ओलिम्पिक के मुक्केबाजी रिंग ने विश्व को कई महान मुक्केबाज और हैरतअंगेज मुकाबले देखने का मौका दिया है। इन सब मुक्केबाजों में हंगरी के लाज्लो पैप का अपना विशिष्ठ स्थान है। लाज्लो पहले ऐसे खिला़ड़ी हैं जिसने खेलों के इस महाकुंभ में मुक्केबाजी में लगातार तीन स्वर्ण जीते।
लाज्लो ने 1948 के लंदन ओलिम्पिक में मिडिलवेट वर्ग में, 1952 के हेलसिंकी ओलिम्पिक में लाइट मिडिलवेट वर्ग में और 1956 के मेलबोर्न ओलिम्पिक में भी मिडिलवेट भार वर्ग में सोने के तमगे को अपने गले का हार बनाया।
वैसे तो उन्होंने जीवन में कई बड़े मुकाबले जीते, लेकिन 1956 के ओलिम्पिक का फाइनल सबसे यादगार माना जाता है। इस दौरान खिताबी टक्कर में उन्होंने अमेरिका के जोस टोरेस को शिकस्त दी। बाद में टोरेस पेशेवर विश्व चैंपियन बने।
ओलिम्पिक के अलावा उन्होंने अपने मुक्कों की बारिश से योरप में भी शोहरत बटोरी। लाज्लो ने योरपीयन अमेच्योर खिताब 1949 और 1951 में अपने नाम किए।
लाज्लो का जन्म बुडापेस्ट में 25 मार्च 1926 को हुआ। लाज्लो सोवियत ब्लॉक के ऐसे पहले मुक्केबाज थे जो पेशेवर मुक्केबाज बने। और उन्होंने योरपीयन मिडिलवेट खिताब (1962) जीता। हालांकि यह ज्यादा दिन जारी नहीं रह सका। हंगरी के अधिकारियों ने 1965 में उनसे पेशेवर खिला़ड़ी की अनुमति वापस ले ली।
अपने बेहतरीन करियर के सम्मान स्वरूप उन्हें 2001 में अंतरराष्ट्रीय बाक्सिंग हाल ऑफ फेम में शामिल किया गया। इससे पहले 1989 में डब्ल्यूबीसी के अध्यक्ष जोस सूलेमान ने उन्हें श्रेष्ठ अमेच्योर और प्रोफेशनल बाक्सर का पुरस्कार दिया।
लाज्लो ने बाद में अपना अनुभव राष्ट्रीय टीम के कोच के रूप में खिलाड़ियों को बांटा। वर्ष 2003 में बुडापेस्ट में ही उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।