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विदेशी कविता : आईना
- डॉ. परमजीत ओबराय
आईना वही हैचेहरे बदल गएपुराने चेहरे लगे दिखनेअब नए-नए।भावनाएं डूब गईं अब अंतर्गुहा मेंदिखावा हो गया प्रधानआज के इस जहान में।रिश्ते वहीव्यवहार बदल गएधरती वही हैलोग बदल गएआत्मा है वहीशरीर बदल गएहेर-फेर के इस प्रांगण मेंहृदय बदल गए।भगवान है तुझमेंन दिया ध्यान तूनेआकर, रहकर शरीर घट मेंबिना आदर पाएचले गए।बाद में पछताने से क्या होगाशरीर तो अब मिट्टी में मिल गए।