ब्रिटिश संसद में ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव सम्मानित
“रिश्तों को बचा रही है भारत की नई ग़ज़ल”– विरेन्द्र शर्मा, ब्रिटिश सांसद
लंदन। 'आलोक श्रीवास्तव की ग़ज़लों ने हमें न सिर्फ़ भावुक किया बल्कि वापस अपने गांव-कस्बों और छूट गए रिश्तों की गर्मजोशी भी याद दिला दी। लंदन के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में बैठे हम सब अपनी अपनी अम्मा और बाबूजी की यादों में खो गए। भारत की हिन्दी ग़ज़ल की संवेदनशीलता का यह नया स्वरूप देखकर मुझे निजी तौर पर बहुत तसल्ली हुई।'
यह कहना था ब्रिटिश सांसद विरेन्द्र शर्मा का। मौक़ा था कथा यूके द्वारा युवा ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव को कथा यूके हिन्दी ग़ज़ल सम्मान 2015 से अलंकृत करने का। कथा यूके की ओर से आलोक श्रीवास्तव को यह सम्मान ब्रिटेन की संसद हाउस ऑफ़ कॉमन्स में 5 नवम्बर को दिया गया।
कथा यूके हिन्दी ग़ज़ल सम्मान ग्रहण करते हुए आलोक श्रीवास्तव ने कहा, “ब्रिटेन की संसद में मेरा सम्मान नहीं हो रहा है बल्कि मुझे महसूस हो रहा है कि इस सम्मान के ज़रिए पूरी हिन्दी ग़ज़ल को विश्व स्तर पर सम्मान मिल रहा है।” इस मौके पर आगे बोलते हुए आलोक श्रीवास्तव ने अपनी लेखकीय यात्रा और विकास का श्रेय अपने सामाजिक परिवेश और सरोकारों को दिया।
कथा यूके के महासचिव और कथाकार तेजेन्द्र शर्मा का कहना था, “आलोक की ग़ज़लें भारत की गंगा जमुनी सभ्यता का प्रतिनिधित्व करती हैं। ग़ज़ल, गीत और दोहे आज एक विकट स्थिति से गुज़र रहे हैं। ऐसे में आलोक की ग़ज़लें हमें आश्वस्त करती हैं कि युवा पीढ़ी के बीच यह विधा आने वाले समय में अपनी लोकप्रियता बरक़रार रख पाएगी।”
कथा यूके की संरक्षक और ब्रिटिश-काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने कहा, “हिन्दुस्तान में ग़ज़ल की ज़बान हिन्दुस्तानी रही है, हिन्दी या उर्दू नहीं। मुझे ख़ुशी है कि आलोक के ज़रिए वहां की नई ग़ज़ल भी उसी ज़बान में बोल-बतिया रही है।”
भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी बिनोद कुमार ने भारतीय उच्चायोग की ओर से आलोक श्रीवास्तव एवं अन्य मेहमानों का स्वागत किया। मानपत्र काव्यरंग की अध्यक्षा जय वर्मा ने पढ़ा और कथा यूके के अध्यक्ष कैलाश बुधवार ने आलोक की ग़ज़ल के सूफ़ी रंग पर एक विस्तृत चर्चा की।
आलोक के ग़ज़ल पाठ को मिला स्टैण्डिंग ओवेशन : बाहर हो रही तेज़ बारिश मानो सभागार में गूँज रही तालियों की आवाज़ से जुगलबंदी कर रही थी। कुछ ऐसे ही माहौल के बीच आलोक श्रीवास्तव ने लगभग पौन घंटे तक अपनी चुनिंदा ग़ज़लों का पाठ किया। उनकी भावपूर्ण ग़ज़लों को कभी तालियों की गड़गड़ाहट से नवाज़ा गया तो कभी दिलों का मर्म श्रोताओँ की नम आंखों से बयां हुआ। लंदन में दिन भर से हो रही तेज़ बारिश के बावजूद ब्रिटिश संसद के सभागार का भरा होना और ग़ज़ल पाठ के समापन पर आलोक को स्टैंडिंग ओवेशन दिया जाना एक यादगार शाम का गवाह बना।
“ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बेख़बर नहीं।”
“घर में झीने रिश्ते मैनें लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती है जाने कब तुरपाई अम्मां।”
“अब तो सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
अम्मा जी की सारी सजधज सब ज़ेवर थे बाबू जी।”