यह बहुत अच्छा हुआ कि जीसस और मोजेज (मूसा) दोनों की मृत्यु भारत में ही हुई। भारत न तो ईसाई है और न ही यहूदी। परंतु जो आदमी या जो परिवार इन कब्रों की देखभाल करते हैं वे यहूदी हैं। दोनों कब्रें भी यहूदी ढंग से बनी हैं। हिन्दू कब्र नहीं बनाते। मुसलमान बनाते हैं किंतु दूसरे ढंग की। मुसलमान की कब्र का सिर मक्का की ओर होता है। केवल वे दोनों कब्रें ही कश्मीर में ऐसी हैं, जो मुसलमान नियमों के अनुसार नहीं बनाई गईं।
जीसस का मूसा से अपूर्व प्रेम था। तुम जानकर यह हैरान होओगे कि जीसस सूली से बच गए थे। कैसे बच गए यह तो लंबी कथा है, लेकिन इतना तय है कि सूली से बच गए थे। सूली से बचकर जीसस कहां गए? सूली से बचकर जीसस भारत की तरफ आए- कश्मीर आए। क्यों आए कश्मीर? सिर्फ इसलिए आए कि कश्मीर में मूसा की लाश गड़ी है। मूसा की देह कश्मीर में है। मूसा की तलाश में आए। उन्हीं की कब्र के पास कहीं सो जाने के मन से आए। मूसा के प्रति ऐसी चाहत थी।
ईसा मसीह का भारत भ्रमण!
लेकिन जो जीवनभर किया, वह ऐसा था कि मूसा को मानने वालों ने सूली लगा दी थी। सूली में कुछ व्यवस्था बन गई, जीसस बच सके। जिस आदमी ने सूली दी, जो गवर्नर जनरल था, वह चाहता नहीं था कि सूली दे- पांटियस पायलट जीसस से प्रभावित हो गया था। वह रोमन था, यहूदी नहीं था; उसे कोई विरोध भी नहीं था जीसस से। रोम का साम्राज्य था इसराइल पर, वह गवर्नर था रोम का, वह चाहता था जीसस को बचा ले, उसने बहुत कोशिश भी की। उसका पत्र पाया गया है जिसमें उसने जीसस की बड़ी प्रशंसा की है। लेकिन यहूदियों ने बड़ा जोर मारा। उन्होंने कहा कि अगर तुम नहीं जीसस को सूली दोगे तो हम सम्राट से प्रार्थना करेंगे कि गवर्नर को बदला जाए। इतनी झंझट में वह भी नहीं पड़ना चाहता था, अपना पद वह भी नहीं खोना चाहता था और यहूदी एकमत से जीसस को सूली देना चाहते थे इसलिए पांटियस पायलट ने इस ढंग से सूली दी कि जीसस बच जाएं।
उन दिनों जिस ढंग से सूली दी जाती थी, उसमें आदमी को मरने में कम से कम तीन दिन से सात दिन लगते थे। बड़ी पीड़ादायी थी। हाथों में कीले ठोंक दिए जाते थे, पैर में कीले ठोंक दिए जाते थे और लटका दिया एक तख्ते पर। आदमी एकदम नहीं मरता। इतनी जल्दी नहीं मर सकता। हाथ और पैर में कोई मरने की बात नहीं है। खून बहता, खून सूख जाता, बहना बंद हो जाता, आदमी लटका है- तीन से लेकर सात दिन मरने में लगते थे।
पांटियस पायलट ने एक तरकीब की। उसने शुक्रवार की शाम को, जब दोपहर ढलती थी तब जीसस को सूली दी। यहूदियों का नियम है कि कोई भी व्यक्ति शनिवार को सूली पर न लटका रहे- उनका पवित्र दिन है। यह होशियारी की पांटियस पायलट ने, वह चाहता था जीसस को बचा लेना। उसने सूली ऐसे मौके पर दी कि सांझ के पहले, सूरज ढलने के पहले जीसस को सूली से उतार लेना पड़ा। बेहोश हालत में वे उतार लिए गए। वे मरे नहीं थे। फिर उन्हें एक गुफा में रख दिया गया और गुफा उनके एक बहुत महत्वपूर्ण शिष्य के जिम्मे सौंप दी गई। मलहम-पट्टियां की गईं, इलाज किया गया और जीसस सुबह होने के पहले वहां से भाग गए। लेकिन मन में उनके एक ही आशा थी- जाकर मूसा की कब्र के करीब विश्राम करना है!
