लुसियाना, अमेरिका। अपने अल्ट्रासोनिक ड्रायर के बारे में नॉक्सविले न्यूज सेंटिनेल से बात करते हुए विरल पटेल ने बताया, "यह बिल्कुल नई सोच है... इसमें हमने कपड़ों में मौजूद नमी (पानी के कण) को भाप बनाकर उड़ाने के स्थान पर उसे तकनीकी तौर मशीन के ज़रिए कपड़े में से निकाला है..."
विरल पटेल ओक रिज नेशनल लैबोरेटरी में रिसर्च व डेवलपमेंट एसोसिएट हैं' । उनकी टीम द्वारा विकसित किए गए ड्रायर को अल्ट्रासोनिक ड्रायर कहा जाता है। लेकिन अब अमेरिका के टेनेसी राज्य में स्थित ओक रिज नेशनल लैबोरेटरी के भारतीय-अमेरिकी रिसर्च व डेवलपमेंट एसेसिएट विरल पटेल और उनकी टीम ने एक ऐसा कपड़े सुखाने का यंत्र बना डाला है, जो बड़े से बड़े कपड़ों के ढेर को सुखाने में न सिर्फ ज्यादातर मौजूदा ड्रायरों की तुलना में आधा वक्त लेता है, बल्कि बिजली की खपत भी लगभग पांच गुना कम होगी।
विरल पटेल के मुताबिक, ज्यादातर परंपरागत ड्रायर आमतौर पर सीधी-सी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। यह आसपास की हवा को भीतर खींच लेता जाता है और वह हीटर या गैस बर्नर से गुजरती हुई गर्म होकर एक ड्रम में पहुंचती है। यहां कपड़ों को घुमाया जाता और यह भी जहां कपड़ों को घुमाया जाता है, और तभी यह गर्मी कपड़ों में से नमी को खींच लेती है, और ड्रायर से बाहर निकाल दिया जाता है।
लेकिन विरल पटेल और उनकी टीम द्वारा विकसित किया गया अल्ट्रासोनिक ड्रायर नमी को खत्म करने के लिए पीजोइलेक्ट्रिक ट्रांसड्यूसरों का इस्तेमाल करता है - जब हाई फ्रीक्वेंसी की वोल्टेज ट्रांसड्यूसरों पर प्रवाहित की जाती है, उनमें होने वाले हाई फ्रीक्वेंसी के कंपन की वजह से कपड़ों में मौजूद पानी बिना गर्मी के ही कपड़ों से अलग हो जाता है... दरअसल, यह ड्रायर बेहद तेज़ गति से कपड़ों से हिला-हिलाकर पानी को निकालता है...
विरल पटेल ने कहा, "हम ऐसी तकनीक विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें बिजली की खपत अत्याधुनिक ड्रायर से कम हो, या उनके जैसी हो, लेकिन लागत कम हो, ताकि इसे अमेरिकी बाजार में बेचा जा सके, क्योंकि अगर आप किसी बिग बॉक्स स्टोर में जाकर ड्रायर ढूंढते हैं, तो सबसे पहले ग्राहक कीमत ही देखते हैं, बिजली की खपत नहीं।''
ओक रिज नेशनल लैबोरेटरी के भारतीय-अमेरिकी रिसर्च व डेवलपमेंट एसेसिएट विरल पटेल ने कहा, "इस मामले में जीई के पास विशेषज्ञता है, हमारे पास नहीं...।" उन्होंने यह भी कहा कि अल्ट्रासोनिक ड्रायर को बाजार में उपलब्ध करवाने में फिलहाल दो से पांच साल लग सकते हैं जोकि बाजार में नई तकनीक से सुसज्जित बेहतर साबित हो सकता हो।