Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

उम्मीदों पर खतरे उतरे सुशील कुमार

Advertiesment
हमें फॉलो करें भारत बीजिंग ओलिम्पिक कुश्ती
भारत के पहलवान सुशील कुमार (66 किलो वर्ग) ने देशवासियों की उम्मीदों को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। उन्होंने कजाखिस्तान के पहलवान लियोनिड स्प्रिडोनोव पर विजयी दाँव लगाकर भारत की झोली में एक काँस्य पदक डाल दिया। कुश्ती प्रतियोगिता शुरू होने से पहले लिखे गए सुभाष कर्णिक के इस लेख को हम पुन: प्रकाशित कर रहे हैं

बीजिंग में यदि अभिनव बिंद्रा की स्वर्णिम सफलता और कुछ हद तक मुक्केबाजों को छोड़ दिया जाए तो अन्य खेलों में अभी तक भारत का अभियान निराशाजनक रहा है। अब भारत की उम्मीदें 2 पहलवानों पर टिक गई हैं।

पुरुषों की फ्रीस्टाइल कुश्ती स्पर्धा के मुकाबले मंगलवार से प्रारंभ हो गए, लेकिन भारतीय पहलवान योगेश्वर दत्त को क्वार्टर फाइनल में पराजय का सामना करना पड़ा। 60 किलोग्राम भार वर्ग में जापान के केनीची युमोतो ने योगेश्वर दत्त को शिकस्त दी।

  बीजिंग में यदि अभिनव बिंद्रा की स्वर्णिम सफलता और कुछ हद तक मुक्केबाजों को छोड़ दिया जाए तो अन्य खेलों में अभी तक भारत का अभियान निराशाजनक रहा है। अब भारत की उम्मीदें 2 पहलवानों पर टिक गई हैं      
भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष जीएस मंडेर अपने पहलवानों- सुशील कुमार (66 किलो) और राजीव तोमर (120 किलो) से पदकों की उम्मीद लगाए हैं। मंडेर को सुशील से ज्यादा उम्मीदें हैं। तोमर से उन्हें ज्यादा उम्मीदें इसलिए नहीं हैं, क्योंकि भारी वजन वर्ग में अन्य देशों के पहलवान ज्यादा कसीले और अनुभवी होते हैं।

मंडेर का मानना है कि अच्छे ड्रॉ के अलावा यदि ईश्वर का साथ मिला तो सुशील पदक ला सकते हैं। भारतीय कुश्ती प्रशिक्षक टीआर सोधी भी इन दोनों के प्रति आशावान हैं। बेलारूस के प्रशिक्षक हाल्देमीर की देखरेख में महासंघ ने इन तीनों पहलवानों को बेलारूस में तीन हफ्तों तक कड़ी मेहनत करवाई है।

  भारत को कुश्ती में अभी तक एक काँस्य पदक ही मिल पाया है, वह भी 56 साल पहले 1952 के हेलसिंकी ओलिम्पिक में महाराष्ट्र के खशाबा जाधव ने हासिल किया था। उसके बाद से भारतीय पहलवान खाली हाथ ही लौटते आए हैं      
भारत को कुश्ती में अभी तक एक काँस्य पदक ही मिल पाया है, वह भी 56 साल पहले 1952 के हेलसिंकी ओलिम्पिक में महाराष्ट्र के खशाबा जाधव ने हासिल किया था। उसके बाद से भारतीय पहलवान खाली हाथ ही लौटते आए हैं।

गत ओलिम्पिक में 60 किग्रा वर्ग में भाग लेने वाले सुशील इस बार बीजिंग ओलिम्पिक में 66 किलो वर्ग में भाग ले रहे हैं। फिर भी सुशील कुमार से पदक की आशा है, क्योंकि वे इस वजन श्रेणी में भाग ले रहे आठ पहलवानों को पूर्व में परास्त कर चुके हैं।

ऐसी स्थिति में अगर अच्छे ड्रॉ के अलावा भाग्य का साथ रहा तो पदक की आशा जरूर की जा सकती है। ज्यादातर खिलाड़ी इस देश के करोड़ों खेलप्रेमियों की भावनाओं को आहत करने के साथ ही राष्ट्र के प्रति समर्पण भावना को त्यागकर धन के लिए खेल रहे हैं। आइए फिर भी मंडेर, सोधी और हाल्देमीर की उम्मीदों और प्रयासों की सफलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi