Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

साधुओं की रक्षा और दुष्टों का विनाश कब होता है?

हमें फॉलो करें साधुओं की रक्षा और दुष्टों का विनाश कब होता है?

ओशो

ND
FILE
कृष्ण का प्रसिद्ध वक्तव्य है, 'परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌', वह क्या अर्थ रखता है?

कहते हैं, साधुओं की रक्षा के लिए और दुष्टों के अंत के लिए मैं आऊँगा। ठीक है। दोनों का एक ही मतलब है। दुष्ट का अंत कब होता है, यह थोड़ा समझने जैसा है। दुष्ट का अंत कब होता है? मार डालने से? मार डालने से दुष्ट का अंत होता। क्योंकि कृष्ण भलीभाँति जानते हैं कि मारने से कुछ मरता नहीं। दुष्ट का अंत तभी होता है जब उसे साधु बनाया जा सके, और कोई उपाय नहीं। मारने से दुष्ट का अंत नहीं होता। इससे सिर्फ दुष्ट का शरीर बदल जाएगा और कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। दुष्ट का अंत एक ही स्थिति में होता है, जब वह साधु हो जाए

और बड़े मजे की बात है कि दूसरी बात उन्होंने कही कि साधुओं की रक्षा के लिए। साधुओं की रक्षा की जरूरत तभी पड़ती है जब वे दिखावटी साधु रह जाएँ, अन्यथा नहीं पड़ती। फिर साधु की रक्षा की क्या जरूरत होगी? साधु को भी रक्षा की जरूरत पड़ेगी तो फिर तो बहुत मुश्किल हो जाएगा। साधुओं की रक्षा के लिए आऊँगा, इसका मतलब है, जिस दिन साधु झूठे साधु होंगे, असाधु होंगे, उस दिन मैं आऊँगा। सिर्फ असाधु के लिए ही रक्षा की जरूरत पड़ सकती है, जो दिखाई पड़ता हो साधु हो। अन्यथा साधु को क्या रक्षा की जरूरत हो सकती है?

और कृष्ण आएँगे तो भी साधु कहेंगे, आप नाहक मेहनत न करें, हम अपनी असुरक्षा में भी सुरक्षित हैं। साधु का मतलब ही यह होता है, सिक्योर इन हिज इनसिक्योरिटी। अपनी असुरक्षा में जो सुरक्षित है, उसी का नाम साधु है। अपने खतरे में भी जो एट इज है, उसी का नाम साधु है। साधु का मतलब ही यही है कि जिसके लिए अब कोई असुरक्षा न रही, जिसके लिए कोई इनसिक्योरिटी न रही। कृष्ण को क्या जरूरत होगी उसको बचाने की?

यह वचन बहुत मजेदार है, इसमें कृष्ण यह कहते हैं कि साधुओं को बचाने आना पड़ेगा। जिस दिन साधु साधु नहीं होगा, असाधु ही साधु दिखाई पड़ेंगे, उस दिन बचाने आना पड़ेगा और उसी दिन दुष्टों को भी बदलने की जरूरत पड़ेगी। नहीं तो यह काम तो साधु भी कर ले सकते हैं, इसके लिए कृष्ण की क्या जरूरत है? कृष्ण की जरूरत उसी दिन पड़ सकती है।

दुष्ट को मारने का काम तो कोई भी कर ले सकता है। हम सभी करते हैं, अदालतें करती हैं, दंड करता है, कानून करता है। यह सब दुष्टों को मारने का काम है; दुष्टों को बदलने का, ट्रांसफार्मेशन का काम नहीं है। दुष्ट साधु बनाए जा सकें। लेकिन जिस दुनिया में साधु भी असाधु होगा, उस दुनिया में दुष्ट की क्या स्थिति होगी?

लेकिन इस वाक्य को भी बड़ा अजीब समझा गया है। साधु समझते हैं, हमारी रक्षा के लिए आएँगे। और जिसको अभी रक्षा की जरूरत है, वह साधु नहीं है। और दुष्ट समझते हैं कि हमें मारने के लिए आएँगे। दुष्टों का समझना ठीक है क्योंकि दुष्ट दूसरे को मारने को उत्सुक और आतुर रहते हैं, उनको एक ही खयाल आ सकता है कि हमें मारने को। लेकिन कोई मारा तो जा नहीं सकता, वह वापस लौट कर वही हो जाता है।

वह नासमझी कृष्ण नहीं कर सकते। दुष्टों के विनाश के लिए! दुष्ट का विनाश होता है साधुता से। साधुओं की रक्षा के लिए! साधुओं की रक्षा की जरूरत पड़ती है जब साधु सिर्फ एपियरेंस, दिखावा रह जाता है। भीतर उसकी कोई आत्मा साधुता की नहीं रह जाती। यह वचन बहुत अद्भुत है।

लेकिन साधुजन बैठकर अपने मठों में इस पर विचार करते रहते हैं कि बड़ी अपने ऊपर कृपा है। जब दिक्कत आएगी तो जरूर आएँगे। और साधु अपने मन में इससे भी तृप्ति पाता है कि जो-जो हमें सता रहे हैं वे दुष्ट हैं। साधु की दुष्ट की यही परिभाषा होती है, कि जो-जो साधु को सता रहा है, वह दुष्ट है। जब कि साधु की आंतरिक व्यवस्था यह है कि जो उसे सताए, वह भी उसे मित्र मालूम होना चाहिए, दुष्ट नहीं मालूम होना चाहिए।

अगर सताने वाला शत्रु मालूम पड़ने लगे, दुष्ट मालूम पड़ने लगे, तो यह जो सताया गया है साधु नहीं है। साधु का तो मतलब यह है कि जिसे अब शत्रु दिखाई नहीं पड़ता। उसे सताओ तो भी दिखाई नहीं पड़ता। तो साधु बैठकर सोचते रहते हैं- अर्थात असाधु बैठकर सोचते रहते हैं- कि हमारी रक्षा के लिए, और ये जो दुष्ट जो हमें सता रहे हैं इनके नाश के लिए वे आएँगे। इसलिए गीता के इस वचन का बड़ा पाठ चलता है। इस वचन पर बड़े मन से, भाव से लोग लगे रहते हैं।

लेकिन उन्हें पता नहीं कि यह वचन साधुओं के लिए बड़ी मजाक है। इस वचन में बड़ा व्यंग्य है। व्यंग्य गहरा है और ऊपर से एकदम दिखाई नहीं पड़ता है। कृष्ण जैसे लोग जब मजाक करते हैं तो गहरी ही करते हैं! कोई साधारण मजाक नहीं करेंगे, सदियाँ लग जाती हैं मजाक को समझने में।

कहावत है कि अगर कोई मजाक कही जाए तो सुनने वाले लोग तीन किश्तों में हँसते हैं। पहले तो वे लोग हँसते हैं जो उसी वक्त समझ जाते हैं। दूसरे लोग इन हँसते हुए लोगों को देखकर हँसते हैं कि कुछ मामला हो गया। तीसरे लोग कुछ भी नहीं समझते। वे सिर्फ यह सोचकर कि कहीं हम नासमझ न समझे जाएँ, सब हँस रहे हैं तो हमें हँस देना चाहिए। मजाक को समझने में भी वक्त लग जाता है।

और कृष्ण जैसे लोग जब मजाक करते हैं तब तो बहुत वक्त लग जाता है। अब इस वचन में बड़ा व्यंग्य है, बड़ी मजाक है। गहरी मजाक है साधु के ऊपर। और वह मजाक यह है कि एक वक्त आएगा कि साधु को भी रक्षा की जरूरत पड़ेगी।

साभार : कृष्ण स्मृति से साभार/
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi