- अभिनव शुक्ल
मेरे प्रगतिशील मित्र
दुनियाभर की ऊटपटांग
बातों में सिर खपाते हैं
मधुमक्खियों के शहद समेटने को
एक रानी मक्खी द्वारा किया
हुआ शेषण बताते हैं
गरीबी को महिमा मंडित करते हुए
एक झूठी लाल सुबह के
सपने दिखाते हुए...
कुछ लोग कहते हैं
सभी बुराइयों की जड़ में पैसा है
कुछ कहते हैं
पैसे के न होने के कारण ही ऐसा है
मुझे लगता है
इसका धन से कोई संबंध नहीं है
बुरा या भला होना मात्र एक पड़ाव है
और यह मानव का नितांत
व्यक्तिगत चुनाव है
ऐसा कौन-सा स्थान है
जहाँ बुराई और भलाई की
एक-दूसरे से चुनौती नहीं है
यह किसी एक वर्ग की बपौती नहीं है
ईश्वर की सत्ता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं
पुरस्कारों और कुर्सियों के निकट पाए जाते हैं
पहनते हैं फटा हुआ कुर्ता दिखाने को
शाम होते ही मचलते हैं
मुर्गा खाने को
नशे में डूबे हुए
पलके झपकाते हुए
गालियाँ बकते हुए
प्रगति से चिपकते हुए
मेरे प्रगतिशील मित्र।
साभार : गर्भनाल