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खुशी की फुहार लाई बैसाखी

- गोविन्द बल्लभ जोशी

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कैलेंडर और मान्यताएँ : बैसाखी प्रत्येक वर्ष अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 13 अप्रैल को मनाई जाती है। कभी 12-13 वर्ष में 14 तारीख की भी हो जाती है। इस वर्ष 14 अप्रैल को यह रंगीला एवं छबीला पर्व मनाया जाएगा। अतः बैसाखी आकर पंजाब के तरुण वर्ग को याद दिलाती है। वह याद दिलाती है उस भाईचारे की जहाँ माता अपने दस गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित करके सिख बनाती थी। ऐसी वंदनीय भूमि को सादर नमन करते हैं।

बैसाखी का पर्व भारत वर्ष में सभी जगह मनाया जाता है। इसे खेती का पर्व भी कहा जाता है। किसान इसको बड़े आनंद के साथ मनाते हुए खुशियाँ का इजहार करते हैं। संक्रांति का दिन होने से इस कृषि पर्व को आध्यात्मिक पर्व के रूप में भी मान्याता मिली है। उत्तर भारत में विशेष कर पंजाब वैशाखी पर्व को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है। ढोल-नगाड़ों के साथ युवक और युवतियाँ प्रकृति के इस उत्सव का स्वागत करते हुए गीत गाते हैं एक-दूसरे को बधाइयाँ देते हैं और झूम-झूमकर नाच उठते हैं। इससे कहा जा सकता है कि कृषि प्रधान देश का यह ऋषि और कृषि पर्व है।

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भारतीय ज्योतिष में चंद्र गणना के अनुसार चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा वर्ष का प्रथम दिन है और सौर गणना के अनुसार बैसाखी (मेष संक्रांति) होती है। भारत में महीनों के नाम नक्षत्रों पर रखे गए हैं। बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा युवा पूर्णिमा में होने के कारण इस मास को वैशाखी कहते हैं। इस प्रकार वैशाख मास के प्रथम दिन को वैशाखी कहा गया और पर्व के रूप में स्वीकार किया गया।

बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है अतः इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं। इस दिन समस्त उत्तर भारत की पवित्र नदियों एवं सरोवरों में स्नान करने का माहात्म्य माना जाता है। अतः सभी नर-नारी चाहे खालसा पंथ के अनुयायी हों अथवा वैष्णव धर्म के प्रातःकाल नदी अथवा सरोवरों में स्नान करना अपना धर्म समझते हैं। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष उत्सव मनाए जाते हैं। खेत में खड़ी फसल पर हर्षोल्लास प्रकट करने का दिन है।

बैसाखी मुख्यतः कृषि पर्व है। पंजाब की शस्य-श्यामला भूमि से जब रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है और वहाँ का बाँका-छैला जवान उस अन्न-धन रूपी लक्ष्मी को संग्रहीत करने के लिए लालायित हो उठता है, 'बल्लिए कनक दिए ओनू स्वांणजे नसीबा वालै।' इस गीत को ढोल की थाप के साथ पंजाब की युवतियाँ गा उठती हैं, 'हे प्रीतम, मैं सोने की दाँती बनवाकर गेहूँ के पचास पूले काटूँगी। मार्ग में झोपड़ी बनवा लेंगे। ईश्वर इच्छा पूरी करेगा।'

वह इस प्रकार गाती हैं-

दांता बनायां सार दी पलू बड़स पंगाह।
राह विच पाले कुल्ली करवां दी।
तेरी रब मचाऊं आस गबरुआ ओए आस।

बैसाखी पर्व केवल पंजाब में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत के अन्य प्राँतों में भी उल्लास के साथ मनाया जाता है। सौर नव वर्ष या मेष संक्रांति के कारण पर्वतीय अंचल में इस दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं। लोग इस दिन श्रद्धापूर्वक देवी की पूजा करते हैं। उत्तर में नहीं बल्कि उत्तर-पूर्वी सीमा के असम प्रदेश में भी मेष संक्रांति आने पर बिहू का पर्व मनाया जाता है। वैशाख माह में वसंत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर होती है।

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