आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहते हैं। भारत में यह त्योहार पूरी श्रद्धा से मनाया जाता है। प्राचीन काल में गुरु के आश्रम में जब विद्यार्थी निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन गुरु का पूजन करके उन्हें दान-दक्षिणा देकर उन्हें पाद पूजन करता था।
इस व्रत के लिए नीचे कुछ उपयोगी जानकारी दी जा रही है।
* प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं।
* घर में ही किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र फैलाकर उस पर पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण गंध से बारह-बारह रेखाएं बनाकर व्यासपीठ बनाएं।
* तत्पश्चात 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से संकल्प करें।
* इसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ें।
* अब ब्रह्माजी, व्यासजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम मंत्र से पूजा, आवाहन आदि करें।
* फिर अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा कर उन्हें दक्षिणा दें।