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साइना नेहवाल की ऊँची उड़ान

क्वार्टर फाइनल में पहुँचने वाली भारत की पहली खिलाड़ी

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हमें फॉलो करें साइना नेहवाल भारत बैडमिंटन सीमान्त सुवीर बीजिंग ओलि‍म्पिक

सीमान्त सुवीर

हैदराबाद की 18 वर्षीय साइना नेहवाल बुधवार की इंडोनेशिया की अनुभवी खिलाड़ी मारिया क्रिस्टीन युलिएंती के खिलाफ बीजिंग ओलिम्पिक में हारीं जरूर, लेकिन इस खेल कुंभ के क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय करने वाली पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बन गईं।

  भारतीय बैडमिंटन इतिहास में जो कामयाबी अमी घिया, मधुमिता बिष्ट, अपर्णा पोपट हासिल नहीं कर पाईं, उसे साइना ने पूरा करके यह जताने की कोशिश की है कि बैडमिंटन पर चीन और मलेशिया का ही एकाधिकार नहीं है, भारतीय लड़कियों के बाजुओं में भी दम है      
साइना ने इससे पहले जून 2006 में मनीला में आयोजित फोर स्टार फिलीपींस ओपन बैडमिंटन का खिताब जीतकर जो ऊँची उड़ान भरी है, उसने भारतीय लड़कियों में नया जज्बा जगा दिया है। और यह भी उम्मीद जगा दी हैं कि उनमें असीम क्षमता है और सही मार्गदर्शन मिले तो वे 2010 के राष्ट्रमंडलीय खेलों के साथ 2012 के अगले ओलिम्पिक खेलों (लंदन) में भारत के लिए पदक जीत सकती हैं।

भारतीय बैडमिंटन इतिहास में जो कामयाबी अमी घिया, मधुमिता बिष्ट, अपर्णा पोपट हासिल नहीं कर पाईं, उसे साइना ने पूरा करके यह जताने की कोशिश की है कि बैडमिंटन पर चीन और मलेशिया का ही एकाधिकार नहीं है, भारतीय लड़कियों के बाजुओं में भी दम है। और इसी दम के बूते पर आज साइना ने ओलिम्पिक की अंतिम आठ खिलाड़ियों में स्थान बनाया। क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय करने के लिए यकीनन साइना की पीठ थपथपाई जानी चाहिए।

भारतीय टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा हैदराबाद की हैं और साइना नेहवाल का भी हाल-मुकाम यही शहर है। साइना ने बहुत छोटी उम्र में कामयाबी की नई मंजिलें तय की हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि आज कोई भी खिलाड़ी हो, वह सफलता पाने के लिए 20 बरस तक लंबा इंतजार नहीं कर सकता। उसे तो कच्ची उम्र में अपने शरीर से अधिक से अधिक मेहनत करने की जरूरत होती है। खिलाड़ी इस बात की परवाह नहीं करता कि इससे शरीर पर कितना प्रतिकूल असर होगा, उसकी मंशा जल्दी से जल्दी कामयाबी हासिल करने की होती है।

  साइना ने 16 बरस की उम्र में मनीला में आयोजित 'फोर स्टार' बैडमिंटन जीतकर यकीनन देश की पहली खिलाड़ी होने का रुतबा हासिल कर लिया था, लेकिन इसके तुरंत बाद वे तीन टूर्नामेंट में इसलिए कामयाब नहीं हो पाईं, क्योंकि वे बड़ी रैंक वाले टूर्नामेंट थे      
साइना ने 16 बरस की उम्र में मनीला में आयोजित 'फोर स्टार' बैडमिंटन जीतकर यकीनन देश की पहली खिलाड़ी होने का रुतबा हासिल कर लिया था, लेकिन इसके तुरंत बाद वे तीन टूर्नामेंट में इसलिए कामयाब नहीं हो पाईं, क्योंकि वे बड़ी रैंक वाले टूर्नामेंट थे। साइना का मुख्य हथियार उनकी आक्रामक शैली है। जब वे मनीला में चैम्पियन बनीं तो उन्होंने कहा था कि यह तो शुरुआत है, मेरी कोशिश होगी कि आगे भी यह प्रदर्शन जारी रहे।

