Shree Sundarkand

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

इतिहास और पुराण

Advertiesment
हमें फॉलो करें ओशो रजनीश राम सेतु हिंदू धर्म

माँ अमृत साधना

, शुक्रवार, 28 सितम्बर 2007 (11:54 IST)
फिलहाल रामसेतु को लेकर वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोणों में जो घमासान चल रहा है, उसे अगर विदेश से आया हुआ कोई व्यक्ति देखे तो वह क्या अनुमान लगाएगा? एक तरफ यह देश कम्प्यूटर और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पूरी दुनिया को जीतने चला है और दूसरी तरफ हजारों साल पहले हुए (या न हुए?) चरित्रों को लेकर जी-जान से लड़ रहा है।

बिलकुल नई तहजीब से आए हुए इनसान को यह समझ में नहीं आता कि हमारे पुराणों को लेकर हम इतने गंभीर क्यों हो जाते हैं? इस वाक्य में छिपी हुई राजनीति की की अंतर्धारा को घड़ीभर के लिए छोड़ दें, फिर भी सवाल है इस देश की मानसिकता का। जिसे हम धार्मिकता कहते हैं, वह एक प्रौढ़ और परिपक्व समझदारी क्यों नहीं दिखाती?

आज धर्म की यह हालत इसलिए है क्योंकि वह भावुकता बनकर रह गया है। भाव निहायत कमजोर और विस्फोटक चीज है, उसे भड़काना बेहद सरल है। इस स्थिति पर दुख इसलिए होता है क्योंकि भारत ने आध्यात्म के इतने बुलंद शिखर छुए हैं, आज भी यहाँ के उपनिषदों का कोई सानी नहीं है, फिर क्यों कर यहाँ धर्म का इतना बुरा हाल है?

एक कारण तो यह है कि राजनीति धर्म में प्रवेश कर गई है। यह धर्म की बहुत बड़ी ग्लानि है और हानि भी है। लेकिन इन काले बादलों में एक रुपहली लकीर यह है कि भारत की युवा पीढ़ी इस खेल से बाहर है। वे विज्ञान पढ़ते हैं और विज्ञान के साथ जीते हैं। अन्यथा यहाँ के उद्योग इतने तरक्की नहीं कर पाते, और न ही भारत के आईटी पेशेवरों की तूती दुनिया में बजती।

रामायण या कोई भी अन्य पौराणिक कथाएँ सत्य इसलिए मालूम पड़ने लगती हैं क्योंकि सदियों से उन्हें सुनते-सुनते वे हमारे अवचेतन में रच-बस गई है। उनके जीवन के प्रसंग हमने अनगिनत बार दोहराए हैं, अभिनीत किए हैं, इस कारण अब हम एक तरह के आत्म सम्मोहन के वशीभूत हो गए हैं और कहानी को सच मानने लगे हैं। मिथकों की ताकत यही है कि वे एक साथ हकीकत और कहानी की सीमा पर खेलते हैं।

आज के पाश्चात्य नजरिए से प्रभावित लोगों को पुराण की कोई समझ नहीं है, आज हवा का रुख है इतिहास की ओर। इतिहास सही माना जाता है और पुराण काल्पनिक। लेकिन जो किसी तल पर कल्पना है वह किसी दूसरे तल पर सचाई होती है, क्योंकि जीवन के अनेक तल हैं। जीवन रहस्य है जिसकी पर्तों पर पर्तें हैं। यदि वर्तमान धार्मिकों के पास थोड़ी-सी वैज्ञानिक समझ होती तो वे पुराण में छिपे इतिहास को और इतिहास में छिपे पुराण को अलग करना जानते, हंस की तरह।

ओशो ने इतिहास और पुराण का भेद बड़ी सुंदरता से कथन किया है। यह बात उन्होंने आज से लगभग 35 साल पहले कही थी, लेकिन आज जो बवाल मचा है, उसे देखते हुए लगता है जैसे उन्होंने कल ही यह बात कही हो : 'कथाएँ इतिहास नहीं हैं, कथाएँ पुराण हैं। इतिहास और पुराण का भेद समझ लेना चाहिए। इतिहास तो वह है जो घटा हुआ; पुराण वह है जो सदा है। इतिहास समय में घटता है, पुराण शाश्वत है। तो पुराण को सिद्ध करने की कोशिश मत करना कि वह हुआ कि नहीं, वह तो भूल ही हो गई फिर। फिर तो तुम कविता को समझे ही नहीं, काव्य को पहचाने ही नहीं। फिर तो तुम गलत रास्ते पर चल पड़े। ऐसा चल रहा है पूरे मुल्क में, जहारों साल से चल रहा है, अभी भी चलता है।

