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चीनी एथलीटों को चुकानी पड़ती है बड़ी कीमत...

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लंदन , शुक्रवार, 10 अगस्त 2012 (19:29 IST)
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लंदन ओलिंपिक में ढेरों पदक जीत चुके चीन ने खेलों में एक बार फिर से अपनी धाक जमा दी है लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू बताता है कि चीनी एथलीटों को इसके लिए कड़ी मेहनत के साथ बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ती है।

एथेंस हो, बीजिंग ओलिंपिक हो या फिर लंदन ओलिंपिक हर जगह चीन के एथलीटों का जलवा देखने को मिला है। चीन को गौरवान्वित करने वाले ये एथलीट भी इन खेलों में जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं और इसका नतीजा भी दुनिया के सामने दिखाई देता है।

हालांकि चीन में एथलीटों के बेहतर प्रदर्शन और जीत सुनिश्चित करने के लिए काफी सख्त और रूढिवादी नियम अपनाता है, जो समय के साथ आलोचनाओं का भी शिकार हो रहे हैं। हाल ही में खेलों में चमकने के लिए खिलाड़ियों के साथ अपनाए जा रहे अमानवीय रवैये की सोशल नेटवर्किग साइटों पर कड़ी आलोचना भी देखी गई है।

चीन के एक अखबार शंघाई में गत सप्ताह प्रकाशित एक खबर के अनुसार ओलिंपिक में हिस्सा ले रही चीनी महिला गोताखोर वू मिक्शिया की मां ने अपने स्तन कैसर के ऑपरेशन को सिर्फ इसलिए टाल दिया था कि इससे उनकी बेटी के अभ्यास में विघ्न पड़ सकता है।

अखबार में छपी इस खबर पर चीन में कड़ी प्रतिक्रिया भी देखने को मिली थी और ब्लागरों ने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर पदक के लिए अपनाए जा रहे इस तरह के सख्त रवैये पर कड़ी आपत्ति जताई थी। 26 वर्षीय वू के ओलिंपिक के अभ्यास को देखते हुए उसके दादा-दादी की मौत की खबर भी उसे नहीं बताई गई थी।

वू ने ओलिंपिक में व्यक्तिगत पदक जीतने के बाद कहा था 'एथलीट ही नहीं बल्कि अभ्यास को लेकर उनके माता-पिता भी काफी सख्त होते हैं और वे अभ्यास शिविरों में एकाध बार ही आते हैं। हम अपने परिवारों से दूर रहते हैं ताकि हम अभ्यास कर सकें।'

गौरतलब है कि यूरोप में साम्यवाद के 'शासन और नियंत्रण' की बदौलत पूर्वी जर्मनी और सोवियत संघ खेल महाशक्ति के रूप में उभरे थे लेकिन साम्यवाद के खात्मे के बाद अब खेलों में उनके स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है जबकि चीन 'होल नेशन सिस्टम' की अपनी अवधाराणा बदौलत आज भी लगातार प्रगति के रास्ते पर है और खेल महाशक्ति के रूप में बढ़ रहा है।

चीनी एथलीट वू की ही तरह लंदन ओलिंपिक में हिस्सा ले रहे सभी 396 चीनी एथलीटों को बेहद कम उम्र में ही ओलिंपिक के लिए तैयार करना शुरू कर दिया गया था। बचपन से ही खेलों में हिस्सा लेने और पदक जीतने के लिए इन खिलाड़ियों को उनके बचपन, दोस्तों और परिवारों से बेहद दूर कर दिया जाता है। ऐसे में इन खिलाड़ियों के लिए साथी एथलीट, अधिकारी और इनके कोच ही इनका परिवार बन जाते हैं।

खेलों के लिए खुद को बचपन से ही तैयार करना और देश के लिए पदक सुनिश्चित करने के लिए चीन में एथलीटों को दिल, दिमाग और शरीर से पूरी तरह तो तैयार कर दिया जाता है लेकिन इस बीच ये एथलीट शिक्षा से काफी दूर हो जाते हैं और एरेना और स्टेडियम के बाहर की दुनिया में किसी काबिल नहीं रह जाते हैं।

