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अंजलि ने ‍किया पदक के साथ लौटने का वादा

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नई दिल्ली। एथेंस से बैरंग लौटने की मायूसी अब तक नहीं भुला सकी 'गोल्डन शूटर' अंजलि भागवत ने अर्जुन की तरह बीजिंग ओलिम्पिक में पदक पर निशाना साध रखा है और उन्हें पूरा विश्वास है कि इस बार देशवासियों को वह निराश होने का मौका नहीं देंगी।

अंजलि ने कहा ओलिम्पिक की मेरी तैयारी इस बार पुख्ता है क्योंकि मैंने कोच (हंगरी के लाजलो जियाक) के मार्गदर्शन में योजनाबद्ध तरीके से तैयारी की है। इसका मनोवैज्ञानिक फायदा मिलेगा। एथेंस ओलिम्पिक के दौरान मेरे पास कोच नहीं था लिहाजा मुझे खुद तैयारी करनी पड़ी थी।

भारतीय निशानेबाजी की सचिन तेंडुलकर कही जाने वाली अंजलि ने ब्राजील विश्व कप 2006 में चौथे स्थान पर रहकर लगातार तीसरी बार ओलिम्पिक के लिए क्वालीफाई किया था।

देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार 'राजीव गाँधी खेल रत्न' से सम्मानित इस एयर राइफल निशानेबाज ने एथेंस ओलिम्पिक की नाकामी के बाद खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था।

उन्होंने अपनी वेबसाइट पर कहा एथेंस ओलिम्पिक के बाद मैं निशानेबाजी छोड़ना चाहती थी, लेकिन जब मैंने इसकी कोशिश की तो मेरा सुकून छिन गया और मैं पागल जैसी होने लगी। फिर मैंने वापसी की जो कामयाब रही और मैंने ओलिम्पिक के लिए क्वालीफाई किया।

एथेंस ओलिम्पिक में आठवें स्थान पर रही अंजलि ने कहा कि मेरे ऊपर पूरे देश की उम्मीदों का भार है लेकिन वह हमेशा से रहा है और बाकी निशानेबाजों पर भी होगा। मुझे इसकी आदत है। दो ओलिम्पिक और कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों के अनुभव ने मुझे दबाव झेलना सिखा दिया है।

मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेल 2002 में दस मीटर एयर राइफल और 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन में चार स्वर्ण पदक जीतने वाली अंजलि दस मीटर की विश्व रैंकिंग में नंबर वन पर काबिज होने वाली पहली भारतीय निशानेबाज बनी।

अब तक अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में 28 स्वर्ण 22 रजत और छह कांस्य पदक जीत चुकी मुंबई की इस निशानेबाज ने ओलिम्पिक की तैयारियों के बारे में कहा हमें चार विश्व कप और एशियाई चैम्पियनशिप खेलने का मौका मिला, जिसमें पदक जीतकर मेरा हौसला बढ़ा है।

इन दिनों हनोवर शूटिंग रेंज पर अभ्यास कर रही अंजलि ने कहा यहाँ सारी अत्याधुनिक सुविधाएँ मौजूद है और मुझे अच्छे उपकरणों से अभ्यास का मौका मिला है। ओलिम्पिक से पहले मैं मलेशिया जाऊँगी ताकि बीजिंग के माहौल के अनुरूप खुद को ढाल सकूँ।

अंजलि ने कहा कि बड़े टूर्नामेंटों में निशाना लगाते समय तनाव और दबाव जैसी बातें जेहन में नहीं आती। उन्होंने कहा किसी बड़े मैच में निशाना साधते वक्त इतनी एकाग्रता की जरूरत होती है कि फिर दबाव जैसी बातें याद नहीं रहती। मुझे अपने आप से काफी अपेक्षाँ रहती है क्योंकि निशानेबाजी के लिए मैंने अपने परिवार को कम समय दिया है, लेकिन राइफल हाथ में लेने के बाद मैं सबकुछ भूल जाती हूँ।

उन्होंने यह भी कहा कि पदक जीतने के साथ लगातार अपने स्कोर में सुधार भी जरूरी है और उन्होंने इस पर काफी मेहनत की है। (भाषा)

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