  साइना नेहवाल हरियाणवी जाट हैं। उनकी माँ उषा रानी और पिता डॉ. हरवीरसिंह खुद भी बैडमिंटन के राष्ट्रीय चैम्पियन रह चुके हैं। चूँकि हरवीर कृषि वैज्ञानिक हैं, लिहाजा उनकी पोस्टिंग हैदराबाद में है      
यह बात बहुत कम लोगों को मालूम है कि साइना नेहवाल हरियाणवी जाट हैं। उनकी माँ उषा रानी और पिता डॉ. हरवीरसिंह खुद भी बैडमिंटन के राष्ट्रीय चैम्पियन रह चुके हैं। चूँकि हरवीर कृषि वैज्ञानिक हैं, लिहाजा उनकी पोस्टिंग हैदराबाद में है। यहीं पर उन्होंने अपनी बेटी को बहुत कम उम्र में पुलेला गोपीचंद के कोच मोहम्मद आरिफ के हवाले कर दिया था।

बाद में साइना गोपीचंद द्वारा खोली गई अकादमी में आ गईं। मनीला के पूर्व साइना द्वारा चीन में लिया गया एक महीने का प्रशिक्षण उनकी प्रतिभा को निखारने में काफी मददगार साबित हुआ। साइना के माता-पिता का एक ही सपना रहा कि उनकी बेटी ओलिम्पिक खेलों में भारत के लिए पदक जीते। बीजिंग में जरूर वे तीन गेमों के संघर्षपूर्ण मुकाबले में हारीं।

हार की वजह यह रही कि उनकी विरोधी खिलाड़ी अच्छी तरह जानती थी कि साइना को थका दिया जाए तो उनका काम आसान हो जाएगा। साइना निर्णायक सेट में 9-3 से आगे थीं, लेकिन 11 अंक के बाद वे पस्त होती चली गईं। मारिया क्रिस्टीन ने न केवल अंक के अंतर को कम किया, बल्कि 11-11 के बाद, 15-12 की बढ़त लेने के साथ ही यह फैसला भी कर डाला कि वे मुकाबले पर अपना शिकंजा कस चुकी हैं। मारिया ने 19-14 के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और 21-14 से मुकाबला जीतकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया।

  साइना ने अपने बैडमिंटन जीवन का पहला खिताब इंदौर में 2003 में उस वक्त जीता था, जब वे केवल 12 वर्ष 9 माह की थीं। तब उन्होंने अभय खेल प्रशाल में आयोजित ऑल इंडिया रैंकिंग में 16 वर्ष में चैम्पियन बनने के बाद 19 वर्ष का खिताब जीतकर नया कीर्तिमान रचा था      
इस मैच को देखने के लिए भारतीय ओलिम्पिक संघ के महासचिव रणधीरसिंह के अलावा ऑल इंग्लैंड चैम्पियन पुलेला गोपीचंद भी मौजूद थे। साइना के प्रदर्शन को देखते हुए अहसास होने लगा है कि गोपीचंद भारतीय बैडमिंटन के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं। साइना अभी 18 साल की हैं और वे भारतीय महिला बैडमिंटन की 'रोल मॉडल' बन सकती हैं।

आप यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि साइना ने अपने बैडमिंटन जीवन का पहला खिताब इंदौर में 2003 में उस वक्त जीता था, जब वे केवल 12 वर्ष 9 माह की थीं। तब उन्होंने अभय खेल प्रशाल में आयोजित ऑल इंडिया रैंकिंग में 16 वर्ष में चैम्पियन बनने के बाद 19 वर्ष आयु वर्ग का खिताब जीतकर नया कीर्तिमान रच डाला था। बेशक मधुमिता बिष्ट, अमी घिया ने विश्व स्तर पर काफी नाम कमाया हो, लेकिन वे कभी भी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट नहीं जीत पाईं।

बचपन में मॉडल बनने का ख्वाब देखने वाली साइना ने बीजिंग ओलिम्पिक के क्वार्टर फाइनल में पहुँचकर जो करिश्मा किया, उसने भारतीय महिला बैडमिंटन को ऊँची उड़ान भरने का हौसला तो दे ही दिया है।

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