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भारतीय टेम्पल में प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव

जैन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा 8 जून को

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GN
- उमेताम्ब

विगत दिनों फिलाडे‍‍‍‍ल्फिया के समीप भारतीय टेम्पल में बहुत ही उत्साह के साथ प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव समारोह का आयोजन संपन्न हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया।

21 मई 2009 की शाम से लेकर 25 मई की शाम ‍तक रोजाना पूजा-पाठ और सांस्कृतिक कार्यक्रम संचालित हुए। समापन के समय भव्य शोभा यात्रा निकाली गई जिसमें कलश यात्रा के साथ ढोल-ताशे की धुन पर पालकी में दर्शनीय मूर्तियों को यज्ञशाला से मंदिर के मुख्य गृह ‍तक पहुँचाया गया।

इस अवसर पर विशेष रूप से पधारे विद्वान पंडितों ने मंदिर के काशीराम दीक्षित एवं पंडित विष्णु प्रसाद वास्स्यल को इस पुण्य कार्य को विधिवत मंत्रोचार की गूँजों से भलीभाँति पूर्ण करने में सहयोग दिया।

दक्षिण भारत से आए कुशल शिल्पकारों ने महीनों रात-दिन कार्य करके मंदिर को अत्यंत आकर्षक रूप प्रदान किया। श्री लक्ष्मी नारायण, श्री गणेश, श्री व्यंकटेश बालाजी, श्री राधाकृष्‍ण, श्री रामपरिवार, श्री शिवपरिवार, श्री हनुमान और माँ दुर्गा की अत्यंत लुभावनी और आकर्षक मूर्तियों को देखकर सभी भावविभोर हो उठे। विशेष रूप से जयपुर और महाबलीपुरम् से तराश कर बुलवाई गई इन मूर्तियों में साक्षात ईश्वर का रूप देखने को मिलता है और कालांतर तक अमेरिका के इस अंचल के रहवासियों को निरंतर दर्शन का लाभ मिलता रहेगा।

श्री जैन प्रतिमाओं में शंखेश्वर पार्श्वनाथजी, श्री आदिनाथजी, श्री महावीर स्वामीजी की प्रतिष्ठा इसी देवालय में 8 जून 2009 को हर्षोल्लास के साथ की जाएगी।

उल्लेखनीय है भी भारतीय टेम्पल और कल्चरल सेंटर की नींव जून 2002 में रखी गई थी और अक्टूबर 2004 में भवन का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अनेक स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं ने लाखों घंटों का अथक परिश्रम कर तन-मन एवं धन से इस सुंदर भवन को एक संस्था का स्वरूप प्रदान किया जो वर्तमान में भारतीय समुदाय के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है। साथ ही‍ उम्मीद है कि आने वाली पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और अध्यात्म को आत्मसात करने की दिशा में भी यह मददगार साबित होगा।

भारतीय समुदाय जिसमें लगभग सभी प्रदेशों, भाषाओं और विचारधाराओं के परिवारों का समावेश है। इस भारतीय टेम्पल एवं कल्चरल सेंटर में किसी भी प्रकार के मतभेदों से परे रहकर अनेकता में एकता के भारतीय संदर्भ का अहसास दिलाते हैं जिससे सही मायनों में उनकी 'वसुदेव कुटुंबकम' की परिकल्पना का परिचय मिलता है।

साभार- गर्भनाल

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