इसलिए दूसरा सूत्र में तुमसे कहता हूँ और वह यह कि जवानी संघर्ष से पैदा होती है। संघर्ष गलत के लिए भी हो सकता है, और तब जवानी कुरूप हो जाती है। संघर्ष बूरे के लिए भी हो सकता है, तब जवानी विकृत हो जाती है। संघर्ष अंधेरे के लिए भी हो सकता है, तब जवानी आत्मघात कर लेती है। लेकिन संघर्ष जब सत्य के लिए, सुंदर के लिए, श्रेष्ठ के लिए होता है, संघर्ष जब परमात्मा के लिए होता है, संघर्ष जब जीवन के लिए होता है, तब जवानी सुंदर, स्वस्थ्, सत्य होती चली जाती है।हम जिसके लिए लड़ते हैं, वहीं हम हो जाते हैं। इसे ध्यान में रख लेना: हम जिसके लिए लड़ते हैं, अंतत: अंतत: हम वही हो जाते हैं। लड़ो सुंदर के लिए और तुम सुंदर हो जाओगे। लड़ो सत्य के लिए और तुम सत्य हो जाओगे। लड़ो श्रेष्ठ के लिए, और तुम श्रेष्ठ हो जाओगे। और मत लड़ो- तुम खड़े-खड़े सड़ोगे और मर जाओगे और कुछ भी नहीं होओगे। जिंदगी संघर्ष है और जिंदगी संघर्ष से ही पैदा होती है। फिर जैसा हम संघर्ष करते हैं, हम वैसे ही हो जाते हैं।
हिंदुस्तान में कोई लड़ाई नहीं है, कोई फाइट नहीं है! हिंदुस्तान के मन में कोई भी लड़ाई नहीं है! सब कुछ हो रहा है, अजीब हो रहा है। हम सब जानते हैं, देखते हैं- सब हो रहा है। और होने दे रहे हैं। अगर हिंदुस्तान की जवानी खड़ी हो जाए तो हिंदुस्तान में फिर ये सब नासमझियाँ नहीं हो सकती जो हो रही हैं। एक आवाज में टूट जाएगी। चूँकि जवानी नहीं है, इसलिए कुछ भी हो रहा है।
- ओशो
संभोग से समाधि की ओर, प्रवचन 11
साभार: ओशो टाइम्स इंटरनेशनल 1 मई 1993