ओलिम्पिक इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने का मौका उनके सामने था, लेकिन भारत के महान खिलाड़ियों में शुमार 'उड़न सिख' दिवंगत मिल्खासिंह और, 'उड़न परी' पीटी उषा बेहद मामूली अतंर से यह मौका चूक गए थे।
मिल्खा के 1960 के रोम ओलिम्पिक में और उषा के 1984 के लॉस एंजिल्स ओलिम्पिक में कांस्य पदक जीतने का मौका चूकने के बाद देश को सदैव इस बात का अफसोस रहा है कि ये महान एथलीट कैसे ये मौका चूक गए।
मिल्खा या उषा यदि ये मौके भुना जाते तो वे 1900 के पेरिस ओलिम्पिक में नार्मन प्रीचार्ड के बाद कोई एथलेटिक्स पदक जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट बन जाते। प्रीचार्ड ने पेरिस ओलिम्पिक में 200 मीटर और 200 मीटर बाधा दौड़ में 2 रजत पदक जीते थे।
1960 के रोम ओलिम्पिक में मिल्खा ने 400 मीटर दौड़ में पहली हीट में 47.6 सेंकड का समय निकाला और दूसरे स्थान पर रहे। दूसरे राउंड की हीट में मिल्खा ने कुछ और सेकंड घटाए तथा वह 46.5 सेकंड का समय लेकर जर्मनी के कार्ल काफमैन के बाद दूसरे स्थान पर रहे।
सेमीफाइनल में मिल्खा अमेरिका के ओटिस डेविस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दौडे़। इस बार भी उन्होंने कुछ सेकंड घटाए और 45.9 सेकंड के समय के साथ दूसरे स्थान पर रहे।
फाइनल में मिल्खा ने ब्लॉक से जोरदार शुरुआत की और बढ़त बना ली, लेकिन मध्य दूरी तक वह कुछ धीमे पड़ गए और यही उनके लिए घातक साबित हुआ। अन्य एथलीट उनके पास से निकलने लगे।
अपनी गलती को महसूस करते हुए मिल्खा ने फिर आखिरी फर्राटे में अपनी सारी ताकत झोंक दी, लेकिन जो नुकसान वह पहले कर चुके थे। उसकी वह भरपाई नहीं कर पाए।
उस दौड़ का स्तर कितना ऊंचा था उसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता था कि ओटिस और काफमैन 44.8 सेकंड का समय निकालकर क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर रहे।
दक्षिण अफ्रीका के मेल स्पेंस 45.5 सेकंड के साथ तीसरे स्थान पर रहे। मिल्खा 45.6 सेकंड के साथ चौथे स्थान पर रहे और 0.1 सेकंड के अंतर से कांस्य पदक से चूक गए। उन्होंने हीट से लेकर फाइनल तक 47.6, 46.5, 45.9 और 45.6 सेकंड का समय निकाला और लगातार अपने प्रदर्शन में सुधार किया।
मिल्खा के लिए यह कहा जाता था कि वह रेस दौड़ते नहीं थे बल्कि जैसे उड़ते थे। यही कारण था कि उनका नाम मिल्खा सिंह पड़ गया था। उस रेस के बारे में मिल्खा ने बाद में कहा था कि उन्हें लगा कि वह शुरुआत में अंधाधुंध तेज दौडे़। उन्होंने फिर खुद को कुछ धीमा किया, लेकिन यही उनकी भारी भूल साबित हो गई।
मिल्खा के बाद यदि किसी एथलीट ने ओलिम्पिक में भारत का नाम रोशन किया तो वह पीटी ऊषा थी। मिल्खा को जहाँ 'उड़न सिख' कहा जाता था, वहीं उषा को 'उड़न परी' कहकर बुलाया जाता था।
भारत में एथलीटों की एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित करने वाली उषा भी मिल्खा की तरह ओलिम्पिक में कांस्य पदक जीतने से मामूली अंतर से चूक गई थी।
1984 के लॉस एंजिल्स ओलिम्पिक में उषा 400 मीटर बाधा दौड़ के फाइनल में पहुँचकर किसी ओलिम्पिक स्पर्धा के फाइनल में पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं थीं।
उस समय पूरा देश उनसे एक नया इतिहास रचने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन तीसरे स्थान के लिए फोटो फिनिश में वह सेकंड के सौंवे हिस्से से कांस्य पदक जीतने से चूक गई। उषा ने अपने करियर में सब कुछ हासिल किया, लेकिन ओलिम्पिक पदक नही जीत पाने का दु:ख उन्हें हमेशा रहा। (वार्ता)