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एच1बी वीजा, सपनों को साकार करने का 'टिकट'

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हमें फॉलो करें एनआरआई न्यूज
, गुरुवार, 25 अप्रैल 2013 (19:48 IST)
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अमेरिका एक ऐसा देश है जिसे स्वर्णिम अवसरों का देश भी कहा जाता है। अगर आपमें प्रतिभा और कौशल है तो अमेरिका जैसा देश दोनों हाथों से आपको अपनाने के लिए तैयार रहता है। इसी कारण से हमारे देश के बहुत सारे विशेषज्ञ, डॉक्टर और इंजीनियर अमेरिकी सपनों को पूरा करने के लिए हर वर्ष वहां जाते हैं, जबकि वहां की सरकार ने ऐसे लोगों के लिए काम करने संबंधी नियम और कानून बनाए हैं और कुशल श्रमिकों के लिए तमाम तरह के वीजा की सुविधा भी उपलब्ध कराई है। इन्हीं में से एक सुविधा है एच-1बी वीजा जो हमारे देश में बहुत अधिक लोकप्रिय है और जिसे अमेरिकी नागरिकता पाने की दिशा में पहली सीढ़ी माना जाता है।

अमेरिका के आप्रवास और राष्ट्रीयता कानून के सेक्शन 101(ए) (15)(एच) के अंतर्गत एच1बी वीजा एक ऐसा नॉन-इमीग्रेंट वीजा होता है जिसके तहत अमेरिकी नियोक्ताओं को कुछ विशेष पेशों के लिए अस्‍थाई तौर पर विदेशी श्रमिकों को रखने की अनुमति मिलती है। अगर कोई एच-1बी दर्जे का विदेशी श्रमिक काम छोड़ता है अथवा उसे प्रायोजक नियोक्ता द्वारा बर्खास्त कर दिया जाता है तो श्रमिक नॉन-इमीग्रेंट दर्जे में बदलाव के लिए आवेदन करना होता है। इसके साथ ही उसे किसी दूसरे नियोक्ता की खोज करनी पड़ती है या फिर अमेरिका ही छोड़ना पड़ता है।

अमेरिकी कानून के तहत उन 'विशेष पेशों' को भी परिभाषित किया गया है जिनके लिए बहुत ऊंचे दर्जे की सैद्धांतिक और प्रायोगिक ज्ञान की जरूरत होती है। ऐसे विशेष कामों में बायोटेक्नोलॉजी, केमिस्ट्री, आर्किटेक्चर, इंजीनियरिंग, गणित, फिजिकल साइंसेज, सोशल साइंसेज, मेडिसिन और स्वास्थ्य, शिक्षा, कानून, लेखापालन, कारोबारी विशेषज्ञताएं, धर्मविज्ञान, और कलाएं शामिल हैं। विदेशी श्रमिक को कम से कम स्नातक डिग्री या इसके समकक्ष योग्यता अवश्य रखना चाहिए।

इसके तहत अमेरिका में प्रवास की अवधि सामान्यतया तीन वर्ष की होती है लेकिन इसे छह वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। कुछ असाधारण मामलों में और विशेष परिस्थितियों में प्रवास की अवधि अत्यधिक भी हो सकती है। असामान्य डिफेंस डिपार्टमेंट प्रोजेक्ट से संबंधित काम के लिए एच-1बी वीजा की अवधि दस वर्ष की हो सकती है।

एच-1बी वीजा रखने वाले अगर छह वर्ष के बाद भी अमेरिका में काम करना चाहते हैं और उन्होंने स्‍थाई निवासी का दर्जा नहीं लिया है तो उन्हें एक और एच1बी वीजा के लिए फिर से आवेदन करना होता है और कम से कम एक वर्ष तक अमेरिका से बाहर रहना पड़ता है। एक व्यक्ति अपने काम पर किसी भी समय तक बना रह सकता है जिसके लिए मूल रूप से वीजा जारी किया गया था। वर्तमान प्रभावी कानून के अनुसार जब नियोक्ता और कर्मचारी के संबंध समाप्त हो जाते हैं तब कोई निर्धारित ग्रेस पीरियड नहीं होता है और कर्मचारी को तुरंत अमेरिका छोड़ना पड़ता है लेकिन अमेरिकी कानून के तहत ऐसे बहुत से प्रावधान भी हैं जिनकी मदद से कर्मचारी इस तरह की मुश्किलों से उबर जाते हैं।

कांग्रेस प्रतिवर्ष वार्षिक संख्यात्मक सीमा तय करती है। फिलहाल यह सीमा विदेशी नागरिकों के लिए 65 हजार है जिन्हें प्रति वित्तीय वर्ष में जारी किया जाता है। इसके अलावा 20 हजार वीजा ऐसे विदेशी नागरिकों के लिए होते हैं जो अमेरिकी विश्वविद्यालयों से मास्टर्स या ऊंची डिग्री रखते हैं। इसी तरह फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्‍स के तहत 1400 वीजा चिली के नागरिकों और 5400 वीजा सिंगापुर के ना‍गरिकों के लिए तय कर दिए जाते हैं, पर अगर इन आरक्षित वीजाओं का उपयोग नहीं हो पाता है तो वे दूसरे देशों के आवेदकों के लिए उपलब्ध करा दिए जाते हैं।

इस तरह प्रतिवर्ष एच1बी वीजा जारी किए जाने की संख्या 65 हजार की सीमा से कहीं अधिक होती है। इस कारण से वित्तीय वर्ष 2010 में जारी किए वीजाओं की संख्या 117, 409 थी और अगले वर्ष, 2011 में 129, 134 वीजा जारी किए गए थे। अमेरिका की सिटीजनशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज अप्रैल माह में अपने काम के पहले दिन से वीजा के लिए आवेदन स्वीकार करने लग जाती है और यह अनुरोध की गई तिथि से छह महीने तक पहले स्वीकृति देती है।

अमेरिकी श्रम विभाग विदेशी श्रमिकों की मौजूदगी के साथ-साथ इस बात के ठोस उपाय करता है कि स्थानीय श्रमिकों को किसी तरह के पक्षपात का सामना न करना पड़े। इतना ही नहीं, उन्हें विदेशी श्रमिकों की तुलना में अधिक वेतन, भत्ते और सुविधाएं दी जाती हैं भले ही उनका और विदेशी श्रमिक का काम एक जैसा ही क्यों न हो। फिर भी भारतीय कंपनियां इस अमेरिकी सुविधा का अधिकाधिक लाभ उठाती हैं।

ऐसी भारतीय कंपनियों में इन्फोसिस, बंगलोर, विप्रो, बंगलोर, टाटा कंसलटेंसी, मुंबई, सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज और पाटनी कम्प्यूटर सिस्टम्स मुंबई शामिल हैं जिन्हें प्रतिवर्ष काफी संख्या में एच1बी वीजा जारी किए जाते हैं। पर इन भारतीय कंपनियों पर एच1बी वीजा के दुरुपयोग के आरोप भी समय-समय पर लगते रहे हैं। हाल में व्यापक आव्रजन सुधारों पर कांग्रेस में चर्चा के बीच एक शीर्ष अमेरिकी सीनेटर ने टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो जैसी बड़ी आईटी कंपनियां पर एच1बी वीजा प्रणाली के दुरुपयोग का आरोप लगाया था।

सीनेट की ताकतवर न्यायिक समिति द्वारा आव्रजन सुधारों पर सोमवार को संसदीय सुनवाई के दौरान सीनेटर रिचर्ड डर्बिन ने कहा, एच1बी वीजा के दुरुपयोग के कुछ विशेष मामले सामने आए हैं। यही नहीं डर्बिन ने तो शीर्ष भारतीय आईटी कंपनियों को आउटसोर्सिंग फर्मों का तमगा भी दे डाला था।

डर्बिन ने आरोप लगाया, अमेरिकियों को यह जानकर झटका लगेगा कि इन्फोसिस, विप्रो, टाटा और अन्य आउटसोर्सिंग कंपनियों को एच1बी वीजा मिल रहा है। यह वीजा माइक्रोसाफ्ट के पास नहीं जा रहा। डर्बिन ने कहा कि ये कंपनियां मुख्य रूप से भारत की हैं, वे ऐसे कर्मचारियों और इंजीनियरों को ढूंढ़ रही हैं जो तीन साल के लिए अमेरिका में कम वेतन पर काम करने को तैयार हैं और साथ ही इन्फोसिस या अन्य कंपनियों को शुल्क देने को तैयार हैं। डर्बिन ने कहा कि ज्यादातर लोगों को यह जानकर झटका लगेगा कि एच1बी वीजा आप जैसी कंपनियों के पास नहीं जा रहे हैं। ये इन आउटसोर्सिंग कंपनियों की झोली में जा रहे हैं।

