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समय की निष्ठुर गतिशीलता का चित्रण

मुनरो के लेखन में संघर्ष का सुंदर चित्रण

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- डॉ. आरसी ओझ

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मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार अविरल रचनाधर्मिता और उत्कृष्ट सृजनशीलता, लगातार विकासशील शैली और वैश्विक साहित्यिक मंच पर आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय समकालीन साहित्यिक जगत की चेखव मानी जाने वाली कनाड़ा की एलिस मुनरो को 2009 का मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। समय की निष्ठुर और असुबोधगम्य गतिशीलता के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक विकास को देखने वाली मुनरो का चयन उनके जीवनकाल के समग्र योगदान के लिए किया गया है। मुनरो अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया के चौदह लेखकों को पीछे छो़ड़कर शिखर पर आ गईं। इनमें महाश्वेतादेवी और वीएस नायपॉल जैसे दिग्गज भी शरीक हैं।

बुकर अलंकार की तरह मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी साहित्य की विशिष्ट विधा उपन्यास, लघु उपन्यास या लघुकथा के लिए दिया जाता है। दोनों में मूल फर्क यह है कि मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार अविरल रचनाधर्मिता और उत्कृष्ट सृजनशीलता, लगातार विकासशील शैली और वैश्विक साहित्यिक मंच पर आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है। बुकर अरुंधती रॉय की तरह एक उपन्यास पर भी दिया जा सकता है। दोनों पुरस्कारों में उपन्यास की गुणधर्मिता होना आवश्यक है। निर्णायकों, जिसमें भारतीय आंग्ल साहित्यिकार अमित चौधरी भी शरीक थे और जिन्होंने 12 देशों से लघु सूची तैयार की थी उसमें एलिस मुनरो का नाम शरीक नहीं था।

एलिस मुनरो की लघु कहानियों में 'अनित्यता और नित्यता' के संघर्ष का सुंदर चित्रण है जिसमें वे कथानक के बजाए चरित्र-चित्रण पर ज्यादा ध्यान देती हैं। यह ऐसा संघर्ष है जिसके सामने समय की निष्ठुर गतिशीलता के समक्ष सबको पराजित होना है। यह दर्शन मूल रूप से चेखव ने प्रस्तुत किया था।

यूनान के रंगमंच के प्रख्यात दर्शन कि 'कथानक साहित्य सृजन की, विशेष रूप से नाटक की आत्मा है', को एलिस ने नकार दिया। यह सिद्धांत यूनान के दार्शनिक अरस्तु ने प्रतिपादित किया था, जो मुनरो की लघु कथाओं में उन्होंने अमान्य कर दिया है। इससे उनकी मौलिकता प्रशस्त हुई और समकालीन साहित्य में वे ज्यादा प्रासंगिक समझी गईं।

  एलिस मुनरो की लघु कहानियों में 'अनित्यता और नित्यता' के संघर्ष का सुंदर चित्रण है जिसमें वे कथानक के बजाए चरित्र-चित्रण पर ज्यादा ध्यान देती हैं। यह ऐसा संघर्ष है जिसके सामने समय की निष्ठुर गतिशीलता के समक्ष सबको पराजित होना है।      
कनाडा में 10 जुलाई, 1931 को जन्मीं एलिस एन. मुनरो ने पश्चिमी ऑन्टेरियो के विश्वविद्यालय में प़ढ़ाई और परिवेषिका के रूप में काम भी किया। वे लाइब्रेरी में क्लर्क रहीं और किशोर अवस्था में ही लेखन में जुट गईं। चूँकि उनकी माँ स्कूल में शिक्षिका थीं, मुनरो का जीवन उसी परिप्रेक्ष्य में पल्लवित हुआ। वे टाल्सटॉय, जेन आस्टीन, जेम्स जॉइस, चेखव से बेहद प्रभावित हुईं और भारतीय लेखिकाओं, जिसमें लाहि़ड़ी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, को प्रभावित किया।

आज एलिस मुनरो उपन्यास की समकक्ष विधाओं में अग्रगण्य मानी जाती हैं। उनकी कहानियों में दैनिक जीवन के आईने से वे मानवीय परिस्थितियों और उनके संबंधों को चित्रित करती हैं। उनकी कहानियों में सुबोधगम्यता और प्रेरणास्पद रसास्वादन उपस्थित है। अमेरिकन रचनाकार और समालोचक सिंथिया ओजिक मुनरो को 'आज के युग की चेखव' मानती हैं। पुरुष पात्रों की अपेक्षा मुनरो ने नारी पात्रों का ज्यादा मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है। इसमें टामस हार्डी की तरह उन्होंने आंचलिक परिवेश को प्रतिष्ठित किया है।

उनके चरित्रों का रीति-रिवाजों और परंपराओं से सामना होता है। इसी संघर्ष के बीच चरित्रों का विकास होता है। एक पुरुष का चित्रण सभी पुरुषों का प्रतीकात्मक ढंग से प्रतिनिधित्व करता है और महिला चरित्र अधिक पेचीदा है। 'डांस ऑव हैप्पी शेड्स' (1968) और 'लाइव्स ऑव गर्ल्स एंड वीमन' (1971) में उनका दर्शन प्रतिपादित हुआ है। उनके जीवन की शुरुआत में द्वैधवृत्ति दिखाई देती है और आगे स्वयं लेखिका विकसित होती जाती है। यही कारण है कि उनका इस पुरस्कार हेतु चयन हुआ। अंततः किसी भी परिस्थिति में पात्र को समझौता करना पड़ता है, क्योंकि वेग गति से आगे बढ़ता समय सबको पीछे छोड़ता जाता है। प्यार भी असफल हो जाता है, जैसे मुनरो का हुआ और उन्हें पहले पति जेम्स मुनरो से तलाक लेना प़ड़ा और उन्होंने जिरेल्ड फ्रेमलिन से दूसरा विवाह किया।

मैन बुकर इंटरनेशल पुरस्कार के लिए चयन के पूर्व उन्हें तीन बार 'गवर्नर्स प्राइज फॉर फिक्शन' दिया जा चुका है। वे कनाडा, अमेरिका और योरप में प्रतिष्ठित लेखिका हैं जिन्होंने मानवीय अवधारणा के साथ जीवन की क्षणभंगुरता को चित्रित किया है।

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