-वेबदुनिया न्यूज
बुधवार की शाम को एक बार फिर ओलिम्पिक खेलों को लेकर भारतीय उम्मीदों का ज्वार फटने वाला है। बीजिंग ओलिम्पिक में भारत के 2 मुक्केबाज रिंग में उतरने वाले हैं और यदि वे क्वार्टर फाइनल मुकाबला जीत जाते हैं तो भारत की पदक तालिका में हलचल पैदा हो सकती है, जो बिंद्रा के एकमात्र स्वर्ण पदक से स्थिर बनी हुई है।
51 किलोग्राम भार वर्ग (फ्लाई वेट) में जितेन्दर कुमार का मुकाबला रूस के जी.बलाकशिन से और 75 किलोग्राम भार वर्ग (मिडिल वेट) में विजेन्दर का मुकाबला इक्वाडोर के कार्लोस गोंगारा से होगा।
जितेन्दर कुमार : फ्लाई वेट मुक्केबाज के रूप में पहचान बनाने वाले जितेन्दर कुमार का नाम पहली बार उस समय सुर्खियों में आया, जब उन्होंने 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में काँस्य पदक पर कब्जा जमाया।
इसी साल एशियन चैंपियनशिप वे भी वे काँस्य पदक विजेता रहे। यह अलग बात है कि शिकागो में 2007 में हुई विश्व चैंपियनशिप वे सिर्फ एक अंक से खिताब जीतने से दूर रह गए थे।
1999 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। जितेन्दर ने भिवानी स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण के कोच जगदीश सिंह से मुक्केबाजी की बारीकियाँ सीखी हैं।
1998 के राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने जॉन पिअर्स को हराया। 2004 की राष्ट्रमंडल प्रतियोगिता के सेमीफाइनल में स्टीवन बिर्च को मात दी। राष्ट्रीय स्तर पर वे हैवीवेट के रूप में खेलते हैं। हरियाणा से आने वाला यह काबिल मुक्केबाज दो ओलिम्पिक खेलों में भारत की नुमाइंदगी कर चुका है।
विजेन्दर कुमार : 2004 के एथेंस ओलिम्पिक में विजेन्दर ने वेल्टरवेट डिवीजन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, मगर दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से वे तुर्की के मुस्तफा कारागुल से 20-25 से हार गए।
मेलबोर्न में आयोजित 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने इंग्लैंड के नील पर्किंस को सेमीफाइनल में धूल चटाई, लेकिन फाइनल में दक्षिण अफ्रीकी मुक्केबाज बोंगानी म्यूलेस ने उन्हें स्वर्ण पदक से गला सजाने से रोक दिया।
2006 में भारत का यह उभरता सितारा फिर दहाड़ा, जब दोहा के एशियन गेम्स के मिडिलवेट (-75) में खेलते हुए उन्होंने काँस्य पदक पर मुहर लगा दी। सेमीफाइनल में कजाखिस्तान के बख्तियार अर्तायेव ने उन्हें 24-29 से रोक दिया। मौजूदा बीजिंग ओलिम्पिक में वे द्वितीय क्वालीफायर के रूप में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं।
विजेन्दर का जन्म भिवानी (हरियाणा) से पाँच किमी दूर कालूवास गाँव में 29 अक्टूबर 1985 को हुआ। उनके पिता महिपालसिंह शासकीय सेवक हैं और माँ गृहिणी। मुक्केबाजी में आने की प्रेरणा उन्हें अपने भाई मनोज से मिली।
मनोज भी मुक्केबाज थे और फिलहाल भारतीय सेना में पदस्थ हैं। विजेन्दर की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृहग्राम में ही हुई। उच्चतर पढ़ाई के लिए वे भिवानी चले गए। बाद में यहीं से वैश कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
मुक्केबाजी का चयन उन्होंने बचपन में शौकिया तौर पर कर लिया। बाद में भारतीय खेल प्राधिकरण भिवानी में अभ्यास के लिए अक्सर जाते रहे। जहाँ कोच जगदीशसिंह ने उनकी प्रतिभा को पहचाना।
अपना पहला रजत पदक विजेन्दर ने सब जूनियर नेशनल्स और फिर द्वितीय सब जूनियर खिलाड़ी रहते हुए हासिल किया। राष्ट्रीय जूनियर स्पर्धा में भी अपनी काबिलियत साबित की। बाद में प्रशिक्षण और प्रतियोगिताओं के लिए विजेन्दर ने क्यूबा का रुख किया और यहीं पर अपनी प्रतिभा को निखारा।