भारतीयों का दबदबा : अमेरिका में वर्ष 2011 के दौरान शुरू की गई कंपनियों में से लगभग 30 फीसदी के संस्थापक प्रवासी नागरिक हैं। इसी तथ्य पर ध्यान आकर्षित करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र से जुड़े भारतीय पेशेवरों ने अमेरिकी सांसदों से एच1बी वीजा का कोटा बढ़ाने और ग्रीन कार्ड हासिल करने की प्रक्रिया को आसान करने की अपील की है।

उन्होंने सांसदों को बताया कि आप्रवासी आधारित व्यापार से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को 775 अरब डॉलर से ज्यादा का राजस्व प्राप्त हुआ है। पिछले कुछ दिनों से ‘नॉर्थ अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ इंडियन आईटी प्रोफेशनल’ (एनएआईआईपी) से जुड़े देशभर में काम कर रहे भारतीय आईटी पेशेवर अपनी बात रखने और व्यापक आव्रजन सुधार के लिए दर्जनों सांसदों से मुलाकात कर रहे हैं।

एच1बी वीजा का कोटा बढ़ाए जाने का आग्रह करने के साथ ही एनएआईआईपी ने अमेरिका में ही इन एच1बी वीजा को पुनर्मान्यीकृत किए जाने की व्यवस्था की भी मांग की है। इसका कहना है कि अगर देश विशिष्ट वीजा प्रणाली को खत्म कर दिया गया तो नियोक्ता अपनी जरूरत के अनुसार किसी भी देश से इस क्षेत्र के ज्यादा अनुभवी कर्मचारियों को यहां ला सकेंगे।

इसके साथ ही इस संघ ने एच1बी कर्मचारियों के वीजा खत्म होने पर वतन वापस भेजे जाने की अवधि को 60 दिन करने का आग्रह किया है। फिलहाल इसमें एक भी दिन की छूट नहीं है और कर्मचारियों को वीजा खत्म होते ही उसी दिन अमेरिका छोड़कर वापस जाना पड़ता है।

अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा (यूएससीआईएस) ने घोषणा की थी कि वह 1 अक्टूबर 2013 से शुरू हो रहे वित्तीय वर्ष 2014 के लिए अब आवेदन स्वीकार नहीं करेगा, क्योंकि कांग्रेस द्वारा तय किए गए कोटे से अधिक और पर्याप्त संख्या में आवेदन मिले हैं। कांग्रेस ने इस कोटे की संख्या 65000 तय की हुई है। कोटे की निर्धारित संख्या से मिली छूट के तहत भी यूएससीआईएस को 20000 से अधिक आवेदन मिले। यूएससीआईएस ने एक बयान में कहा कि यूएससीआईएस 2014 वित्त वर्ष के लिए 5 अप्रैल 2013 तक मिले आवेदनों के लिए कम्‍प्यूटर के जरिए लॉटरी निकाली जाएगी।

विश्लेषकों को लगता है कि इस पूरी संख्या के लिए पहले सप्ताह के दरमियान ही पूरे आवेदन प्राप्त हो जाएंगे और कोटा खत्म हो जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि नागरिकता और आव्रजन सेवा विभाग (यूएससीआईएस) आवेदनों की संख्या के बारे में दैनिक आधार पर कोई सूचना जारी नहीं करेगा। हां, एक बार पूरी संख्या के लिए आवेदन प्राप्त हो जाने के बाद इसकी घोषणा कर देगी।

यूएससीआईएस ने 1 अक्टूबर, 2013 से शुरू होने वाले वित्त वर्ष 2013-14 के लिए 65000 एच1बी वीजा देने की घोषणा की है लेकिन एच1बी वीजा होल्डर्स के परिवार के अन्य सदस्यों, माता, पिता, भाई, बहनों आदि को अमेरिका में बुलाने की सुविधा हासिल थी, उस पर नई समग्र आप्रवास नीति के तहत कैंची चल सकती है। दरअसल अमेरिकी कांग्रेस और सीनेटर चाहते हैं कि एच1बी वीजा को कार्य आधारित वीजा ही बना रहने दिया जाए ताकि उन्हीं लोगों को अमेरिका में ज्यादा से ज्यादा प्रवेश दिया जाए जो वहां काम करके सरकार को टैक्स देने में सक्षम हों।

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