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पंजाब में मचती है लोहड़ी की धूम...

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लोहड़ी की धूम देखनी हो तो गेहूं उत्पादन में देश में खास स्थान रखने वाले पंजाब से बेहतर भला और कौन-सा राज्य हो सकता है। अच्छी फसल होने की खुशी में ढोल-नगाड़ों पर झूमते पुरुष और रंगबिरंगे दुपट्टे लहराते हुए गिद्दा करती महिलाएं भारत की सांस्कृतिक विविधता में चार चांद लगा देती हैं।

कभी पंजाब के अहलू गांव में रहने वाले सरदार तरसेम सिंह अब अपने बेटे के साथ दिल्ली में रहते हैं। लेकिन लोहड़ी का पर्व उन्हें यादों में उनके गांव ले जाता है। वह कहते हैं ‘गेहूं की फसल अक्टूबर में बोई जाती है और मार्च-अप्रैल तक पक कर तैयार हो जाती है। लेकिन जनवरी में संकेत मिल जाता है कि फसल अच्छी हो रही है या नहीं। अच्छी फसल का संकेत मिल जाए तो किसानों के लिए इससे बड़ा जश्न और कोई नहीं होता। यह खुशी वह लोहड़ी में जाहिर करते हैं।’

उन्होंने कहा ‘इस पर्व के दौरान किसान यह कह कर सूर्य भगवान का आभार व्यक्त करते हैं कि उनकी गर्मी से अच्छी फसल हुई। इसीलिए इस पर्व का संबंध सूर्य से माना जाता है। लोहड़ी जाड़े की विदाई का भी संकेत होता है।

माना जाता है कि लोहड़ी के अगले दिन से सूर्य मकर राशि यानी उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करता है। सूर्य की यह अवस्था 14 जनवरी से 14 जुलाई तक रहती है और इसे उत्तरायण कहा जाता है।’

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नशामुक्ति अभियान चलाने वाले एक गैर सरकारी संगठन से जुड़ी दलजीत कौर ने कहा ‘पंजाब में इस दिन बच्चे सुबह से ही घरों-घर जाकर लकड़ियां मांगते हैं। इस दौरान वह दुल्ला भट्टी के गीत भी गाते हैं।
दलजीत ने कहा ‘धारणा है कि सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में दुल्ला भट्टी नामक एक मुस्लिम लुटेरा था जो लूट में मिले धन से गरीबों की मदद करता था। इसीलिए उसे लोग नायक मानते थे। लोहड़ी के लिए लकड़ियां एकत्र करते समय दुल्ला भट्टी की प्रशंसा में ही गीत गाए जाते हैं।’

उन्होंने कहा ‘एकत्र की गई लकड़ियां रात को जलाई जाती हैं और इसके आसपास लोग परिक्रमा करते हैं। इन लकड़ियों के नीचे गोबर से बनी लोहड़ी की प्रतिमा रखी जाती है। एक तरह से यह भरपूर फसल और समृद्धि के लिए अग्नि की पूजा होती है।’

सरदर तरसेम सिंह कहते हैं ‘परिक्रमा के दौरान लोग आग में तिल और सूखा गन्ना डालते हैं। परिवार के छोटे सदस्य बड़ों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेते हैं। नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशु के लिए इस पर्व को अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन मायके और ससुराल दोनों जगहों से उपहार मिलते हैं। नवजात शिशु को बुजुर्ग कंघा भेंट करते हैं। इस सौभाग्यसूचक माना जाता है। यह नजारा शहरों में कहां देखने मिलता है।’

लोहड़ी पर पूजा के बाद गजक, गुड़, मूंगफली, फुलियां, पॉपकॉर्न का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन मक्की की रोटी और सरसों का साग बनाने की परंपरा है।

चंद्रमा आधारित कैलेंडर का आखिरी महीना मारगजी लोहड़ी के दिन समाप्त हो जाता है। पहले यह पर्व केवल उत्तर भारत में मनाया जाता था लेकिन अब पूरे देश में इसकी धूम मचती है। हां, अलग-अलग प्रदेशों में इसके नाम अलग-अलग होते हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल, असम में बिहू, आंध्रप्रदेश में भोगी तथा कर्नाटक, बिहार और उत्तरप्रदेश में इसे संक्रान्ति कहा जाता है। (भाषा)

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