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नॉर्वे के शरद आलोक भारत में पुरस्कृत

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, गुरुवार, 10 नवंबर 2016 (15:19 IST)
माया भारती, ओस्लो (नॉर्वे) से 
 
हाल ही में 14 सितंबर 2016 को संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश (भारत) ने नॉर्वे में हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर रहे हिन्दी पत्रिका 'स्पाइल दर्पण' के संपादक-साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' को निर्मल वर्मा पुरस्कार से अलंकृत किया है। 
इसके पूर्व 3 अगस्त को लखनऊ (उत्तरप्रदेश) में जगदीश गुप्त और मैथिलीशरण गुप्त के जन्मदिन पर जगदीश गुप्त कविता पुरस्कार 25 को स्टॉकहोम (स्वीडन) में यूरोपियन एडवांस मैटेरियन साइंसेस की कांग्रेस में सम्मानित किया गया और 28 अगस्त को श्रीनगर में शिक्षामंत्री द्वारा हिन्दी-कश्मीरी संगम द्वारा बीना बुदकी द्वारा प्रदत्त कल्हण स्मृति साहित्यरत्न पुरस्कार सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' को दिया गया है। देश-विदेश में आपकी रचनाएं पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गई हैं। 
 
कवि, कहानीकार, नाटककार और अनुवादक के रूप में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने हिन्दी साहित्य की बहुत सेवा की है। देश-विदेश में पुरस्कृत सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' की अनेक रचनाएं पाठ्यक्रम में बच्चों और युवाओं को पढ़ाई जाती हैं।
 
विदेशों में, विशेषकर नॉर्वे में भारत के हितों की रक्षा के लिए कार्यरत सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' साहित्य, पत्रकारिता और सामाजिक कार्यकर्ता रूप में कार्य कर रहे हैं। आप ओस्लो में नॉर्वेजीय भाषा के अखबार 'आकेर्स आवीस ग्रूरुदालेन' में पत्रकार और भारत के समाचार-पत्र 'देशबंधु' में यूरोप संपादक हैं। भारत और नॉर्वे के मैत्री संगठन 'भारतीय-नॉर्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम' के अध्यक्ष हैं और प्रतिमाह ओस्लो में लेखक गोष्ठी का आयोजन करते हैं। 
 
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' गत 36 वर्षों से नॉर्वे में रहते हुए हिन्दी पत्रिकाओं 'परिचय' में सन् 1980 से 1985 तक और सन् 1988 से निरंतर द्वैमासिक-द्विभाषी पत्रिका 'स्पाइल दर्पण' का संपादन कर रहे हैं। 
 
जिन लोगों ने सुरेशचन्द्र शुक्ल की कविताएं पढ़ी होंगी तो उन्हें ये पंक्तियां याद होंगी- 
 
'आओ यहां रुको कुछ देर बंधु!
समय ने बांधे यहां सेतु बंधु!
आकुल वसंत अपने गांव बंधु,
मिलेगी यहां सबको छांव बंधु!'
 
विदेशों में बहुत से लोग आए-गए। कुछ ने धन कमाया और ऐशो-आराम की जिंदगी बिता रहे हैं, पर सुरेशचन्द्र शुक्ल न केवल विदेश आकर अपने देश भारत के हितों की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि भारतीय भाषा और साहित्य की सेवा करते हुए वे मातृभूमि को भी याद करना नहीं भूलते। 'हमारा स्वर्ग सा भारत', 'दूर देश से आई चिट्ठी', 'जय भारत जय देश महान', 'वतन से दूर', देश बदलने से', 'पाती रे कह दे मेरा संदेश' और 'लो स्वदेश से आई चिट्ठी' तथा न जाने कितनी ही रचनाओं में भारत देश की खुशबू और उसके लिए प्रेम दिखाई देता है। 
 
इनके चर्चित काव्य-संग्रह 'गंगा से ग्लोमा तक' को मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा पिछले वर्ष 'भवानी प्रसाद मिश्र' पुरस्कार दिया गया है। मन और तन की सुंदरता को नकार नहीं सकते वह भाव-प्रवण और अंतरमन की सुंदरता के कायल हैं। एक कविता में उनकी पंक्तियां हैं-
 
'सौंदर्य को देखकर उसको नकारना,
जैसे कि मंदिर में जाकर दीप न जलाना।'
 
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' कहते हैं कि संबंध रक्त से बढ़कर होता है इसीलिए वे परिवार और पड़ोसियों तक ही सीमित नहीं रहता। संबंध रक्त से भी बढ़कर होता है। संबंध रक्त से नहीं, अहसास से बनता है। वे आगे कहते हैं कि संबंध वह, जो सेतु का कार्य करे, लोगों को जोड़े।


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