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नोटबंदी : यह है एनआरआई की मुसीबत

हमें फॉलो करें नोटबंदी : यह है एनआरआई की मुसीबत
, बुधवार, 23 नवंबर 2016 (14:07 IST)
2014 में नए नियमों के तहत 25 हजार रुपए से अधिक की भारतीय मुद्रा न तो विदेश ले जा सकते हैं और न ही वापस ला सकते हैं, लेकिन समस्या यह है कि जिनके पास तय सीमा में मुद्रा है और वे फिलहाल भारत नहीं आ रहे तो ऐसे में उनके 500-1000 के नोटों का क्या होगा? वे पुराने नोटों के बदले नए नोट कैसे पाएंगे? 
 
...और विदेशी विदेशी राजनयिकों की मुसीबत : एनआरआई के अलावा दिल्ली में रहने वाले विदेशी राजनयिक भी नोटबंदी से परेशान हैं। उनका कहना है कि दूतावास या उच्चायोग को ज्यादा नकदी की जरूरत होती है। नोटों की निकासी और बदले जाने की फिलहाल जो सीमा रखी गई है, वह इनके लिए पर्याप्त नहीं है। इस सीमा से कहीं ज्यादा रुपयों की उन्हें जरूरत होती है। हालांकि नियमों के मुताबिक एनआरआई पांच सौ और हजार के बड़े नोट अपने एनआरओ एकाउंट में जमा करा सकते है, लेकिन अगर राशि अधिक है तो वे क्या करें?
 
कैसे चुकाएं वीजा फीस : विदेशी दूतावासों की एक समस्या यह भी है कि काउंसलर और वीजा फीस के तौर पर जो पुराने नोट लिए हैं उनका क्या होगा? उन्हें कैसे जमा किया जाएगा या फिर वे कैसे बदले जाएंगे? बाहर के देशों में भारतीय मुद्रा बदलने वाला एसोसिएशन भी नोटबंदी से बेहत परेशान है। दुनिया के दूसरे देशों की करेंसी के बदले भारतीय रुपया देने वाले एजेंट अब बड़े नोटों के इकठ्ठा हो जाने से दिक्कत में आ गए हैं। 
 
विदेशी कारोबारियों पर दोहरी मार : करंसी बैन की वजह से इंडिया इंटरनैशनल ट्रेड फेयर (IITF) में अन्य देशों से आए व्यापारियों को दोहरी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। उनका हाल 'सिर मुंडाते ही ओले पड़ने' जैसा हुआ है, क्योंकि जिस समय 500-1000 की करंसी बैन हुई, उसी समय अन्य देशों के कारोबारी ट्रेड फेयर में हिस्सा लेने दिल्ली पहुंचे। यहां पहले तो ‘छोटे’ नोटों को मोहताज हुए, अब ट्रेड फेयर में ‘बड़े’ बिजनेस को तरस रहे हैं।
 
अफगान कारोबारी का अनुभव : ड्राई फ्रूट्स बिजनसमैन सिद्दीक उल्लाह के मुताबिक करंसी बैन के हालात का पहली बार सामना किया है। उनकी अपनी कंट्री में ऐसा कभी नहीं हुआ। अगर भारत सरकार ने फैसला लिया है तो जाहिर कोई बड़ी वजह होगी, लेकिन बदकिस्मती से ऐसे समय में उनका बिजनेस ठप पड़ गया। इस बार पिछले साल के मुकाबले सिर्फ 5 फीसदी कारोबार हुआ।
 
सिद्दीक ने कहा कि इंडिया आते समय ऐसी कोई आशंका नहीं थी, लेकिन मुसीबत का अंदाजा उस समय हुआ, जब दिल्ली में ट्रेवलिंग टाइम पर खुले पैसों की किल्लत हुई। उस समय तो लंच के रुपए चुकाना भी मुश्किल हो गया, न ही टैक्सी या ऑटो का किराया देते बना। ऐसे में सबसे पहले मेट्रो में सफर करके रुपए छुट्‍टे करवाए, फिर बाकी काम निपटाए। उनका कहना था कि बिजनेस में नफा-नुकसान चलता रहता है, इसलिए कोई शिकायत नहीं है, यह भी एक एक्सपीरियंस है।
 
इंडिया में कमीशनखोरी ज्यादा : सिद्दीक उल्लाह हाई कॉन्फिडेंस जनरल ट्रैडिंग लिमिटेड नामक कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। अफगानिस्तान और भारत में बिजनस के तौर-तरीकों में कितना फर्क है? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि इंडिया में बाहरी आदमी के लिए बिजनेस आसान नहीं है। यहां खारी बावली और आजादपुर जैसे बाजारों में कमीशन बेस पर काम ज्यादा होता है, जिसमें चीटिंग या रुपए फंसने का डर रहता है, शायद इसलिए यहां ब्लैक मनी ज्यादा होती है, फेयर डील नहीं होती। अफगानिस्तान में कमिशन बेस काम नहीं के बराबर होता है। दूसरा, वहां का कानून सख्त है। इसलिए जल्दी विवाद सुलझ जाता है। भारत में पुलिस के पास शिकायत करके कुछ हासिल नहीं होता।

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