बीजिंग रवानगी से पहले ऐन मौके पर मुक्केबाज अखिल कुमार के फिजियो को भारतीय दल में जगह मिली, जबकि टेनिस के नामचीन सितारे अपनी फरमाइश पर कोचों की पूरी जमात लेकर गए। इसका हश्र सभी ने देखा।
अब समय है कि आईओए, कॉरपोरेट जगत और खेलप्रेमी अपनी आँखें खोलें और सितारों के आभामंडल से बाहर निकलकर दूसरे खेलों पर भी तवज्जो दी जाए। अभिनव बिंद्रा को अपवाद मान लिया जाए तो भारतीय दल में पदक उम्मीद माने जा रहे सभी सितारों ने पूरी तरह मायूस किया, जबकि इनकी तैयारी पर बेतहाशा खर्च किया गया था।
टेनिस टीम के चार खिलाड़ियों के लिए करीब दस कोच साथ गए और टीम मैनेजर थी सानिया मिर्जा की माँ नसीम मिर्जा। एथेंस में काँस्य पदक से चूके लिएंडर पेस और महेश भूपति से स्वर्ण जीतने की उम्मीद थी। अपने आपसी मतभेदों को कथित तौर पर भुलाकर उतरी यह जोड़ी क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ सकी।
अपने खेल से अधिक कोर्ट के बाहर की गतिविधियों के कारण सुर्खियों में रहने वाली टेनिस की 'ग्लैमर गर्ल' सानिया ने तो मुकाबला लड़ा ही नहीं। फिटनेस समस्या के कारण वे एकल मुकाबले से पीछे हट गईं, जबकि युगल में उन्हें और सुनीता राव को स्वेतलाना कुज्नेत्सोवा और दिनारा सफीना की शीर्ष वरीय रूसी जोड़ी ने हराया।
दूसरी ओर हैदराबाद की ही बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने क्वार्टर फाइनल तक पहुँचकर सभी को चौंका दिया। ओलिम्पिक से पहले किसी ने उसके दूसरे दौर तक पहुँचने की कल्पना भी शायद ही की होगी।
मुक्केबाज अखिल कुमार ने क्वार्टर फाइनल में तीन बार के विश्व चैम्पियन को रौंदा। भिवानी के कालूहास गाँव के रहने वाले विजेंदर ने काँसे का तमगा जीता, वहीं सुशील कुमार ने कुश्ती स्पर्धा के 66 किलो वर्ग में काँस्य पदक भारत की झोली में डालकर भारतीय खेल हुक्मरानों को अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर दिया है।
भिवानी मुक्केबाजी क्लब में सिर्फ एक कोच जगदीश कुमार के साथ घंटों अभ्यास करने वाले विजेंदर और छत्रसाल स्टेडियम पर पसीना बहाने वाले पहलवान सुशील कुमार को पदक मिला है तो उनके अपने जुनून और जुझारूपन के दम पर। अब भले ही उस पर पुरस्कारों की बौछार हो रही हो, लेकिन उस समय उनकी कोई सुध लेने वाला नहीं था जब एक कमरे में दर्जनभर खिलाड़ियों के साथ उन्होंने अभ्यास किया था।
पाँच सितारा होटलों में रहने वाले सितारा खिलाड़ियों को पता भी नहीं होगा कि ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकले इन खिलाड़ियों को कमरे में एसी या कूलर भी नसीब नहीं होता। प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी कुछ कर गुजरने की इनकी जिजीविषा को मिटा नहीं सकी।
दूसरी ओर सुविधाओं के अभाव का राग अलापते निशानेबाजों में से ही अभिनव बिंद्रा ने दस मीटर एयर राइफल का स्वर्ण जीता। ओलिम्पिक शुरू होने से पहले जब बाकी निशानेबाज यहाँ बड़े-बड़े दावे करने में व्यस्त थे, वहीं चंडीगढ़ का यह युवा किसी रेंज पर अभ्यास में जुटा था।
एथेंस ओलिम्पिक के रजत पदक विजेता और भारत के ध्वजवाहक रहे राज्यवर्धनसिंह राठौड़, पदक उम्मीद गगन नारंग, गोल्डफिंगर समरेश जंग, गोल्डन शूटर अंजलि भागवत और अवनीत कौर तो फाइनल्स के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर सकी। एथलेटिक्स में पदक उम्मीद लाँग जंपर अंजू बॉबी जार्ज को सही कूद भी नहीं लगा पाई और उसे 'नो मार्क टैग' मिला। (भाषा)