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आतंक का कारण आंतरिक पशुता: ओशो

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दुनिया भर में बढ़ रहे आतंकवाद और हिंसा के बारे में पिछली शताब्दी के बेहद चर्चित दार्शनिक एवं आध्यात्मिक शख्सियत ओशो रजनीश का मानना है कि आतंकवाद का मूल कारण मनुष्य के मन में पल रहे स्वार्थ और लोभ जैसी पशुताएँ हैं और इनको दूर किए बिना इस विश्वव्यापी समस्या का निराकरण नहीं है।

ओशो का मानना था कि यदि मनुष्य में ध्यान के जरिए प्रेम और करुणा के फूल खिलाए जाएँ तो मानव के अवचेतन में छिपी हिंसा को दूर किया जा सकता है। इसी के साथ वह उत्सव प्रियता पर भी बहुत जोर देते हैं, क्योंकि उनके अनुसार धर्मों ने मनुष्य से उसकी उत्सव प्रियता को छीन लिया है।

ओशो वर्ल्ड पत्रिका के वरिष्ठ संपादक चैतन्य कीर्ति ने आतंकवाद पर ओशो के विचारों की चर्चा करते हुए कहा कि उनका मानना है कि आज समाज में हिंसा और आतंक इसलिए बढ़ गया है क्योंकि आदमी होश में नहीं जी रहा है। आदमी पशु है क्योंकि वह स्वार्थ और लोभ की भावना से प्रेरित होकर अन्य मनुष्य पर आक्रमण करने में संकोच नहीं करता।

उन्होंने कहा कि पशु का अर्थ है पाश यानी स्वार्थ से बंधा व्यक्ति। ओशो कहा आतंकवाद बमों में नहीं, किसी के हाथों में नहीं वह तुम्हारे अवचेतन में हैं यदि इसका उपाय नहीं किया गया तो हालत बद से बदतर हो जाएँगे।

विभिन्न धर्मों में बढ़ती कट्टरता के बारे में ओशो के विचार पूछने पर स्वामी चैतन्य कीर्ति ने कहा कि ओशो ने जीवन भर पंडित, मुल्ला, मौलवियों और पादरियों का कठोर विरोध किया था क्योंकि वे सब धर्म की एक खास व्याख्या पर जोर देते हैं। ओशो कहा करते थे कि विभिन्न भगवानों के बीच कोई लड़ाई नहीं है, लेकिन उनके अनुयायियों के बीच लड़ाई ही लड़ाई है।

नव संन्यास, डायनेमिक मेडिटेशन और संभोग से समाधि तक जैसी कई अवधारणाएँ देने वाले ओशो अपनी तमाम प्रखर बौद्धिक क्षमताओं के बावजूद जीवन भर विवादों के घेरे में रहे। विवादों के बावजूद उनके जीवन काल में दुनिया भर में उनके अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती रही।

दिलचस्प है कि ओशो की शख्सियत पूरी तरह बौद्धिक थी लेकिन उनके विरोधी उनके निजी बिन्दुओं पर जीवन भर उनका विरोध करते थे। तमाम व्यक्ति ही नहीं दुनिया की महाशक्ति अमेरिका की सरकार भी एक समय उनकी विरोधी हो गई और उन्हें अंतत: देश से निर्वासित करके ही दम लिया।

यही नहीं ओशो ने जब अन्य देशों से शरण माँगी तो दुनिया के 21 राष्ट्रों ने उन्हें पनाह देने से इनकार कर दिया।

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