इसके पहले मूसा भी कश्मीर आकर मरे। कश्मीर मरने लायक जगह है। पृथ्वी पर स्वर्ग है। जीसस उनकी तलाश में आए उसी रास्ते से। ज्यादातर कश्मीरी मूलतः यहूदी हैं। कश्मीरियों का मूल उत्स यहूदी है। जीसस काफी वर्षों तक जिए कश्मीर में। उनकी कब्र भी कश्मीर में बनी।
जीसस ने वही कहा जो मूसा ने कहा था, लेकिन यहूदियों ने सूली लगा दी। अगर जीसस फिर लौटकर आएं, तो अबकी बार ईसाई उन्हें सूली लगाएंगे।
सत्य सदा सूली पर। झूठ सदा सिंहासन पर, क्योंकि झूठ तुम्हारी फिकर करता है; तुम्हें जो रुचे, वही कहता है; तुम्हें जो भाए, वही कहता है- तुम्हें चोट नहीं पहुंचाता। तुम्हें फुसलाता है, तुम्हें मलहम-पट्टी करता है; तुम्हें सांत्वना देता। झूठ तुम्हारी सेवा में रत होता है। चूंकि झूठ तुम्हारी सेवा में रत होता है, इसलिए तुम झूठ से बड़े राजी और प्रसन्न होते हो। सत्य तुम्हारी सेवा में रत नहीं है सत्य तो सत्य की सेवा में रत है। तुम्हें चोटें पहुंचती हैं।
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ये वही लोग होंगे जिन्होंने उस आदमी को मार डाला था और अभी भी वे उसके ताबुत पर कीलें ठोके जा रहे हैं कि वह बाहर न निकल आए। ये वहीं लोग हैं, जो अभी भी उसे सूली पर लटका रहे हैं और वह तो दो हजार साल पहले मर चुका है। अब उसे सूली पर चढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है। परंतु वह अपनी समझदारी से सूली पर मरने से बच गया। ठीक समय पर वहां से भाग गया था। आम जनता के लिए तो उसने सूली पर चढ़ने का नाटक किया और जब लोग घर चले गए तो वह भी घर चला गया। मेरा यह अर्थ नहीं है कि वह परमात्मा के पास चला गया, ऐसा मत समझना। वह सचमुच अपने घर चला गया।अभी भी ईसाइयों को जो गुफा दिखाई जाती है कि जिसमें जीसस के शरीर को रखा गया था- वह सब बकवास है। कुछ घंटों के लिए उनके शरीर को वहां रखा गया था। शायद रातभर भी रखा गया हो किंतु उस समय वे जीवित थे। यह बात बाइबिल द्वारा ही सिद्ध होती है। बाइबिल में कहा गया है कि जब उन्होंने समझा कि जीसस मर गए तो एक सिपाही ने उनके शरीर में भाला भोंक दिया और खून निकल आया। परंतु मरे हुए आदमी के शरीर से खून नहीं निकलता। जैसे ही आदमी मरता है वैसे ही उसका खून विघटित होना शुरू हो जाता है। अगर बाइबिल में यह कहा गया होता कि पानी निकलता तो मुझे यह विश्वास होता कि वे सच कह रहे हैं। परंतु यह लिखना भी बहुत मूर्खतापूर्ण लगता कि पानी बाहर निकला। सच तो यह है कि जीसस यरुशलम में कभी मरे ही नहीं। वे तो पहलगाम में मरे थे।'
पहलगाम' शब्द का वही अर्थ है, जो मेरे गांव के नाम का अर्थ है। पहलगाम इस संसार में बहुत ही सुंदर स्थान है। जीसस यहीं पर मरे थे और उस समय उनकी उम्र 112 वर्ष की थी। किंतु वे अपने ही लोगों से इतने परेशान हो गए थे कि उन्होंने स्वयं ही यह अफवाह फैला दी कि वे सूली पर मर गए हैं।