'अभी कुछ दिन पहले पुरी के शंकराचार्य ने चुनौती दी कि कोई भी अगर सिद्ध कर दे कि रामायण झूठ है तो मैं शास्त्रार्थ करने के लिए तैयार हूँ। कुछ हैं तो सिद्ध करना चाहते हैं कि रामायण झूठ है, कुछ हैं जो सिद्ध करना चाहते हैं कि रामायण सच है। और दोनों ऐक ही नाव में सवार है। न रामायण झूठ है न रामायण सच है, रामायण पुराण है। रामायण का समय से कोई संबंध नहीं, इतिहास से कोई संबंध नहीं। ऐसा कभी हुआ है तो सवाल ही नहीं है, ऐसा नहीं हुआ है तो यह सवाल उठता ही नहीं। ऐसा होता रहा है- ऐसा आज भी हो रहा है, अभी भी घट रहा है।

पुराण का अर्थ है जीवन का सार निचोड़ थोड़ी-सी कहानियों में रख दिया है। कहानियों पर जिद मत करना, सार-निचोड़ को पकड़ना।'

'इतिहास क्षुद्र की बात कहता है। इसलिए तो इस देश को एक नई चीज खोजनी पड़ी : उसको हम पुराण कहते हैं। पुराण बड़ा महिमावान है, दुनिया में कहीं भी पुराण जैसी धारणा नहीं है। पुराण का अर्थ इतिहास नहीं होता, पुराण कुछ और है। पुराण का मतलब होता है ऐसी बात जिसका इतिहास कोई लेखा-जोखा नहीं रखेगा, नहीं रख सकेगा।

इतिहास तो लेखा-जोखा रखता है राजनीति का, जिनका कोई मूल्य नहीं है। लेकिन घड़ी भर जो मंच पर आते हैं वे बड़ा शोरगुल मचा देते हैं, घड़ी भर के लिए उनकी गूँज व्याप्त हो जाती है, घड़ी कर के लिए। इतिहास घड़ी भर के लिए जो प्रभावशाली मालूम पड़ते हैं उनका अंकन कर लेता है। पुराण उनका अंकन करता है जो सदा-सदा के लिए महिमाशाली है।

अब इन दोनों में फर्क होने वाला है। जो महिमाशाली है उनको पहचानने के लिए हजारों साल लग जाते हैं, उसका इतिहास कैसे बनाओगे? इतिहास तो उनका बनता है जिनको तुम अभी पहचान लेते हो। इसलिए हमने- सिर्फ हमने दुनिया में पुराण जैसी चीज खोजी। पुराण का अर्थ होता है समय की धारा पर जिसके चिह्न नहीं छूटते, शाश्वत से जिसका संबंध है, उसका भी हमें उल्लेख करना चाहिए, उसको भी हमें संग्रीहत करना चाहिए।

'पश्चिम के जो लोग भारत के पुराण पढ़ते हैं, उनकी दृष्टि पुराण की नहीं है। भारतीय भी अब भारतीय नहीं हैं। वे भी जब पुराण पढ़ते हैं तो उनकी दृष्टि भी पुराण की नहीं है। वे कहते हैं, यह इतिहास नहीं है। कहा किसने कि यह इतिहास है? इतिहास शब्द का अर्थ समझते हो? जिसकी इति आ जाए, जिसका ह्‍ास हो जाए। जिसका अंत आ जाता है जल्दी और जो धूल में खो जाता है- वह है इतिहास। पुराण का क्या अर्थ होता है? जो सदा से चला आया है और सदा चलता रहेगा- पुर+आण। आता ही रहा है... आता ही रहा है... चलता ही रहा है... जो शाश्वत है, सनातन है। उसे पकड़ने के लिए कुछ और उपाय हैं।'

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi