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तपोमूर्ति संतश्री आत्माराम बाबा (गुरुपूर्णिमा विशेष)

हमें फॉलो करें तपोमूर्ति संतश्री आत्माराम बाबा (गुरुपूर्णिमा विशेष)
- अखिलेश श्रीराम बिल्लौरे

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भारत में गुरु-शिष्य परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। देवगुरु बृहस्पति से लेकर वर्तमान में अवधेशानंदजी, आसाराम बापू, सत्यसाँईं बाबा आदि आज भी हिंदू संस्कृति की परंपरा को स्थापित कर रहे हैं। माना कि आज के इस आपाधापी के युग में सबकुछ हाईटेक हो गया है, लेकिन महान संत-विद्वानों ने भारतीय प्रभुत्व का अस्तित्व मिटने नहीं दिया। यही कारण है कि आज भी भारत स्वयं में विश्वगुरु कहलाता है।

गुरु पूर्णिमा के दिन क्या, महान गुरु-महात्माओं, विद्वानों की पेढ़ी पर वर्षभर शिष्यों की, भक्तों की भीड़ लगी रहती है। ऐसी ही एक तपोमूर्ति नेमावर के पास पुण्य सलिला माँ नर्मदा और जामनेर के प्रसिद्ध संगम स्थल मेलघाट पर समाधि रूप में विराजमान है। समर्थ सद्‍गुरु संतश्री आत्माराम बाबा के नाम से विख्यात यह विभूति नार्मदीय ब्राह्मण समाज के प्रमुख गुरुओं में से एक है।

संतश्री आत्माराम बाबा नवीन हरदा जिले (पूर्व में होशंगाबाद जिले में शामिल) के छोटे से ग्राम अहलवाड़ा के रहने वाले थे। यहाँ भी बाबा की समाधि बनी हुई है। कहते हैं कि यहाँ रहते हुए बाबा को वैराग्य प्राप्त हो गया और वे तपस्या के लिए गहन जंगलों में चले गए। जब वे नर्मदा-जामनेर संगम स्थल मेलघाट पहुँचे तो उनका मन वहाँ की सुरम्य वादियों में रम गया। बाबा के स्थानीय शिष्यों के अनुसार मेलघाट में जब बाबा तपस्या में लीन रहते थे तब शेर-चीते आदि खूँखार जानवर उनके आसपास‍विचरण किया करते थे किंतु बाबा को कभी नुकसान नहीं पहुँचाया, न ही बाबा उनसे डरे।
  गुरु पूर्णिमा के दिन क्या, महान गुरु-महात्माओं, विद्वानों की पेढ़ी पर वर्षभर शिष्यों की, भक्तों की भीड़ लगी रहती है। ऐसी ही एक तपोमूर्ति नेमावर के पास पुण्य सलिला माँ नर्मदा और जामनेर के प्रसिद्ध संगम स्थल मेलघाट पर समाधि रूप में विराजमान है।      


एक बार ग्वालियर की तत्कालीन महारानी को असाध्य रोग हो गया। अनेक स्थानों पर भटकने के उपरांत महाराजा सिंधिया प्रसिद्ध तीर्थस्थल नेमावर पधारे। भोलेनाथ सिद्धेश्वर के दर्शन के बाद उन्हें किसी ने कहा कि यहाँ से कुछ दूर नर्मदा किनारे मेलघाट पर पहुँचे हुए महात्मा हैं। आप उनकी शरण में जाइए। वे महारानी का कष्ट अवश्य दूर कर देंगे। महाराजा तुरंत वहाँ पहुँचे।

संतश्री आत्माराम बाबा को अपने आने का प्रयोजन बताया। महाराजा की विनम्रता से बाबा प्रसन्न हो गए और कुछ ही समय में महारानी रोगमुक्त हो गई। कहते हैं इससे महाराजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबा को मेलघाट में आश्रम संचालित करने और जनसेवा के लिए भूमि दान दे दी। कालांतर में बाबा के शिष्यों की संख्या में उत्तरोत्तर बढ़ोतरी होती गई।

उनके अनुयायी आज भी उनकी याद में गुरु पूर्णिमा पर उनके समाधि स्थल पर एकत्र होते हैं और उनके पग‍चिह्नों पर शीश झुकाते हैं। वैसे तो वर्षभर ही समाधि स्थल पर भक्त आते रहते हैं लेकिन जनवरी माह में मेलघाट में विशाल मेला आयोजित होता है। इसमें दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा को चढ़ावा चढ़ाने आते हैं।

बाबा के एक परम भक्त वरिष्ठ समाजसेवी सुदामाप्रसाद शर्मा (इंदौर) मेलघाट में बाबा के समाधिस्थल के समीप संतश्री आत्माराम बाबा संस्कृत विद्यापीठ और प्राच्य अनुसंधान केंद्र के नाम से एक ऐसा आश्रम निर्मित करवा रहे हैं जिसमें ब्राह्मण बटुकों को कर्मकांड के संस्कार तो मिलेंगे ही, वे वहाँ रहकर प्राचीन संस्कृति अनुरूप गौशाला और गुरु-परंपरा से परिचित भी हो सकेंगे।

प्रत्येक आगंतुक श्रद्धालु के लिए भोजन-पानी और ठहरने की व्यवस्था भी वहाँ रहेगी। इसके ‍अलावा पुण्य सलिला माँ नर्मदा की परिक्रमा करने वाले भक्तों के लिए सदाव्रत खोलने की योजना है। श्री शर्मा ने धर्म और गुरु में आस्था रखने वाले प्रत्येक श्रद्धालु बंधु से इसके लिए सहयोग चाहा है। उनके साथ खंडवा, हरदा, इंदौर, भोपाल आदि जिलों के भी अनेक अनुयायी जुड़े हैं। इसके लिए संतश्री आत्माराम बाबा संस्कृत विद्यापीठ और प्राच्य अनुसंधान केंद्र की एक समिति का भी गठन किया गया है।

कैसे जाएँ
मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर से प्रसिद्ध तीर्थ स्थल नेमावर जहाँ भगवान सिद्धनाथ का प्राचीन मंदिर है, 130 किमी दूरी पर स्थित है। इंदौर के नवलखा बस स्टैंड से नेमावर के लिए दिनभर अनेक या‍त्री बसें चलती हैं। इसके ‍अलावा हरदा से नेमावर मात्र 22 किमी दूर है। नेमावर से मेलघाट समाधि स्थल मात्र डेढ़-दो किमी पूर्व में स्थित है।

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