सूली उनको अवश्य लगी थी। किंतु तुम्हें यह समझ लेना चाहिए कि सूली देने का जो यहूदी तरीका था वह अमेरिका जैसा नहीं था कि कुर्सी पर बिठाकर बस बटन दबाया और आदमी मर गया। इतना भी समय नहीं मिलता कि कोई यह कहे कि हे भगवान, इन लोगों को क्षमा करना, जो बटन दबा रहे हैं। इन्हें नहीं मालूम कि वे क्या कर रहे हैं। वे जानते हैं कि वे क्या कर हैं। वे बटन दबा रहे हैं। और तुम्हें नहीं मालूम कि वे क्या कर रहे हैं।अगर जीसस को वैज्ञानिक ढंग से सूली दी जाती तो उनको कोई समय नहीं मिलता। यहूदियों का ढंग बहुत बर्बर और असभ्य था। कभी-कभी तो मरने मैं चौबीस घंटे से भी अधिक समय लगता था। कभी-कभी तो यहूदियों की सूली पर चढ़ाए जाने के बाद लोग तीन-तीन दिन जीवित रहते थे, क्योंकि वे सिर्फ आदमी के हाथों और पैरों में कीलें ठोंक देते थे। खून में जमने की क्षमता होती है। वह थोड़ी देर बहने के बाद जमने लगता है। आदमी को तब बहुत पीड़ा होती है। वह परमात्मा से प्रार्थना करता है कि जल्दी से जल्दी समाप्त करो। जीसस का भी शायद यही मतलब था, जब वे कह रह थे कि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। आपने मुझे क्यों त्याग दिया है। पीड़ा बहुत अधिक हुई होगी, क्योंकि अंत में उन्होंने कहा था कि तेरी मर्जी पूरी हो।मैं नहीं सोचता कि वे सूली पर मरे। नहीं, मुझे तो यह भी नहीं कहना चाहिए कि ‘मैं नहीं सोचता’… मैं जानता हूं कि वे सूली पर नहीं मरे। उन्होंने कहा था : तेरी मर्जी पूरी हो। यह उनकी स्वतंत्रता थी। अब वे जो चाहे कह सकते थे। सच तो यह है कि रोम के गवर्नर पांटियस को उनसे प्रेम हो गया था। किसे न होता, जो भी ठीक से देख सकता था उसके लिए यह स्वाभाविक ही था।परंतु जीसस के अपने लोग तो पैसे गिनने में व्यस्त थे। उनके पास इतना समय ही कहां था कि वे जीसस की आंखों में झांककर देख सकें? जीसस के पास पैसा भी नहीं था। पांटियस पायलट ने तो एक बार यह भी सोचा कि वह उनको छोड़ दे, क्योंकि उन्हें मुक्त करने का अधिकार उसे था। किंतु वह उन लोगों की भीड़ से डर गया। और वह इस प्रकार की किसी मुसीबत में पड़ना नहीं चाहता था। उसे मालूम था कि जीसस यहूदी हैं और ये लोग भी यहूदी हैं इसीलिए इन्हें आपस में निपटने दो- इन्हें स्वयं ही फैसला करने दो। पायलट ने यह भी सोच लिया कि अगर इन्होंने जीसस के पक्ष में निर्णय नहीं लिया तो फिर मुझे कोई दूसरा रास्ता खोजना पड़ेगा।और उसने रास्ता खोज लिया। राजनीतिज्ञ सदा कोई न कोई रास्ता खोज ही लेते हैं। वे घुमा-फिराकर काम करते हैं। वे सीधे नहीं जाते। अगर उन्हें ‘क’ के पास जाना हो तो वे पहले 'ख' के पास जाते हैं। राजनीति में काम ऐसे ही होता है और यह बड़ा कारगर तरीका होता है। किंतु जब कोई व्यक्ति राजनीतिज्ञ नहीं होता तो यह तरीका कारगर नहीं होता। पांटियस पायलट ने अपने को किसी मुसीबत में डाले बिना जीसस के मामले को बहुत अच्छी तरह से सुलझा दिया।शुक्रवार दोपहर को जीसस को सूली लगी थी इसीलिए उस दिन को 'गुड फ्रायडे' कहते हैं। अजीब दुनिया है। इतने अच्छे आदमी को सूली लगी और तुम उस दिन को 'अच्छा शुक्रवार' कहते हैं, किंतु इसका कारण था, क्योंकि यहूदी… मेरा ख्याल है कि देवगीत, तुम फिर मेरी सहायता कर सकते हो। अपनी छींक से नहीं क्या शनिवार उनका धार्मिक दिन है?हां ओशो।अच्छा… क्योंकि शनिवार को कुछ भी किया जाता। शनिवार यहूदियों के लिए अच्छा दिन है। सब काम बंद कर दिए जाते हैं इसीलिए शुक्रवार का दिन चुना गया था। और वह भी दोपहर बाद का जब सूर्य अस्त होने वाला था, सूर्य अस्त होने के बाद शरीर नीचे उतार लिया गया, क्योंकि अगर शनिवार को भी वह लटकता रहे तो वह भी एक प्रकार का काम हो जाएगा और शनिवार को यहूदियों की छुटटी होती है। राजनीति में ऐसे ही काम होता है, धर्म में नहीं। रात को जीसस के एक अमीर अनुयायी ने जीसस के शरीर को उस गुफा से बाहर निकाल लिया। इसके बाद रविवार को तो सब लोगों की छुटटी होती है। सोमवार तक तो जीसस बहुत ही दूर चले गए थे।इसराइल बहुत ही छोटा-सा देश है। पैदल चलकर भी चौबीस घंटों में उसे पार किया जा सकता है। जीसस भाग गए और इसके लिए हिमालय से अच्छा और कौन-सा स्थान हो सकता है। पहलगाम एक छोटा-सा गांव है, जहां पर कुछ एक झोपड़ियां हैं। इसके सौंदर्य के कारण जीसस ने इसको चुना होगा। जीसस ने जिस स्थान को चुना, वह मुझे भी बहुत प्रिय है।मैंने बीस साल तक निरंतर कश्मीर में रहने की कोशिश की, परंतु कश्मीर का कानून बड़ा अजीब है। केवल कश्मीरी लोग ही वहां रह सकते हैं, दूसरे भारतीय भी नहीं। यह तो अजीब बात है। किंतु मुझे मालूम है कि नब्बे प्रतिशत कश्मीरी मुसलमान हैं और उनको यह डर है कि अगर भारतीयों को वहां बसने की अनुमति मिल जाएगी तो हिन्दुओं की संख्या अधिक हो जाएगी, क्योंकि वह भारत का ही हिस्सा है। अब तो यह खेल वोटों का है- हिन्दुओं को वहां नहीं बसने दिया जाएगा।मैं हिन्दू नहीं हूं किंतु सरकारी नौकर मंदबुद्धि वाले होते हैं। इनको तो मानसिक अस्पतालों में रखना चाहिए। वे मुझे वहां रहने की अनुमति ही नहीं देते हैं। मैं कश्मीर के मुख्यमंत्री से भी मिला था, जो पहले कश्मीर का प्रधानमंत्री माना जाता था। उसे प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री पद पर लाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। अब एक देश में दो प्रधानमंत्री कैसे हो सकते हैं? किंतु यह व्यक्ति शेख अब्दुल्ला इस बात को मानने के लिए राजी ही नहीं था। उसको कई वर्ष तक कैद में रखना पड़ा, तब कश्मीर के सारे संविधान को बदल दिया गया। किंतु यह अजीब खंड वैसे का वैसा ही बना रहा, इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। शायद कमेटी के सब सदस्य मुसलमान थे और वे नहीं चाहते थे कि कोई कश्मीर में प्रवेश कर सके। मैंने बहुत कोशिश की किंतु सफल न हो सका। इन राजनीतिज्ञों की मोटी खोपड़ी में कुछ भी नहीं घुस सकता।मैंने जीसस की कब्र को कश्मीर में देखा है। उनकी तथाकथित सूली के बाद वे यहीं पर भाग आए थे। मैं इसे 'तथाकथित' ही कहता हुं, क्योंकि इसका सारा इंतजाम बड़ी कुशलता से किया गया था। इसका सारा श्रेय तो मिलता है पांटियस पायलट को जब जीसस को गुफा में से निकल जाने दिया गया तो प्रश्न यह खड़ा हो गया कि वे कहां जाएं? इसराइल से बाहर कश्मीर ही एक ऐसा स्थान था, जहां पर वे शांति से रह सकते थे, क्योंकि वह एक छोटा इसराइल था। यहां पर केवल जीसस ही व मोजेज भी दफनाए गए थे।इससे तुम और भी चौंक जाओगे। मैंने उनकी कब्र को भी देखा है। दूसरे यहूदी मोजेज से यह बार-बार पूछ रहे थे कि हमारा खोया हुआ कबीला कहां है।रेगिस्तान में चालीस साल तक निरंतर समय में एक जाति खो गई थी। यहां पर मोजेज गलती कर गए। अगर वे दाएं न जाकर बाएं चले जाते तो यहूदी बग तक तेल के राजा बन गए होते। किंतु यहूदी तो यहूदी ही होते हैं। इनके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि वे कब क्या कर बैठेंगे। मोजेज को इजिप्ट से इसराइल तक की यात्रा करने में चालीस साल लगे।मैं न तो यहूदी हूं, न ईसाई। और इससे मेरा कोई सरोकार नहीं है। किंतु केवल उत्सुकतावश मेरे मन में यह प्रश्न उठता है। उन्होंने इसराइल को ही क्यों चुना? मोजेज ने इसराइल की खोज क्यों कि। वे एक सुंदर स्थान की खोज कर रहे होंगे- खोजते-खोजते बूढ़े हो गए…। चालीस साल रेगिस्तान में कठिन यात्रा करने के बाद……मैं तो ऐसा नहीं कर सकता था। चालीस साल, मैं तो चालीस घंटे भी नहीं कर सकता था। मैं नहीं कर सकता……मैं तो हाराकिरी कर लेता। हाराकिरी तो तुम जानते हो। साधारण भाषा में इसका अर्थ है आत्महत्या, और हाराकिरी आत्महत्या नहीं है।चालीस साल यात्रा करने के बाद मोजेज इसराइल पहुंचे और वे उस धूलभरे और बदसूरत स्थान यरुशलम में आए। और इस सबके बाद- यहूदी आखिर यहूदी ही होते हैं- उन्होंने अपने खोए हुए कबीले को खोजने के लिए फिर यात्रा करने की जिद की। मेरा अनुमान है कि इन लोगों से छुटकारा पाने के लिए वे चले गए। किंतु वे खोजते कहां, सबसे नजदीक और सुंदर स्थान हिमालय ही था। ओर वे उसी घाटी में पहुंच गए।अरबी में 'मोजेज' को 'मूसा' कहते हैं। उनकी कब्र पर भी 'मूसा' लिखा है। अरबी में 'जीसस' को अरेमेक की तरह 'येशु' कहा जाता है, जो कि हिब्रू भाषा के जोशुआ का परिवर्तित रूप है और यह उसी प्रकार लिखा जाता है। तुम यह गलत समझ सकते हो कि येशु जीसस हैं या मूसा मोजेज। मूल शब्दों को अंग्रेजी में गलत उच्चारण के कारण ही मोजेज और जीसस बन गए।जोशुआ धीरे-धीरे येशु ही बन जाएगा। जोशुआ कुछ भारी-भरकम है। येशु ठीक है। भारत में हम 'जीसस' को 'यीशु' कहते हैं। हमने इस नाम को और अधिक सुंदर बना दिया है। जीसस ठीक है, पर तुम्हें मालूम है कि इसके साथ क्या किया है। जब कभी कोई कोसना चाहता है तो वह कहता है। जीसस, इस ध्वनि में जरूर कुछ है। अब अगर किसी को जोशुआ कहकर कोसना हो तो मुश्किल हो जाएगा। यह शब्द ही तुम्हें ऐसा करने से रोक देगा। यह शब्द इतना स्त्रैण, इतना सुंदर, इतना गोल है कि तुम इससे किसी को चोट ही नहीं पहुंचा सकते।समय क्या हुआ है?ग्यारह बजकर बीस मिनट, ओशो।अच्छा, अब इसे समाप्त करो।-
ओशोसाभार : अथातो भक्ति जिज्ञासा, गोल्डन चाइल्डहुड सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन