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युवा का जीवन लक्ष्य - भाग 1

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हमें फॉलो करें युवा का जीवन लक्ष्य - भाग 1
- उषा राजे सक्सेना

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इंग्लैंड में प्रवासी भारतीय के रूप में जानी-मानी लेखिका। आपका लेखन गुजरी सदी के आठवें दशक में साउथ लंदन के स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं एवं रेडियो प्रसारण द्वारा प्रकाश में आया। रचनाएँ विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित एबं जापान के ओसाका वि.वि. के पाठ्‍यक्रम में भी शामिल।

ब्रिटेन की हिंदी साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका 'पुरवाई' की सह-संपादिका तथा हिंदी समिति यू.के. की उपाध्यक्ष हैं। तीन दशकों तक ब्रिटेन के बॉरो ऑफ मर्टन की शैक्षिक संस्थाओं में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहीं। प्रमुख कृतियाँ- काव्य- संग्रह : विश्वास की रजत सीपियाँ, इंद्रधनुष की तलाश में। कहानी संग्रह : प्रवास में, वॉकिंग पार्टनर।

पुश युवा... पुश हार्ड, जस्ट वन मोर पुश एन्ड यू आर देयर' कहते हुए मिडवाइफ ने सोलह वर्षीय उठंग लेटी युवा को पुचकारते हुए हिम्मत बँधाई। पास खड़ा इयन एक हाथ से उसके माथे पर आए पसीने को टिश्यू से पोछ रहा था और दूसरे हाथ से उसकी हथेली को सहला रहा था। युवा की दर्दीली चीखें इयन को नर्वस कर रही थीं। 'ट्राय युवा, ट्राय हार्ड माई डार्लिंग' कहते हुए वह खुद रोने लगा। नर्स ने 17 वर्षीय इयन को मीठी झिड़की देते हुए कहा, 'डोन्ट बी सिली इयन, कंट्रोल योरसेल्फ़। शी इज जस्ट देयर।'

इयन की बाँहों पर युवा की पकड़ और सख्त हो गई। उसने अपनी सारी शक्ति बटोरते हुए आँखें बंदकर, एक लंबी साँस खींची और पेट के निचले हिस्से तथा दोनों टाँगों के बीच जोरों का एक अंतिम धक्का मारा और अचानक भयंकर चीख के साथ दर्द से हुँकारता उसका बदन तनावमुक्त हो गया।

'कॉग्रेचुलेशन्स! युवा तुमने एक बेहद खूबसूरत बच्चे को जन्म दिया है।' कहते हुए नर्स ने उसकी खुली छाती पर बच्चे को लिटा दिया। 'मेरा बच्चा! ओह! मेरा अपना बच्चा' कहते हुए उसने बच्चे के बदन की ऊष्मा को अपने अंदर आँख बंदकर समोया।

'कैसी कोमल और सुनहरी त्वचा है मेरे आर्यन की। वेल्कम इन-टु अवर वर्ल्ड आर्यन' कहते हुए युवा ने अपने ब्वाय-फ्रैंड इयन की ओर देखा।

'अ परफेक्ट बेबी इजन्ट ही, सुर्ख होंठ, खूबसूरत गाल, ढेरों काले बाल! हम माँ-बाप बन गए, इयन!'
'यस युवा, अवर बेबी इज अ परफेक्ट बेबी, पर क्या मैं आर्यन को गोद में ले सकता हूँ।' खुशी से इयन की आँखें छलछला आई थीं। युवा ने एहतियात से पोटली में लिपटे आर्यन को उठाकर इयन की आतुर बाँहों में डालते हुए उसके उत्फुल्ल-उत्सुक चेहरे को देखा, इयन भावविभोर आर्यन को बाँहों में इस तरह सहेज रहा था मानो वह काँच का बना हो।

'देख न युवा, आर्यन की आँखें बिलकुल मेरे जैसी हैं! हैं ना? पर नाक और बाल तेरे जैसे, हमारा बेटा अपनी मम्मी को खूब प्यार करेगा, करेगा न?' कहते हुए इयन ने अपने बेटे के माथे पर एक नाजुक-सा चुम्बन जड़ा।

नन्हे से आर्यन को, इयन की मजबूत कसरती बाँहों में देखकर युवा का दिल प्यार से इस तरह छल-छल छलक उठा जैसे मूसलधार बारिश में सागर की लहरें छलक उठती हैं। ऐसा प्यार भरा सुँदर जीवन भला कितनों ने जाना है।

माँ बनना ही युवा के जीवन का एक मात्र लक्ष्य था। इयन ने प्यार से उसकी कोख में बीज डाला और वह उस बीज को पूरे नौ महीने अपने देह के अंदर महसूस करती रही। आज वह बीज फूल बनकर उसकी बाँहों में मुस्करा रहा है। उस जैसा खुशनसीब शायद ही दुनिया में कोई हो, उसने सोचा। पर अपने मम्मी-डैडी के बारे में सोच कर युवा कुछ अनमनी हो गई।

मम्मी-डैडी ने उसके मन को कभी समझने की कोशिश नहीं की। उनकी बस एक ही रट थी, 'युवा तुम्हें खूब पढ़ना है और एक सफल प्रोफेशनल बनना है।' पर युवा की जरूरत कुछ और थी। पंद्रहवाँ लगते-लगते युवा के किशोर बदन में चाहत की चुलबुली बिजलियाँ दौड़ने लगीं। उसे पढ़ाई नहीं, नन्हे-नन्हे गोल-मटोल बच्चे पसंद थे। मम्मी-डैडी की हर वक्त पढ़ो-पढ़ो की रट ने उसकी जिंदगी हराम कर रखी थी। इधर पढ़ाई-लिखाई में उसका मन नहीं लगता उधर मम्मी-डैडी की समझ में नहीं आता कि उनकी बेटी युवा जो अच्छी-ख़ासी इंटेलिजेन्ट है कल तक हर साल मेरिट में रहती थी अब अचानक जब गंभीर पढ़ाई का वक्त आया है तो किताबों से नाता ही नहीं रखना
चाहती है। क्या करें, कैसे समझाएँ उसे? उनके सभी दोस्तों के बच्चे खूब महत्वाकांक्षी हैं। उनके मन में अच्छे-ऊँचे दर्जे के प्रोफेशनल बनने की चाह है।

बस युवा ही ऐसी क्यों है जिसे पढ़ना-लिखना अच्छा ही नहीं लगता? वे झल्ला उठते, उनकी समझ में ही नहीं आता कि वे युवा को क्या कहें? और उसे कैसे समझाएँ? स्कूल के खुले सत्र (ओपन इवनिंग) में मम्मी-डैडी की युवा के फ़ार्म टीचर से तेज बहस हो गई। टीचर ने भी उन्हें खरा-खरा सुना दिया, 'मिसेज माथुर, क्या बात है तुम सारे इंडियन पेरेन्ट्‍स ऐसे महत्वाकांक्षी क्यों होते हो कि बच्चों की
निजी आवश्यकताओं को अनदेखा कर जाते हो? क्या डॉक्टर-इंजीनियर बन जाना ही सफलता की कसौटी है? युवा अच्छी वेलबिहेव्ड लड़की है, पढ़ने-लिखने में ठीक-ठाक रुचि लेती है।

स्कूल में उसकी अच्छी रेपुटेशन है। वह संवेदनशील है। सामाजिक कार्यों में रुचि रखती है। आप लोग शायद उससे कुछ ज्यादा ही अपेक्षा करते हैं। उसके मन को समझने की कोशिश करिए। इस उम्र में मानसिक तनाव अच्छा नहीं है, बच्चे विद्रोही हो जाते हैं और एक वक्त ऐसा आ जाता है कि माँ-बाप के ऊपर से उनका भरोसा उठ जाता है।'

घर आकर मीरा देर तक बड़बड़ाती रहीं। पता नहीं ये अँग्रेज टीचर्स कैसे होते हैं? बच्चों में महत्वाकांक्षा तो पैदा ही नहीं करते। अरे! पढ़ेगी-लिखेगी नहीं तो क्या हम माथुरों की नाक कटाएगी! सही बात तो यह है कि युवा को ज्यादा पढ़ने-लिखने की चाह नहीं है। वह इतना जरूर पढ़ लेती है कि उसे 'पास मार्क्स' मिल जाते हैं। उसे तो घर-गृहस्थी के कामों में आनंद आता है।

अपनी तरफ़ से वह मम्मी-डैडी को खुश रखने की पूरी कोशिश करती। घर के सारे काम वह मम्मी-डैडी के घर आने से पहले कर डालती है जबकि उसकी तमाम सहेलियाँ घर के कामों को हाथ तक नहीं लगाती हैं। खाना तो वह मम्मी से कहीं अच्छा बनाने लगी है।

परिवार के सभी मित्र उसकी तारीफ़ करते हैं पर मम्मी-डैडी का पारा हमेशा चढ़ा ही रहता है। कई बार तो गुस्से में आकर मम्मी किशोरी युवा के बाल खींचते हुए उसे दो-चार चाँटे भी जड़ देती है... पर युवा पर कोई असर नहीं पड़ता। रोज-रोज की डाँट-डपट से अब युवा उद्दंड और विद्रोही होती जा रही है। धीरे-धीरे उसके मन में मम्मी-डैडी के प्रति अपमानजनक विचार जड़ें जमाते जा रहे हैं। (क्रमश:)

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