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अमेरिकी स्कूलों में बच्चों का शोषण

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- सुनंदा राव

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स्कूलों में अनुशासित किए जाने के बहाने कई बार छात्रों को सजाएँ दी जाती हैं- यह दुनिया के हर देश में होता है। भारत में भी हाल ही में 11 वर्ष की शन्नो खान को कथित रूप से सजा दिए जाने के कारण हुई मृत्यु के बाद भारत में शिक्षा को लेकर कानूनों में सुधारों की आवश्यकता को एक बार फिर दोहराया गया। लेकिन अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी स्कूलों में सजा दिए जाने का चलन रहा है।

अमेरिका में पिछले कुछ वर्षों के दौरान स्कूली बच्चों के साथ हुए शोषण पर हो रही सुनवाई इसकी जीता जागता उदाहरण है। इस एक वाकये ने अमेरिकी समाज में मौजूदा कानून को भी आलोचना के कठघरे में खड़ा कर दिया है।

14 साल का सेड्रिक मानसिक रूप से विकलांग था। अकसर वह अन्य छात्रों और शिक्षकों के प्रति हिंसक हो जाया करता था। उसे कई बार सजा भी मिली लेकिन उस दिन सजा के तहत जब उसे कई घंटे पेट के बल लिटाया गया और उसे नियंत्रण में लाने के लिए उसकी अध्यापिका उस पर बैठ गई तो कुछ ही मिनटों में सेड्रिक ने हिलना-डुलना बंद कर दिया।

हाल में अमेरिका में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों के साथ उत्पीड़न हो रहा है। अमेरिकी कांग्रेस के जवाबदेही विभाग के अध्ययन में पता चला है कि कई स्कूलों में, अध्यापकों और अधिकारियों के हाथों, सैकड़ों की संख्या में बच्चों का उत्पीड़न हो रहा है। बताया गया है कि कई मामलों में तो बच्चों की इस कारण मौत तक हो गई है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस प्रकार बच्चों को सजा देने के अंतर्गत उन्हें बाँध दिया जाता है, कई बार तो घंटों तक, जो इन विशेष बच्चों के लिए किसी यातना से कम नहीं। उदाहरण के तौर पर एक मामले में 14 साल का एक छात्र उस समय मारा गया जब एक भारी-भरकम शिक्षिका उसके ऊपर बैठ गई जिससे उस छात्र की पसलियाँ टूट गईं या फिर एक पाँच साल के बच्चे के हाथ और नाक तब टूट गए जब उसे कई घंटे कुर्सी से बाँध कर रखा गया।

अमेरिका में विकलांग बच्चों के खिलाफ शारीरिक उत्पीड़न के 10 मामलों की सुनवाई अमेरिकी कांग्रेस में हो रही है। अमेरिकी सरकारी संस्था के अनुसार पिछले 20 वर्षों में कई बच्चों के साथ उत्पीड़न किया गया। लेकिन जाँचकर्ताओं के पास कोई वास्तविक संख्या नहीं है कि कितने बच्चों के साथ ऐसा बर्ताव किया गया अधिकारियों ने पाया कि कई शिक्षकों को विशेष आचरण के बच्चों को नियंत्रण में लाने के लिए कोई खास प्रशिक्षण नहीं दिया जाता।

इस समस्या के लिए कानून भी जिम्मेदार है क्योंकि केवल सात राज्यों के विशेष स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षकों से खास प्रशिक्षण की माँग की जाती है। और तो और, किसी भी राज्य में बच्चों को बाँध कर रखने या उन्हें अलग रखने को लेकर कोई कानून नहीं है लेकिन कुछ एक राज्यों में कुछ निर्देश दिए गए हैं।

मसलन, वर्जिनिया और मेरीलैंड में अध्यापकों को बच्चों को बाँध कर रखने की इजाजत दी गई है लेकिन केवल उस सूरतेहाल में जब वे खुद के लिए या अन्य बच्चों के लिए खतरा बन रहे हों। दूसरी तरफ वाशिंगटन में ऐसे कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं। अध्यापकों और अधिकारियों के लिए एक संतुलन बैठाए जाने की जरूरत है जिन्हें विकलांग और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को शिक्षा देनी पड़ती है।

लेकिन अब तक जो मामले सामने आए हैं उनमें माता-पिता को बहुत देर से पता चलता है कि उनके बच्चों के साथ क्या घटी। जैसा कि सेड्रिक के मामले में हुआ। उसकी माँ को स्कूल पहुँचने पर पता चला कि उनका बेटा, जो जमीन पर पेट के बल लेटे दिख रहा है, वह कई घंटे पहले ही अपनी साँसें खो चुका था। ऐसे मामलों में माता-पिता के साथ हर कदम पर विचार-विमर्श करना भी जरूरी होता है।

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