Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

रेखा राजवंशी के ग़ज़ल संग्रह 'मुट्ठी भर चांदनी' का लोकार्पण

Advertiesment
हमें फॉलो करें Book Released
रविवार 23 जुलाई की अपराह्न सिडनी की कवयित्री रेखा राजवंशी की नई किताब 'मुट्ठी भर चांदनी' का विमोचन हुआ। मुख्य अतिथि सिडनी में भारत के कौंसल जनरल वनलाल वावना और स्ट्रैथफील्ड की एमपी सुश्री जोडी मकाय द्वारा विमोचन किया गया।
  
'मुट्ठी भर चांदनी' रेखा राजवंशी द्वारा लिखी हुई ग़ज़लों का संग्रह है जिसका प्रकाशन दिल्ली के एनी बुक प्रकाशन ने किया है। 124 पृष्ठों की इस किताब में कुल मिलाकर 51 ग़ज़लें हैं। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसे द्विभाषी लोग यानी हिंदी और उर्दू के पाठक पढ़ सकते हैं। इस पुस्तक की भूमिका भारत के लोकप्रिय शायर और कवि डॉ. कुंवर बेचैन और लक्ष्मी शंकर बाजपेई ने लिखी है। 
 
सात संस्थाओं के सहयोग से दो घंटे के इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। सिडनी के जाने माने शायर और कवि अब्बास रज़ा अल्वी ने कार्यक्रम का संचालन किया। दीप प्रज्वलन के बाद सिडनी की सुप्रसिद्ध गायिका काकोली मुखर्जी ने कवयित्री द्वारा रचित प्रार्थना गीत 'ईश्वर, अल्ला, जीसस, नानक कितने भी लो नाम, सबका स्वामी एक, बनाए सबके बिगड़े काम’ गाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
webdunia
  
इसके बाद संस्थाओं के अध्यक्ष देव पासी, माला मेहता, डॉ. यादु सिंह, आशीष घोलकर ने कवयित्री के कार्य के बारे में बात की। फिर डॉ. भावना कुंवर ने कुंवर बेचैन जी द्वारा लिखी भूमिका के कुछ अंश पढ़े, जिसमें उन्होंने कहा है- "रेखा राजवंशी की ग़ज़लें नदी के सहज प्रवाह में तैरती हुई नावें हैं। इन्हें पढ़कर सुखद आश्चर्य हुआ। आश्चर्य इसलिए कि विदेश में रहकर किसी में भी ग़ज़ल की इतनी समझ मुश्किल से मिलती है। ये ग़ज़लें ग़ज़ल की रिवायत से भी जुडी हैं और इनमें नवीनता भी है। वे कहती हैं- सीधी सादी तहरीरों में सच्चे मन के टुकड़े हैं, भोले-भाले लफ्ज़ हमारे दुनिया से अनजाने हैं' कहीं-कहीं व्यंग्य है- इक राजा ने सब बाज़ार खरीद लिया, मुफ़लिस कैसे अपनी भूख मिटाएंगे।"
 
इसके बाद सिडनी के भारतीय कौंसल जनरल वनलाल वावना और सुश्री जोडी मकाय ने पुस्तक का विमोचन किया। वनलाल वावना ने रेखा राजवंशी के हिंदी के प्रति समर्पण की प्रशंसा की और एक प्रवासी के अनुभवों से जुडी उनकी कविताओं की सराहना की। एमपी जोडी मकाय ने पिछले साल रेखा द्वारा आयोजित हिंदी सम्मलेन की चर्चा करते हुए ये घोषणा की कि इस किताब की एक प्रति स्टेट लाइब्रेरी में रखी जाएगी।
  
रेखा ने अपनी ग़ज़ल 'चांद रोता रहा न जाने क्यों, दर्द होता रहा न जाने क्यों, मेरी गलियों का एक दीवाना, आज सोता रहा न जाने क्यों' का पाठ किया। सिडनी के सुप्रसिद्ध गायक-गायिकाओं विनोद राजपूत, अपर्णा नगश्यायन, सुहास महाजन, ललित मेहरा ने रेखा की ग़ज़लों का गायन किया। सिडनी के प्रबुद्ध श्रोताओं और गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में पुस्तक लोकार्पण का सफल आयोजन हुआ।
  
दिल्ली के जाने माने ग़ज़लकार लक्ष्मी शंकर बाजपेई जी ने लिखा है "ग़ज़ल की दुनिया में एक सच्ची और अच्छी शायरा का प्रवेश हो रहा है। रेखा जी के शेरों में सादगी है, सहजता है, किन्तु वे सरल शब्दों में गहरी बात कहना जानती हैं।" यह कवयित्री की छठी किताब है। इसके अलावा उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की आदिवासी कहानियों का भी हिंदी में अनुवाद किया है, जो एनीमेशन फिल्म के रूप में उपलब्ध हैं। 
 
रेखा राजवंशी की ग़ज़लें- 
 
1.
अश्कों की बरसातें लेकर लोग मिले 
ग़म में भीगी रातें लेकर लोग मिले 
 
पूरी एक कहानी कैसे बन पाती 
क़तरा क़तरा बातें लेकर लोग मिले 
 
भर पाते नासूर दिलों के कैसे जब 
ज़हर बुझी सौगातें लेकर लोग मिले 
 
अब गैरों से क्या शिकवा करने जाएं 
अपनों को ही मातें देकर  लोग मिले
 
आशिक का टूटा दिल कोई क्यों देखे 
जब अपनी बारातें लेकर लोग मिले
 
2.
कोई मंज़र नज़र नहीं आता 
क्यों मेरा घर नज़र नहीं आता 
 
कितनी नफ़रत भरी है दुनिया में 
कुछ भी बेहतर नज़र नहीं आता 
 
लोरियाँ नींद लेके आ पहुँचीं 
सुख का बिस्तर नज़र नहीं आता 
 
सारे  पैसों  के पीछे पागल हैं 
घर कोई घर नज़र नहीं आता 
 
इस क़दर बढ़ गई है महंगाई 
आस का दर नज़र नहीं आता
 
सरहदें तोड़ के घुस आया जो
क्यों वो लश्कर नज़र नहीं आता 
 
अम्न की बात के ज़रा पीछे 
तुमको ख़ंजर नज़र नहीं आता
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

राखी की यह पौराणिक कथा आपने नहीं सुनी होगी