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ड्राइवर सो सकेगा चलती कार में!

लेजर से चलने वाली कार

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फिल्मों में नायक को आपने कार में ब्रश करते, कपड़े बदलते देखा होगा लेकिन क्या आपने वास्तविक जीवन में ऐसी कार के बारे में कल्पना की है जिसका ड्राइवर तेज रफ्तार वाली गाड़ी में खा भी सके, पढ़े भी, टीवी भी देख सके और सो भी जाए। नहीं न लेकिन यह सच हो सकता है। जी हाँ ऐसी संभावना है कि आप कुछ दिनों में ऐसी कार को अपने सामने हकीकत में देखेंगे। और अगर आपको कार चलाना पसंद नहीं या आप ड्राइवर नहीं रखना चाहते तो भी यह आपके लिए खुशखबरी है।

इस कार को बनाने में लगे वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने एक लेजर से चलने वाली कार बनाने में सफलता पाई है। इसमें सेंसर और ताररहित तकनीक के जरिए कारों को लॉक कर दिया जाएगा। वैज्ञानिकों ने एक बार में दस कारों के काफिले को चलाने की क्षमता का भी दावा किया है। वैज्ञानिकों ने बताया कि सेंसर के माध्यम से सभी कारें एक दूसरे से जुड़ी रहेंगी। सिर्फ सबसे आगे की कार के पेशेवर ड्राइवर को ब्रेक और स्टीयरिंग को संभालना पड़ेगा बाकी सभी कारें अपने आप सेंसर के माध्यम से चलेंगी।

यह बिल्कुल किसी बस या रेलगाड़ी में बैठने जैसा होगा कि आप बैठे हैं और यात्रा चल रही है। इस तकनीक में सबसे बड़ी विशेषता यह होगी कि इस काफिले से जब भी आपको निकलना होगा आप निकल सकते हैं और अपनी मंजिल पर आराम से पहुँच सकते हैं।

वॉल्वो कार के सुरक्षा अध्ययनकर्ता जोनास एक्मार्क ने डेली मेल को बताया सबसे आगे की कार का पेशेवर ड्राइवर अपने पीछे चल रहीं कारों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगा लेकिन काफिले में शामिल हो रही कार को थोड़ा सा जोखिम मोल लेना होगा जैसे कोई चलती बस में दौड़कर चढ़ लेता है।

वॉल्वो विशेषज्ञों को अपेक्षा है कि कारों के काफिले में सभी कारों के बीच में करीब तीन फीट की दूरी होगी। किसी नई कार को इस काफिले में शामिल होने के लिए पीछे से आकर अपनी कार को अपने आगे वाली कार की स्टीयरिंग और ब्रेक पैटर्न से जोड़ना होगा।

वैज्ञानिकों ने बताया कि जब किसी कार के ड्राइवर को काफिले को छोड़ना होगा तो यह नई तकनीक उसकी कार को जरूरत की स्लिप रोड में ले जाएगी। अगर कोई कार अपने से धीरे चल रही कार से आगे भी जाना चाहेगी तो वह ऐसा कर सकेगी।

गौरतलब है कि वॉल्वो के अलावा ब्रिटेन की रिकार्डो यूके समेत छह अन्य कंपनियाँ इस परियोजना पर काम कर रहीं हैं। वैज्ञानिकों को अपेक्षा है कि इस परियोजना का परीक्षण स्वीडन के गुटनबर्ग में 2010 के अंत तक कर लिया जाएगा और इसका नमूना 2011 में आ सकता है। इस तकनीक का यूरोप देशों में 2018 तक आने की संभावना है।

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