन चरणों में लेटा हूँ
जिनके कोई संतान नहीं, मैं उन माँओं का बेटा हूँ
हर घर में माँ की पूजा हो, ऐसा संकल्प उठाता हूँ
मैं दुनिया की हर माँ के चरणों में, ये शीश झुकाता हूँ।

साभार- गर्भनाल

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