जब हनीमून का जादू क्षीण हो जाता है तो आपके क्या विकल्प होते हैं? आप आग को पुन: प्रज्ज्वलित कर सकते हैं, आप कोई नया साथी खोज सकते हैं, या आप ऊर्जा को कुछ ज्यादा ताजगी से और ज्यादा गहराई के साथ रूपांतरित कर सकते हैं।
तुम किसी स्त्री अथवा किसी पुरुष के बारे में उत्तेजित हो जाते हो, मगर जब हनीमून समाप्त हो जाता है तब उत्तेजना भी समाप्त हो जाती है। लगभग हमेशा हनीमून के अंत तक विवाह का भी अंत हो जाता है- और फिर उम्र काटना मात्र रह जाता है। तुम्हें उत्तेजना की प्रतीक्षा होती है, और उत्तेजना कोई अनवरत घटना नहीं है। यदि तुम्हारा प्रेम शीतल है- ठंडा नहीं, ध्यान रहे, शीतल। ठंडा मुर्दा होता है, शीतल जिंदा होता है। मगर उसमें उत्तेजना नहीं होती, तो यह निश्चित ही ऊब में बदल जाता है।
इस दुनिया में प्रत्येक वस्तु ऊब के साथ समाप्त होती है, ऐसा होना ही है। जब तुम अपने अस्तित्व के अंतर्तम में पहुँच जाते हो जब तुम अकारण ही प्रसन्न हो जाते हो। तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न होते हो, कोई ऊब नहीं होगी। और यही तो प्रेम में भी होता है।
कोई हनीमून जब समाप्त होने के बिंदु पर पहुँच जाता है तो वह हनीमून तो था ही नहीं। वास्तविक प्रेमी अंत तक प्रेम करते हैं। अंतिम दिन वे इतनी गहराई से प्रेम करते हैं जितना उन्होंने प्रथम दिन किया होता है; उनका प्रेम कोई उत्तेजना नहीं होता। उत्तेजना तो वासना होती है। तुम सदैव ज्वरग्रस्त नहीं रह सकते। तुम्हें स्थिर और सामान्य होना होता है। वास्तविक प्रेम किसी बुखार की तरह नहीं होता यह तो श्वास जैसा है जो निरंतर चलता रहता है।
जिस हनीमून का अंत हो जाता है वह हनीमून नहीं था। यदि उसमें प्रेम होता है तो समूचा जीवन हनीमून बन जाता है, इसका प्रत्येक क्षण नया-नया होता है। हर क्षण से कुछ नया उद्घाटित होता है, लेकिन ध्यान रहे, अंत को वैसा ही मानो जैसा तुम प्रारंभ को मानते हो।
- ओशो
1.रिटर्निंग टु दि सोर्स
2.एब्सोल्यूट ताओ
साभार : ओशो टाइम्स