कई विदेशी कोच एथलीटों को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने और उन्हें अमानवीय तरह से अभ्यास करने और जीतने के लिए मजबूर करने के लिए चीनी कोचों की कड़ी आलोचना करते हैं।

इंडियाना विश्वविद्यालय के गोताखोरी कोच जोनाथन डोएके ने कहा...आप नहीं जानते कि चीनी महिला एथलीट इतनी सफल क्यों होती हैं। इसका कारण है कि अधिकतर कोच पुरुष होते हैं और इन महिला कोचों को वे प्रताड़ित करते हैं और अभ्यास के दौरान पीटते हैं ताकि वे अच्छा प्रदर्शन करें।

उन्होंने कहा...अगर कोई एथलीट किसी चीज से इनकार करता है तो उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। उन्हें पीटा जाता है। यह एथलीटों को तैयार करने का एक बेहद बुरा और निर्दयी तरीका है।

डोएके ने कहा कि चीन की गोताखोर चेन नी चीन छोड़ अमेरिका आने से पहले काफी कड़े अभ्यास से गुजरी थी। उन्होंने बताया कि चेन गलतियां करने से डरती थी क्योंकि अगर वह ऐसा करती थी तो इसके लिए उन्हें कड़ी सजा भुगतनी पड़ती थी।

डोएके ने भी बताया कि उन्होंने कई चीनी कोचों के साथ काम किया है और उन सभी को अपने एथलीटों को इसी प्रकार से तैयार करने के लिए कहा जाता था।

बैडमिंटन और महिला टेबल टेनिस जैसे खेलों में सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाले चीन में इन खेलों में भी एथलीटों को अमानवीय तरह से तैयार करने के आरोप सामने आते रहे हैं।

ब्रिटेन की महिला खिलाड़ी ने कहा 'ब्रिटेन में खिलाड़ियों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं अपनाया जा सकता है जैसा कि चीन में होता है। यह ब्रिटेन में अवैध है। महिला एथलीट ने कहा कि कुछ वर्ष पहले जब वह ब्रिटेन के अन्य खिलाड़ियों के साथ शंघाई में खेल रही थीं तो वहां अभ्यास के दौरान एक चीनी कोच ने सभी के सामने एक एथलीट को लात मारी थी।

हालांकि चीनी अधिकारियों ने इन आरोपों से इनकार किया है। एक अधिकारी ने कहा एथलीटों को अच्छी तरह से तैयार होना जरूरी है। पता नहीं कि पश्चिमी देशों के लोग ऐसा क्यों सोचते हैं।

चीन की महिला टेबल-टेनिस टीम के कोच शि जियाओ ने कहा चीन एक स्वतंत्र देश है। यहां सभी को अपनी मर्जी से काम करने की इजाजत है। आप जो भी चाहे कर सकते हों।

चीन में एथलीटों को जीतने पर सरकार और उनके प्रांतों की ओर से इनामी राशि से सम्मानित किया जाता है। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक एथलीटों को खेलों के लिए प्रोत्साहित करना होता है लेकिन यह भी सच है कि खेलों से रिटायर होने के बाद एथलीटों की स्थिति काफी दयनीय हो जाती है।

चीन के अखबारों में आए दिन रिटायर चीनी एथलीटों की गरीबी और दयनीय स्थिति की खबरें प्रकाशित होती रहती हैं जो इस बात का प्रमाण है। चीनी एथलीट हालांकि खुलकर अपने सख्त खेल नियमों का विरोध नहीं करते हैं लेकिन चीनी ब्लॉगर लगातार इसका विरोध जता रहे हैं।

चीन के माइक्रो ब्लॉगिंग सिस्टम पर एक ब्लॉगर ने लिखा...देश का 'होल नेशन सिस्टम' बिल्कुल असहनीय है। इसके कारण युवा प्रतिभाओं को सख्त स्कूलों में बंद कर दिया जाता है और इससे वे अपनी बाहरी जिंदगी से बिल्कुल दूर हो जाते हैं। इसके अलावा कई ब्लागरों ने चीनी एथलीटों पर पदक जीतने के भारी दबाव की कड़ी आलोचना की है। (वार्ता)

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